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सदी के अंत तक भारत में 10 गुणा तक बढ़ सकता है लू का कहर, सामने आएंगें नए हॉटस्पॉट्स

रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि देश का उत्तर-पश्चिमी, मध्य और दक्षिण-मध्य हिस्सा भविष्य के लू क्षेत्र के रूप में उभर रहा है

Lalit Maurya

बढ़ते तापमान और जलवायु में आते बदलावों के चलते भारत के कई हिस्सों में स्थिति कहीं ज्यादा खराब हो सकती है। डीएसटी के महामना सेंटर ऑफ एक्सीलेंस इन क्लाइमेट चेंज रिसर्च के वैज्ञानिकों का अनुमान है कि सदी के अंत तक भारत में लू का खतरा 10 गुणा तक बढ़ जाएगा। अध्ययन में यह भी कहा गया है कि आने वाले समय में भारत के दक्षिणी और मध्य क्षेत्र में लू के कहर में सबसे ज्यादा वृद्धि होगी।

सेल प्रेस जर्नल आई साइंस में प्रकाशित इस रिसर्च के नतीजे यह भी दर्शाते हैं कि देश का उत्तर-पश्चिमी, मध्य और दक्षिण-मध्य क्षेत्र भविष्य के ‘लू क्षेत्र’ यानी उसके हॉटस्पॉट्स  के रूप में उभर रहे हैं। इतना ही नहीं आने वाले समय में भारत के तटीय क्षेत्रों में भी गर्मी का तनाव बढ़ जाएगा।

बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से जुड़े वैज्ञानिक आर के माल और सौम्या सिंह ने अपनी इस रिसर्च में खुलासा किया है कि आने वाले दशकों के दौरान भारत में लू का कहर पहले से कहीं ज्यादा बार लोगों को प्रभावित करेगा। इसके लिए वैश्विक स्तर पर तेजी से बढ़ता उत्सर्जन जिम्मेवार है, जिसकी वजह से हमारी धरती पहले की तुलना में बड़ी तेजी से गर्म हो रही है। देखा जाए तो इस बढ़ते खतरे के लिए हम इंसान ही जिम्मेवार हैं।

बढ़ते उत्सर्जन के साथ 10 गुणा तक बढ़ जाएगा खतरा

इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने मध्य अवधि (2041-2060) और दीर्घावधि (2081-2099) में लू के बढ़ते खतरे का आंकलन किया है। इस दौरान वैज्ञानिकों ने दो अलग-अलग जलवायु परिदृश्यों आरसीपी 4.5 और आरसीपी 8.5 के तहत होते उत्सर्जन को भी ध्यान में रखा है। इनके आधार पर शोधकर्ताओं ने आशंका व्यक्त की है आरसीपी 4.5 परिदृश्य में 2041 से 2099 के बीच लू का कहर चार से सात गुणा तक बढ़ सकता है। वहीं यदि बढ़ते उत्सर्जन पर लगाम लगाने के लिए अभी प्रयास न किए गए तो आरसीपी 8.5 परिदृश्य में भारत में लू का खतरा सदी के अंत तक 10 गुणा तक बढ़ने की आशंका है।

गौरतलब है कि आरसीपी 4.5 परिदृश्य के तहत अनुमान है कि उत्सर्जन सदी के मध्य में अपने उच्चतम स्तर पर पहुंच जाएगा और फिर सदी के अंत तक धीरे-धीरे इसमें गिरावट आने लगेगी। वहीं आरसीपी 8.5 परिदृश्य में उत्सर्जन में होती वृद्धि सदी के अंत तक भी जारी रहेगी।

अनुमान है कि 2060 तक हर साल लू की अधिकतम 20 घटनांए देश को अपना निशाना बनाएंगी। वहीं सदी के अंत तक यह आंकड़ा बढ़कर प्रति वर्ष 35 घटनाओं तक पहुंच जाएगा। आशंका है कि इससे देश में लोगों के स्वास्थ्य, कृषि और बुनियादी ढांचे पर गहरा असर पड़ेगा।

इस अध्ययन में लू के बढ़ते खतरे को लेकर जो खुलासे किए हैं वो भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के वैज्ञानिकों द्वारा अप्रैल 2023 में प्रकाशित रिपोर्ट से भी मेल खाते हैं। इस रिपोर्ट के मुताबिक भारत के दक्षिणी भाग और तटीय हिस्सों में जो क्षेत्र लू से प्रभावित नहीं है उनके भी इससे प्रभावित होने की आशंका है।

इतना ही नहीं इस रिपोर्ट के मुताबिक 2020 से 2064 के बीच लू की अवधि में 12 से 18 दिनों का इजाफा होने की आशंका है। रिपोर्ट के अनुसार, उत्तर पश्चिम भारत में 2060 तक हर सीजन में लू की करीब चार घटनाएं सामने आ सकती हैं जो करीब 30 दिनों तक चलेंगी।

