मौसम

भारत में हर साल बढ़ रही हैं लू की घटनाएं जबकि कम हो रही हैं शीत लहरें: अध्ययन

Dayanidhi

एक नए अध्ययन से पता चलता है कि हाल के दशकों में देश में गर्मियों के मौसम में लू की घटनाएं तेजी से बढ़ी हैं जबकि सर्दियों में शीत लहरें कम हो गई हैं। यह अध्ययन हैदराबाद विश्वविद्यालय (यूओएच) के अध्ययनकर्ताओं द्वारा किया गया है।

लगातार तीन दिनों या उससे अधिक समय तक असामान्य रूप से बढ़ते तापमान की घटना को लू या हीटवेव की घटना कहा जाता है। अध्ययन में पाया गया कि लू या हीटवेव की घटनाएं प्रति दशक 0.6 घटनाओं की दर से बढ़ रही हैं जबकि शीत लहर की घटनाओं में हर दशक में 0.4 की दर से कमी आ रही है।

इस अध्ययन की अगुवाई, हैदराबाद  के पृथ्वी, महासागर और वायुमंडलीय विज्ञान केंद्र, भौतिकी स्कूल (यूओएच) की अनिंदा भट्टाचार्य, डॉ. अबिन थॉमस और डॉ. विजय कानवाडे ने किया है।

अध्ययन में भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मद्रास के प्रोफेसर चंदन सारंगी, विश्व संसाधन संस्थान (डब्ल्यूआरआई) के डॉ. पी.एस. रॉय और दिल्ली के भारत मौसम विज्ञान विभाग, पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय के डॉ. विजय के. सोनी शामिल थे।

अध्ययन से पता चला है कि हाल के दशक में लू या हीटवेव अधिक आम हो गई हैं, जबकि भारत में सर्दियों में शीत लहरें कम हो गई हैं।

अध्ययन के लिए पृथ्वी, महासागर और वायुमंडलीय विज्ञान में मास्टर ऑफ साइंस की छात्रा भट्टाचार्य ने 1970 से 2019 तक हर दिन के अधिकतम तापमान और न्यूनतम तापमान के आंकड़ों का उपयोग किया। ताकि असामान्य तरीके से बढ़ता तापमान, जिसे लू भी कहा जाता है और इसके विपरीत कम तापमान वाले दिनों अर्थात शीत लहरों के दिनों की घटना की भारत के विभिन्न जलवायु क्षेत्रों में बदलती प्रवृत्ति की जांच की जा सके।

अध्ययनकर्ताओं ने वर्तमान पीढ़ी के कंप्यूटर मॉडल की तुलना भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अवलोकनों के साथ भविष्य में जलवायु का पूर्वानुमान लगाने के लिए किया। लू या हीटवेव शुष्क और अर्ध-शुष्क जलवायु क्षेत्र में अधिक सामान्य पाई गई जबकि उन्हीं क्षेत्रों में शीत लहरें कम आम होती हैं।  

पूर्व-औद्योगिक युग के बाद से मानवजनित जलवायु परिवर्तन के कारण दुनिया भर में सतह के औसत तापमान में लगभग एक डिग्री सेल्सियस की वृद्धि हुई है।

जलवायु परिवर्तन ने गर्म हवाओं और शीत लहरों जैसी मौसम की कुछ घटनाओं की आवृत्ति, तीव्रता और प्रभावों को बदल कर रख दिया है। यह अध्ययन द जर्नल ऑफ अर्थ सिस्टम साइंस में प्रकाशित हुआ है।