मौसम

वैश्विक अर्थव्यवस्था को 248 लाख करोड़ का नुकसान पहुंचा सकता है 2023 में बनने वाला अल नीनो

Lalit Maurya

वैज्ञानिकों के मुताबिक 2023 में बनने वाली अल नीनो की घटना न केवल इस साल नुकसान पहुंचाएगी, बल्कि साथ ही इसका प्रभाव 2029 तक दर्ज किया जाएगा। रिसर्च से पता चला है कि इस अल नीनो के कारण वैश्विक अर्थव्यवस्था को 2029 तक 247.97 लाख करोड़ रुपए (तीन लाख करोड़ डॉलर) तक  का नुकसान हो सकता है।

इतना ही नहीं यदि वैश्विक उत्सर्जन परिदृश्य को देखें तो सदी के अंत तक दुनिया को अल नीनो के चलते 6,943.23 लाख करोड़ रुपए (84 लाख करोड़ डॉलर) का नुकसान हो सकता है। इसका व्यापक प्रभाव भारत पर भी पड़ेगा।

यह जानकरी डार्टमाउथ के शोधकर्ताओं द्वारा किए अध्ययन में सामने आई है, जिसके नतीजे जर्नल साइंस में प्रकाशित हुए हैं। रिसर्च के मुताबिक जहां अल नीनो की यह घटना मौसम की चरम घटनाओं का कारण बनती है। जो कृषि, अर्थव्यवस्था और लोगों के जीवन पर व्यापक असर डालती है। साथ ही यह राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक विकास की रफ्तार को धीमा कर देती है।

देखा जाए तो जब अल नीनो आता है तो अक्सर अपने साथ बाढ़, सूखा, बढ़ता तापमान भी साथ लाता है जो फसलों को खराब कर देता है और मछलियों की आबादी को खत्म कर देता है। इतना ही नहीं इसके साथ कई बीमारियों का खतरा भी बढ़ जाता है जो सब मिलकर अर्थव्यवस्था को भारी नुकसान पहुंचाते हैं। यह नुकसान केवल एक नहीं बल्कि इसके घटने के कई वर्षों बाद भी सामने आता है।

1982-83 में आई ऐसी ही एक घटना की वजह से वैश्विक अर्थव्यवस्था को करीब 338.89 लाख करोड़ रुपए (410,000 करोड़ डॉलर) का नुकसान पहुंचा था जो 1997-98 की घटना में बढ़कर 471.15 लाख करोड़ रुपए (570,000 करोड़ डॉलर) पर पहुंच गया था।

इस बारे में अध्ययन से जुड़े प्रमुख शोधकर्ता क्रिस्टोफर कैलहन का कहना है कि यह अध्ययन इस बात पर चल रही बहस को संबोधित करता है कि अल नीनो जैसी जलवायु से जुड़ी घटनाओं से समाज कितनी जल्दी उबर सकता है। उनके मुताबिक निश्चित रूप से समाज और अर्थव्यवथाएं इससे तुरंत नहीं उबर पाती इसमें उन्हें कई साल लग जाते हैं। उनका कहना है कि इसका प्रभाव अगले 14 वर्षों तक रह सकता है।

भारत में भी कृषि पर पड़ सकता है असर

2023 की बात करें तो लगातार तीन सालों तक चले ला नीना के बाद यह पहला वर्ष है जब अल नीनो की आशंका जताई गई है। इसके बारे में अनुमान है कि भारत सहित दुनिया के कई देशों में आने वाले महीने कहीं ज्यादा गर्म रह सकते हैं। वैज्ञानिकों ने भारत में भी इसके प्रभावों को लेकर चेताया है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (आईआईटीएम), पुणे से जुड़े जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि, "इस साल मॉनसून पर एल नीनो का प्रभाव पड़ने की प्रबल आशंका है। ऐसे में देश के किसानों को इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है।"

अमेरिका के नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) ने अनुमान लगाया है कि इसके बनने की सम्भावना मई-जून-जुलाई 2023 के बीच करीब 80 फीसदी है, जो जून-जुलाई-अगस्त तक बढ़कर 90 फीसदी तक पहुंच जाएगी।

विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने भी चेताया है कि दुनिया को आने वाले अल नीनो के लिए तैयार रहना चाहिए। आशंका है कि यह मौसमी घटना अपने साथ दुनिया के कई हिस्सों में भीषण गर्मी, सूखा, और बाढ़ लेकर आएगी। इसके साथ ही यह बारिश को भी प्रभावित कर सकती है। इतना ही नहीं इसकी वजह से अन्य चरम मौसमी घटनाओं का खतरा भी बढ़ जाएगा।

एल नीनो के बारे में अध्ययन से जुड़े एक अन्य शोधकर्ता जस्टिन मैनकिन के मुताबिक जब जलवायु परिवर्तन की बात आती है तो आम लोग और वैश्विक नेता औसत तापमान में निरंतर होती वृद्धि पर ध्यान देते हैं। लेकिन अगर आप अल नीनो पर विचार किए बिना ग्लोबल वार्मिंग की लागत का अनुमान लगा रहे हैं तो निश्चित तौर पर आप बढ़ते तापमान की कीमत को कम करके आंक रहे है।

क्या है एल नीनो

एल नीनो तापमान, एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) से जुड़ी घटना है जो प्रशांत महासागर में घटती है। जो महासागर की सतह के तापमान में होने वाले बदलावों से जुड़ी हैं। आपकी जानकारी के लिए बता दें की जहां एल नीनो तापमान में होने वाली वृद्धि से जुड़ा है,  वहीं ला नीना तापमान में आने वाली गिरावट को दर्शाता है, जिसका असर करीब नौ महीनों तक रहता है।

वैज्ञानिक रूप से देखें तो एल-नीनो प्रशांत महासागर के भूमध्यीय क्षेत्र में घटने वाली उस मौसमी घटना का नाम है, जिसमें समुद्र की सतह का तापमान सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है और हवा पूर्व की ओर बहने लगती है। इसकी प्रभाव न केवल समुद्र पर बल्कि वायुमंडल पर महसूस किया जाता है। जलवायु वैज्ञानिकों के मुताबिक इस घटना के चलते समुद्र का तापमान चार से पांच डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है।

एनओएए के मुताबिक ईएनएसओ की घटना कितनी शक्तिशाली है, इसको ओशियन नीनो इंडेक्स (ओएनआई) की मदद से मापा जाता है। जो केंद्रीय भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान में सामान्य से होने वाली वृद्धि को दर्शाता है।

जब इस सूचकांक की माप 0.5 से 0.9 के बीच होती है, तो एक कमजोर अल नीनो बनता है। एक से ऊपर सूचकांक, मध्यम अल नीनो का संकेत देता है। वहीं जब सूचकांक का मान 1.5 से 1.9 के बीच रहता है, तो मजबूत अल नीनो बनता है। वहीं जब यह सूचकांक 1.9 से ऊपर चला जाता है तो उस दौरान एक मजबूत अल नीनो की घटना घटती है। 

एक डॉलर = 82.66 भारतीय रुपए