जर्नल करंट साइंस में प्रकाशित एक अन्य शोध से पता चला है कि देश में 1978 से 2014 के बीच 36 वर्षों में लू से 12,273 लोगों की जान गई थी, वहीं 2015 से 2020 के बीच यह आंकड़ा 3,499 रिकॉर्ड किया गया था। शोध के मुताबिक देश में तापमान बढ़ने के साथ-साथ लू का कहर भी बढ़ता जा रहा है। पिछले तीन दशकों में लू की करीब 600 से ज्यादा घटनाएं सामने आई हैं। इतना ही नहीं रिसर्च में यह भी सामने आया है कि सबसे ज्यादा जानें आंध्रप्रदेश में गई हैं, जहां लू की 49 घटनाओं में 5,119 लोगों की जान गई थी।

आंकड़ों के अनुसार जहां 2008 के दौरान देश में लू से 111 लोगों की जान गई थी। वहीं यह आंकड़ा 2012 में 729, 2013 में 1,433 और 2015 में 2,081 रिकॉर्ड किया गया था, जबकि 2019 में लू से 498 लोगों की जान गई थी।

जर्नल वेदर एंड क्लाइमेट एक्सट्रीम्स में प्रकाशित एक रिसर्च के हवाले से पता चला है कि 1970 से 2019 के बीच पिछले 50 वर्षों के दौरान भारत में लू की करीब 706 घटनाएं दर्ज की गई हैं, जिनमें करीब 17,362 लोगों की मौत हो चुकी है। इस दौरान देश में चरम मौसमी घटनाओं के कारण गई कुल जानों में से 12 फीसदी के लिए लू ही जिम्मेवार थी और पिछले 50 वर्षों में लू के चलते मृत्युदर में 62.2 फीसदी की वृद्धि हुई है।

नीतियों में हाशिये पर रह रहे लोगों पर विशेष ध्यान देने की है जरूरत

भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा जारी आंकड़ों से पता चलता है कि 2021 में लू के चलते कोई मौत नहीं हुई थी, हालांकि एक रिपोर्ट से पता चला है कि 2021 की गर्मियों में लू के चलते एक ही दिन में चेन्नई में 11 लोगों की मौत हो गई थी, जबकि स्वास्थ्य मंत्रालय के आंकड़े बताते हैं कि इस साल 2022 में अप्रैल से जून के बीच लू के चलते 79 लोगों ने अपनी जान गंवाई थी और 3,400 लोगों के लू की चपेट में आए थे।

वैज्ञानिकों की मानें तो जैसे-जैसे तापमान में वृद्धि हो रही है लू की घटनाएं भी बढ़ती जा रही हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा जारी आंकड़ों को देखें तो वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि पहले ही 1.28 डिग्री सेल्सियस को पार कर चुकी है। वहीं इस बात की करीब 40 फीसदी आशंका है कि अगले पांच वर्षों में वैश्विक तापमान में हो रही वृद्धि 1.5 डिग्री सेल्सियस की सीमा को पार कर जाएगी, जबकि सदी के अंत तक यह वृद्धि 3.2 डिग्री सेल्सियस को पार कर जाएगी। रिसर्च से पता चला है कि तापमान में 2.7 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ 60 करोड़ से ज्यादा भारतीय बढ़ती गर्मी और लू का प्रकोप झेलने को मजबूर होंगें।

जर्नल जियोफिजिकल रिसर्च लेटर्स में लू पर छपे एक अन्य शोध से पता चला है कि तापमान में हर दो डिग्री सेल्सियस की वृद्धि के साथ लोगों के लू की चपेट में आने का जोखिम करीब तीन गुना बढ़ जाएगा। वहीं यदि वेट बल्ब तापमान की बात करें तो 32 डिग्री सेल्सियस तापमान को इंसान के लिए खतरनाक माना जाता है जबकि 35 डिग्री सेल्सियस पर इंसान का शरीर स्वयं अपने आप को ठंडा नहीं रख पाता।

ऐसे में लू के इस बढ़ते खतरे को देखते हुए हमें इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है। हीटवेव के लिए बनाए एक्शन प्लान इसमें काफी हद तक मदद कर सकते हैं, क्योंकि इसका कहर सबसे कमजोर तबके जैसे किसानों, श्रमिकों, और खुले में काम करने वालों पर ही सबसे ज्यादा असर डालेगा, ऐसे में इससे बचने के लिए बनाई नीतियों में उनपर विशेष ध्यान देने की जरूरत है। क्योंकि यह एक ऐसा वर्ग है जिसके लिए एयर कंडीशन तो बहुत दूर की बात, पंखा भी किसी लग्जरी से कम नहीं।