मौसम

दिल्ली में लू: क्या आग में घी डालने का काम कर रहे हैं एयरकंडीशनर

लू के महीनों में बिजली की आधी से ज्यादा मांग के लिए ऑफिसों, दुकानों और घरों में लगने वाले एसी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है

Avikal Somvanshi

दिल्ली को ठंडा रखने के लिए अप्रत्याशित रूप से बड़ी मात्रा में जीवाश्म ईंधनों को जलाया जा रहा है। अप्रैल के महीने में यहां बिजली की एक दिन में औसतन मांग 4,336 मेगावाट तक पहुंच चुकी है।

2018 में, जब से बिजली की मांग की रीयल-टाइम ट्रैकिंग शुरू हुई है, तब से यह बिजली की सबसे ज्यादा मांग है। यह दो साल पहले यानी अप्रैल 2020 की मांग के लगभग दोगुनी है।

राजधानी में बिजली की ज्यादातर मांग, गरमी पैदा कर बनाई जाने वाली बिजली से पूरी की जाती है। इसलिए इस मौसम में ठंडक बनाए रखने के मोह का एक ही उपाय है - ज्यादा ईंधन को जलाना।

दिल्ली स्थित एक गैर-लाभकारी संस्था, सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट द्वारा व्यापक गर्मी और दिल्ली की बिजली की मांग के बीच संबंधों को लेकर किए गए एक मूल्यांकन में पाया गया था कि यहां लू के महीनों में बिजली की आधी से ज्यादा मांग के लिए ऑफिसों, दुकानों और घरों में लगने वाले एसी को जिम्मेदार ठहराया जा सकता है। इसके लिए एयर कंडीशनरों के प्रति बढ़ती चाहत को दोषी माना जाना चाहिए।

जानलेवा बन रही लू
अप्रैल महीने में दिल्ली में अधिकतर समय तापमान 40 डिग्री सेल्सियस से ज्यादा ही रहा है जबकि रात के समय का या दैनिक न्यूनतम तापमान 20 के करीब बना हुआ है। इसका मतलब यह है कि रात के समय बिजली की मांग तुलनात्मक रूप से कम हो जाती है क्योंकि तब लोगों को सोने में मदद के लिए एसी के इस्तेमाल की जरूरत नहीं पड़ती।

इसके साथ ही रात में कूलर के बाहर रहने से एसी को घर ठंडा रखने के लिए ज्यादा बिजली नहीं चाहिए होती। आपस की बातचीत में हम अक्सर इस तथ्य की अनदेखी कर जाते हैं कि दिन का न्यूनतम तापमान, लोगों के आराम के स्तर और शहर की ऊर्जा की सुरक्षा पर असर डालता है।
पिछले सालों में नियमित लू के चलते आमतौर पर न केवल दिन के समय असामान्य तापमान दर्ज किया गया, बल्कि असुविधाजनक रूप से रात के समय में भी उच्च तापमान पाया गया। ऐसा इसलिए था क्योंकि सूरज डूबने के बाद भी दिल्ली अपने यहां चलने वाले लाखों एसी के चलते शहर को ठंडा कर पाने में सक्षम नहीं थी।

उन रातों में जब न्यूनतम दैनिक तापमान 30 डिग्री सेल्सियस से नीचे नहीं जाता, तब रात में शरीर को आराम देने के लिए सो पाना भी मुश्किल हो जाता है क्योंकि दिन में शरीर ने गरमी झेली होती है। यही वजह है कि इन दिनों दिल्ली में बिजली की मांग रिकॉर्ड तोड़ रही है। दिल्ली के अमीरों द्वारा संसाधनों को निगल जाने का नतीजा बाकी लोग भुगतते हैं और सूरज के प्रचंड रूप का शिकार बनते हैं।

पिछले कुछ सालों में दिल्ली में लू के चलते शायद ही किसी की जान गई हो। इसकी वजह यह है कि यहां चौबीसों घंटे बिजली की आपूर्ति के चलते लोगों की ऐसी जगहों तक पहुंच संभव है, जो ठंडी हों और उन्हें गर्मी से निजात दिलाते हों।

राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के मुताबिक, लू से होने वाली ज्यादतर मौतें आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, यूपी, बिहार और महाराष्ट्र में हुई हैं।

