उत्तराखंड में भूस्खलन की घटनाओं से काफी नुकसान होता रहता है। फाइल फोटो: सीएसई 
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उत्तराखंड में भूस्खलन व फ्लैश-फ्लड का पूर्वानुमान, कितना आ रहा काम?

उत्तराखंड मौसम विभाग पिछले एक साल से मौसम के साथ-साथ भूस्खलन और फ्लैश-फ्लड की पूर्व सूचना भी देता है, लेकिन क्या यह वाकई कारगर साबित हो रहा है?

Rajesh Dobriyal

उत्तराखंड मौसम विभाग का दावा है कि वह बारिश की तरह साल भर से फ़्लैश फ़्लड और भू-स्खलन का पूर्वानुमान भी जारी करता है, लेकिन संबंधित विभागों को इसके  इस्तेमाल किए जाने में कोई तुक समझ नहीं आ रहा। लेकिन आखिर क्यों? आइए समझते हैं।

सबसे पहले यह समझते हैं कि यह पूर्वानुमान लगाए कैसे जाते हैं। मौसम विभाग केंद्र, देहरादून के निदेशक बिक्रम सिंह बताते हैं कि जब किसी क्षेत्र में बारिश हो रही हो या होने वाली हो तो यह देखा जाता है कि उस क्षेत्र की मिट्टी की पानी को वहन करने की क्षमता कितनी है. अगर वह चरम (सैचुरेशन) पर पहुंच गई है तो और बारिश होने पर वह बह या ढह जाएगी।

वह बताते हैं कि इसके लिए बारिश के पूर्वानुमान के मॉडल्स और सैटेलाइट इमेजरी का इस्तेमाल किया जाता है।  

सैटेलाइट इमेजरी से यह पता चल जाता है कि जिस क्षेत्र को कवर कर रहे हैं वह सैचुरेशन पॉएंट पर पहुंच गया है या नहीं। फिर बारिश के पूर्वानुमान के मॉडल से देखते हैं कि कितनी बारिश होगी और क्या उस बारिश को वह खास क्षेत्र उसे वहन कर पाएगा. इन दोनों के विश्लेषण से पता चलता है कि वहां फ्लैश फ्लड या भू-स्खलन जैसी कोई घटना हो सकती है या नहीं।

बिक्रम सिंह बताते हैं कि मौसम विभाग का मुख्यालय में हाइड्रोलॉजी डिवीजन एक साल से यह पूर्वानुमान तैयार कर रहा है और फिर उसे राज्य के स्तर पर सरकार और कार्यदायी संस्थाओं के साथ साझा किया जा रहा है। इसके साथ ही केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) के साथ ही यह डाटा साझा किया जा रहा है।

समन्वय की कमी और नुकसान

उत्तराखंड के आपदा विभाग के अनुसार 15 जून से 25 जुलाई की शाम साढ़े पांच बजे तक प्राकृतिक आपदाओं से 27 लोग मारे गए थे, 16 घायल थे और एक लापता। इसी तरह 48 पशुओं को गंभीर नुकसान पहुंचा और 141 को आंशिक। वहीं 8 घर पूरी तरह नष्ट हो गए, जबकि 64 को ज्यादा और 560 को मामूली नुकसान हुआ।  इस अवधि के दौरान 1973 सड़कों को नुकसान पहुंचा, जिनमें से 1868 रो 25  जुलाई की शाम तक खोल लिया गया था और 105 को खोला जाना बाकी था।

ऐसे में सवाल यह है कि क्या मौसम विभाग के फ्लैश फ्लड और भूस्खलन के पूर्वानुमानों पर ध्यान दिया जाता तो इस नुकसान को कम किया जा सकता था।

बिक्रम सिंह कहते हैं कि जब भी कार्यदायी संस्थाओं (आपदा प्रबंधन विभाग, ज़िला प्रशासन आदि) ने मौसम विभाग की चेतावनी पर ध्यान दिया है तब जान-माल का नुकसान कम करने में मदद मिली है। तकनीक के विकास और ज़्यादा संख्या में नए उपकरणों को इंस्टॉल किए जाने से मौसम का पूर्वानुमान बेहतर हुआ है।

इसी महीने की सात-आठ जुलाई को भारी बारिश का अनुमान जारी किया गया था और आपदा प्रबंधन विभाग ने उस चेतावनी पर अमल करते हुए तैयारी भी की थी जिसके चलते बाढ़ के बाद त्वरित गति से राहत और बचाव कार्य किए जा सके और जनहानि को कम किया जा सका।

बिक्रम सिंह यह भी कहते हैं कि यूज़र्स (कार्यदायी संस्थाएं) को भी मौसम विभाग को फ़ीडबैक देना चाहिए कि उसके पूर्वानुमान कितने सही और कितने ग़लत साबित हुए है, इससे विभाग को सुधार करने का मौका मिलेगा.

लेकिन इस मामले में सबसे महत्वपूर्ण घटक राज्य आपदा प्रबंधन विभाग का कहना है कि मौसम विभाग द्वारा दी जाने वाली भूस्खलन और फ़्लैश फ़्लड की चेतावनियां विभाग के लिए किसी काम की नहीं होती हैं.

विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी ने आधिकारिक रूप से इस बात पर टिप्पणी करने से तो इनकार कर दिया लेकिन कहा कि मौसम विभाग 20-25 किलोमीटर का अस्पष्ट सा अनुमान देता है... इसके आधार पर आप क्या तैयारी कर सकते हो?

वह कहते हैं कि 20-25  किलोमीटर के भूस्खलन के पूर्वानुमान पर हम क्या इतने बड़े इलाके को बंद करवा दें? क्या व्यवहारिक रूप से यह संभव भी है? अगर हमें पता हो कि किसी खास पहाड़ के गिरने का या उससे भूस्खलन होने का खतरा है तो हम कदम उठाएं भी, ऐसे इतने बड़े इलाके को लेकर कुछ कहना बेमानी है।

छोटे स्तर पर पूर्वानुमान में लगेगा समय

बिक्रम सिंह मानते हैं कि अभी मौसम विभाग के लिए सूक्ष्म या अति-सूक्ष्म स्तर पर पूर्वानुमान देना संभव नहीं है. वह कहते हैं कि पिछले आठ-दस सालों में मौसम विभाग के पूर्वानुमान बहुत बेहतर हुए हैं और उत्तराखंड जैसे छोटे क्षेत्रफल वाले ज़िलों में भी पूर्वानुमान आमतौर पर सही आते हैं।

वह कहते हैं कि लेकिन बहुत छोटे स्तर पर, सौ मीटर दूर अभी आपको नहीं मिल सकता, क्योंकि अभी ऑब्जर्वेशन सिस्टम उतना अच्छा नहीं है, जितना ऑब्ज़र्वेशन बढ़ेगा उतना बेहतर पूर्वानुमान देना संभव हो पाएगा।

बिक्रम सिंह कहते हैं कि आने वाले समय में सैटेलाइट्स से मौसम का पूर्वानुमान बेहतर होगा क्योंकि उनसे पूरी पृथ्वी को मॉनीटर किया जा सकता है. भविष्य में कई सैटेलाइट्स के समूह का इस्तेमाल कर शहर के अंदर किसी जगह का और आधे घंटे-15 मिनट जैसे  कम समय का पूर्वानुमान दिया जा सकेगा।

वह यह भी कहते हैं कि हालांकि इसमें समय लगेगा... शायद 10-15  साल।