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भारत के विभिन्न हिस्सों को अलग-अलग तरह से प्रभावित कर रहा है ईएनएसओ, जानिए कैसे?

ईएनएसओ ने जहां उत्तर भारत पर बहुत गहरा प्रभाव डाला है, वहीं मध्य भारत पर इसका असर कम रहा है। इसके लिए कहीं न कहीं वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान भी जिम्मेवार है

Akshit Sangomla, Lalit Maurya

एक नए अध्ययन के मुताबिक अल नीनो दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) ने हाल के दशकों में  भारत के विभिन्न हिस्सों को अलग-अलग तरह से प्रभावित किया है। जहां उत्तरी भारत में इसका प्रभाव ज्यादा था। वहीं देश के मध्य हिस्सों में इसका प्रभाव हल्का रहा है। वहीं दक्षिणी हिस्सों में इसके प्रभाव में ज्यादा बदलाव नहीं आया है।

यह जानकारी अंतराष्ट्रीय जर्नल नेचर साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित एक नए अध्ययन में सामने आई है। रिसर्च के मुताबिक इसके लिए कहीं न कहीं वैश्विक स्तर पर बढ़ता तापमान भी जिम्मेवार है। गौरतलब है कि अल नीनो दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ), जलवायु से जुड़ी एक महत्वपूर्ण घटना है जो करीब-करीब पूरी दुनिया को प्रभावित करती है। यह घटना महासागर की सतह के तापमान में होने वाले बदलावों से जुड़ी है, जो भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में घटती है।

आपकी जानकारी के लिए बता दें की जहां एल नीनो तापमान में होने वाली वृद्धि से जुड़ा है,  वहीं ला नीना तापमान में आने वाली गिरावट को दर्शाता है, जिसका असर करीब नौ महीनों तक रहता है।

यदि मानसूनी बारिश पर पड़ने वाले इसके असर को देखें तो जहां अल नीनो, मानसूनी बारिश को कमजोर करता है, वहीं दूसरी तरफ ठंडा चरण, ला नीना, इसे बढ़ाता है। इस बारे में अध्ययन से जुड़े एक शोधकर्ता विनीत कुमार सिंह ने डाउन टू अर्थ (डीटीई) को बताया कि अल नीनो के कारण हवा की गति नीचे की ओर होती है, जो मानसूनी बारिश को दबा देती है।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने जहां चार जुलाई 2023 को अल नीनो के बनने की घोषणा कर दी थी, वहीं 31 जुलाई 2023 को भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) ने भी इसकी शुरूआत की पुष्टि कर दी थी। वहीं तीन वर्षों तक रहा ला नीना का प्रभाव मार्च 2023 में समाप्त हो चुका है।

भारत में मानसूनी बारिश को देखें तो वो ईएनएसओ जैसे वैश्विक कारकों के साथ-साथ स्थानीय कारकों मानसूनी गर्त की तीव्रता के साथ-साथ कम दबाव वाले क्षेत्रों की आवृत्ति, जो आम तौर पर बंगाल की खाड़ी में बनती है, उससे भी प्रभावित होती है। मानसूनी गर्त के बारे में बता दें कि यह कम दबाव वाले क्षेत्रों की एक रेखा होती है। 

इसे समझने के लिए भारत और दक्षिण कोरिया के विभिन्न संस्थानों से जुड़े शोधकर्ताओं ने 1901 से 2018 तक के आंकड़ों का अध्ययन किया। उन्होंने पाया कि इस अवधि के दौरान पूरे भारत में मानसूनी गर्त की ताकत और कम दबाव वाले क्षेत्रों की उपस्थिति दोनों में कमी आई है। मानसूनी गर्त की ताकत को भंवर के संदर्भ में मापा जाता है या फिर इन्हें बारिश होने के लिए आवश्यक अनुकूल परिस्थितियों के रूप में भी देखा जाता है।

पहले के मुकाबले देर से बन रहे हैं अल नीनो

सिंह जोकि दक्षिण कोरिया की जेजू नेशनल यूनिवर्सिटी के टाइफून रिसर्च सेंटर में रिसर्च साइंटिस्ट भी हैं उनका कहना है कि, "हाल के दशकों में, अल नीनो पहले की तुलना में बहुत देर से बन रहे हैं। पहले यह फरवरी या मार्च के आसपास बनना शुरू होते थे, लेकिन अब यह जून या जुलाई के आसपास शुरू होते हैं, जैसा कि इस साल देखा गया है।"

इसका मतलब यह है कि अल नीनो का असर मानसूनी बारिश पर भी देर से पड़ता है। वहीं मध्य भारत में, इस देरी के चलते बारिश में आई कमी की भरपाई अरब सागर के गर्म होने के कारण होने वाली बारिश से होती है।

सिंह के मुताबिक ग्लोबल वार्मिंग के चलते अरब सागर में समुद्र का तापमान बढ़ने से नमी पैदा होती है जो पूर्वी हवाओं के साथ मध्य भारत तक पहुंचती है। इस क्षतिपूर्ति के कारण मध्य भारत में मानसूनी बारिश और अल नीनो के बीच संबंध कमजोर हो रहा है।

हाल के वर्षों में, एक उल्लेखनीय बदलाव आया है। जब मॉनसून डिप्रेशन दक्षिण की ओर स्थानांतरित हो रहा है। सिंह का कहना है कि, "मानसूनी दबाव उत्तर प्रदेश की ओर अधिक होता था, लेकिन अब अब वे मध्य प्रदेश और राजस्थान की ओर अधिक बढ़ रहे हैं। इस बदलाव से उत्तर भारत पर इनका प्रभाव कम हो गया है, जिससे क्षेत्र पर अल नीनो का प्रभाव बढ़ गया है।" सिंह के मुताबिक, हालांकि मानसूनी दबाव के दक्षिण की ओर बढ़ने का कारण फिलहाल पता नहीं है।

रिसर्च के मुताबिक, 1901 से 1940 के बीच, ईएनएसओ और मानसूनी बारिश के बीच संबंध मजबूत हो गया था। यह सम्बन्ध 1941 और 1980 के बीच स्थिर रहा, लेकिन 1981 के आसपास इसमें गिरावट आनी शुरू हुई और 2018 तक यह मध्यम स्तर पर आ गया। 

हालांकि बढ़ते तापमान के साथ भारत के अलग-अलग हिस्सों में मानसूनी बारिश और ईएनएसओ के बीच का संबंध कैसे बदलेगा, यह काफी अनिश्चित है क्योंकि ईएनएसओ स्वयं बदलती जलवायु के साथ बदल रहा है।

सिंह ने बताया कि, "ईएनएसओ की शुरुआत में बदलाव के साथ-साथ, जिस क्षेत्र में यह बनता है वह भी सुदूर पूर्वी प्रशांत क्षेत्र से मध्य पूर्व प्रशांत की ओर करीब पांच से सात डिग्री देशांतर में स्थानांतरित हो गया है।“

सिंह ने इस बात पर जोर दिया है कि मानसूनी बारिश के पूर्वानुमान के लिए जलवायु मॉडलिंग करते समय भारत के विभिन्न हिस्सों पर अल नीनो के इन अलग-अलग प्रभावों पर विचार किया जाना चाहिए। ऐसा करने से ईएनएसओ घटनाओं के दौरान क्षेत्रीय तौर पर वर्षा सम्बन्धी पूर्वानुमानों की सटीकता बढ़ जाएगी।