लू के कारण होने वाली मौतें, केवल बिजली की मांग से ही नहीं बल्कि सीधे तौर पर शहरों और क्षेत्रों में गर्मी से होने वाले तनाव की गंभीरता से जुड़ी होती हैं। देश में दुर्घटना से होने वाली मौतों और आत्महत्याओं (एनसीआरबी का वार्षिक प्रकाशन) के आंकड़ों से पता चलता है कि लू किसी प्राकृतिक शक्ति से होने वाली मौत का दूसरी मुख्य वजह बन चुकी है।

इससे इस सदी के पहले बीस सालों में बीस हजार से ज्यादा लोगों की जान चुकी है। इसी अवधि के दौरान बिजली गिरने से करीब पचास हजार लोगों की जान गई है।

शारीरिक-श्रम करने वालों पर सबसे ज्यादा मार
लू के कारण जिन लोगों की जानें गई हैं, उनमें ज्यादतर 30 से 60 साल के पुरुष हैं। यह भी अजीब आंकड़ा है क्योंकि माना जाता है कि इस आयु-वर्ग के लोग आमतौर पर सबसे ज्यादा तंदुरुस्त होते हैं। एनसीआरबी ने लू से होने वाली मौतों की सामाजिक-आर्थिक पड़ताल नहीं की लेकिन मीडिया रिपोर्टों पर सरसरी निगाह डालने से पता चलता है कि इसका सबसे ज्यादा शिकार शारीरिक श्रम करने वाले वे लोग बनते हैं, जिन्हें झुलसती गरमी में धूप में काम करना पड़ता है।

साल 2019 में दुर्घटना से होने वाली मौतों और आत्महत्याओं में लू से मरने वालों की संख्या 1274 थी हालांकि 2020 में यह संख्या घटकर 530 रह गई।

2020 में भी लू के कुछ दिन रहे होंगे लेकिन इसके चलते मरने वालों की संख्या तेजी से इसलिए कम हुई क्योंकि कोरोना के चलते लागू लॉकडाउन की वजह से उस साल अप्रैल-मई में बाहरी गतिविधियां लगभग ठप हो गई थीं।

लू से निपटने की कार्य-योजनाओं पर अमल जरूरी
कुछ सालों से भारतीय मौसम विज्ञान विभाग ने लू को लेकर चेतावनी जारी करना शुरू कर दिया है ओर इसके पूर्वानुमान मॉडल में सुधार हुआ है। इसके बावजूद उसकी चेतावनी को लेकर नीतिगत स्तर पर फैसले लेने की कोई योजना नहंी दिखती।

राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण ने 2019 में इस दिशा में कार्य-योजना की तैयारी के लिए राष्ट्रीय दिशा-निर्देश प्रकाशित किए थे, जिसका नाम था - ‘लू की रोकथाम और प्रबंधन’। यह लू से बचाव के लिए सरकार की तैयारियों में सुधार से संबंधित एक बेहतर दस्तावेज है। फिर भी, आज तक इसकी कोई जानकारी नहीं है कि सरकार ने कितनी कार्य-योजनाएं तैयार की। दरअसल दिल्ली के पास कोई कार्य-योजना नहीं है।

अहमदाबाद समेत गुजरात के कुछ दूसरे शहरों में लू से बचाव के लिए कार्य-योजनाएं हैं लेकिन वे आपातकाल के दौरान मेडिकल सहायता बढ़ाने और पेयजल आपूर्ति तक सीमित हैं। इन योजनाओं में निर्माण-कार्यों जैसी बाहरी गतिविधियों और तेज लू के घंटों के दौरान सामानों की डिलीवरी पर रोक लगाने जैसे सामान्य उपाय भी शामिल नहीं हैं।

लू को कम करने और उसके प्रबंधन के लिए एक बहुस्तरीय कार्य-योजना की जरूरत है। केवल लू से बचाव पर फोकस करने से बात नहीं बनेगी।

अपने लोगों को आग उगलते सूरज की गरमी से बचाने के लिए शहर के भीतर गरमी पैदा करने वाले उपायों को कम करना होगा। आज के हमारे शहर गरमी पैदा करने वाले उपायों जैसे - एसी, वाहनो, पॉवर-प्लांटों और खुले में आग आदि से भरे हुए हैं। हमारे भवनों और दूसरी आधारभूत संरचनाओं को भी खराब तरीके से डिजाइन किया गया है, जो गरमी बढ़ाती हैं।

जिस तरह की योजना हमने वायु-प्रदूषण से निपटने के लिए तैयार की है, वैसे ही लू से निपटने के लिए शहर के भीतर प्रदूषण के स्रोतों को कम करना होगा। ताकि जब मौसम गरम होने लगे तो हमारे शहर और उनके भवन अपने आप ओवन में न तब्दील होने पाएं।