संयुक्त राष्ट्र की एक नई रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि अत्यधिक गर्मी बुजुर्ग आबादी के लिए एक गंभीर और तेजी से बढ़ता खतरा बनती जा रही है। रिपोर्ट के अनुसार, 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों में गर्मी से संबंधित मौतों की संख्या में 1990 के दशक से अब तक लगभग 85 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। यदि वैश्विक तापमान में 2 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होती है, तो 2050 तक यह मौतें 370 प्रतिशत तक बढ़ सकती हैं।
संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम (यूएनईपी) की यह फ्रंटियर रिपोर्ट “द वेट ऑफ टाइम” 10 जुलाई 2025 को जारी की गई। इसमें यह बताया गया कि कैसे बुजुर्ग लोग विशेष रूप से घनी आबादी वाले शहरों और निम्न से मध्यम आय वाले देशों में चरम मौसम की घटनाओं के प्रति अधिक संवेदनशील हैं।
रिपोर्ट में हीट स्ट्रेस का अनुमान लगाने के लिए हवा के तापमान और सापेक्षिक आर्द्रता को मिलाकर अध्ययन किया गया। इसके अनुसार, भूमध्यरेखीय (ट्रॉपिकल) क्षेत्रों में खतरनाक गर्मी का सामना दोगुना हो सकता है, जबकि मध्य अक्षांशों (मिड लैटीट्यूड्स) में यह जोखिम वर्तमान की तुलना में 3 से 10 गुना तक बढ़ सकता है।
भारत में इस प्रभाव के संकेत पहले ही देखे जा चुके हैं। 1986-2005 और 2013-2022 के बीच, 65 वर्ष और उससे अधिक उम्र के लोगों को प्रति वर्ष औसतन 2.1 से 4 अतिरिक्त हीटवेव दिनों का सामना करना पड़ा। यह आयु वर्ग अधिक जोखिम में होता है क्योंकि उम्र बढ़ने के साथ शरीर की तापमान नियंत्रित करने की क्षमता कम हो जाती है, जिससे बीमारी और मृत्यु की दर में वृद्धि होती है।
रिपोर्ट में कहा गया कि जैसे-जैसे उम्र बढ़ती है, शरीर की अंदरूनी तापमान को नियंत्रित करने की क्षमता घटती जाती है, जिससे बुजुर्ग अत्यधिक गर्मी और सर्दी के संपर्क में आने पर अधिक बीमार होते हैं और उनकी हृदय, मस्तिष्क और सांस संबंधी बीमारियों (जैसे स्ट्रोक, हार्ट अटैक, हार्ट फेल्योर, अस्थमा और न्यूमोनिया) से मृत्यु का खतरा बढ़ जाता है।
शहरों के विस्तार के साथ-साथ बुजुर्गों की शहरी आबादी भी तेजी से बढ़ रही है। 2015 में 60 वर्ष और उससे अधिक आयु के 58 प्रतिशत लोग शहरों में रहते थे और यह संख्या लगातार बढ़ रही है। इससे चरम गर्मी की घटनाओं और जलवायु संकट के दौरान बुज़ुर्गों की सुरक्षा को लेकर नई चुनौतियां सामने आ रही हैं।
रिपोर्ट में कहा गया, “कई बुजुर्ग बेहतर स्वास्थ्य सुविधाओं, सामाजिक गतिविधियों और विश्वसनीय सार्वजनिक परिवहन जैसी सुविधाओं के लिए शहरी क्षेत्रों का रुख करते हैं। आने वाले समय में कई शहरों को वृद्ध होते शहरी निवासियों की नई वास्तविकता का सामना करना पड़ेगा।”
इसलिए, रिपोर्ट में सिफारिश की गई है कि शहरों को उम्र-हितैषी, प्रदूषण-मुक्त, सुलभ और हरित स्थानों में बदला जाए। बेहतर शहरी नियोजन के माध्यम से इनमें घने पौधारोपण और हरित क्षेत्र शामिल हों।
अत्यधिक गर्मी की निगरानी के लिए मौसम केंद्रों में निवेश करना, सामुदायिक स्तर पर आपदा जोखिम प्रबंधन और सूचना की पहुंच सुनिश्चित करना बुजुर्गों को जलवायु परिवर्तन के साथ सामंजस्य बिठाने में मदद करने के लिए आवश्यक उपाय बताए गए हैं।
रिपोर्ट में बुजुर्गों के लिए “एजिंग इन प्लेस” की अवधारणा को बढ़ावा देने के लिए “15-मिनट शहर” रणनीति की सिफारिश की गई है। इसके तहत बुजुर्ग अपने ही मोहल्ले में स्वतंत्रता के साथ रह सकते हैं, सक्रिय रह सकते हैं और अपनी सामाजिक गतिविधियों से जुड़े रह सकते हैं।
“यह मॉडल रोजमर्रा की सभी जरूरी जगहों जैसे घर, काम, स्कूल, दुकानें और सार्वजनिक हरित स्थान को 15 मिनट की पैदल दूरी या साइकिलिंग की दूरी पर रखने पर जोर देता है। यह बुजुर्गों के लिए विशेष रूप से लाभकारी है, जो सीमित गतिशीलता के कारण दूर-दराज की यात्रा नहीं कर सकते।”
यह मॉडल कार निर्भरता को कम करता है, जिससे कार्बन और वायु प्रदूषकों का उत्सर्जन घटता है और वायु गुणवत्ता बेहतर होती है। बुजुर्गों के लिए सबसे उपयुक्त वातावरण वही होता है जहां उन्हें सभी सेवाएं अपनी जानी-पहचानी और पास की जगहों में मिलें।
2025 की शुरुआत में, यूएन मानवाधिकार परिषद ने बुजुर्गों के अधिकारों की सुरक्षा के लिए एक नया अंतरराष्ट्रीय कानूनी रूप से बाध्यकारी दस्तावेज तैयार करने का प्रस्ताव पारित किया। यह उन लोगों की सुरक्षा के लिए एक महत्वपूर्ण कदम हो सकता है जो जलवायु परिवर्तन से सबसे अधिक प्रभावित होते हैं।
यह रिपोर्ट यूएनईपी की फ्रंटियर्स रिपोर्ट श्रृंखला का हिस्सा है, जो फोरसाइट ट्रैजेक्टरी इनिशिएटिव के तहत प्रकाशित की जाती है और वैश्विक पर्यावरणीय चिंताओं के उभरते मुद्दों को उजागर करती है। द वेट ऑफ टाइम इस श्रृंखला का सातवां संस्करण है।