मौसम

जनजीवन पर मानसून का प्रभाव

ग्रेटर मुंबई को पानी की आपूर्ति का 96 प्रतिशत तुलसी, विहार, ऊपरी वैतरणा, भाटसा आदि झीलों से आता है, जिनका जलस्तर हर साल दक्षिण-पश्चिम मानसून के महीनों के दौरान रिचार्ज हो जाता है।

DTE Staff

श्रीकांत कानन

मानसून शब्द की उत्पत्ति अरबी शब्द मौसिम से हुई है जिसका अर्थ है ऋतुएं। भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून, दक्षिण -पश्चिम मानसून के रूप में भी जाना जाता है, जो एक ऐसी मौसमी  घटना है, जिसका संभवतः दुनिया भर में कोई सानी नहीं है।

मानसून की शुरुआत हजारों किलोमीटर दूर दक्षिणी हिंद महासागर में मेडागास्कर द्वीप समूह के पास  होती है। अरबी एवं चीनी व्यापारी इन्हीं व्यापरिक हवाओं की मदद से प्रायद्वीपीय भारत पहुंचते थे और जिसके फलस्वरूप चोल, चेरा, पल्लव एवं कलिंग जैसे प्राचीन भारतीय साम्राज्य अंतर्राष्ट्रीय समुद्री व्यापार का केंद्र बन गए।  

यह कहना कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी  कि विश्व की आबादी के 1/5  हिस्से का घर, भारतीय महाद्वीप के लिए ग्रीष्मकालीन मानसून संभवतः सबसे महत्वपूर्ण  मौसम घटनाओं में से है।

ऐसा अनुमान है कि दक्षिण-पश्चिम मानसून से देश के लगभग आधे खेतों की सिंचाई होती है। पिछले कुछ दशकों में भारतीय अर्थव्यवस्था के खुलने के साथ, हमारे आर्थिक प्रदर्शन के लिए कृषि पर निर्भरता भले ही कमी है, लेकिन कृषि  संबद्ध क्षेत्र अभी भी आर्थिक सर्वेक्षण 2022 के अनुसार हमारी अर्थव्यवस्था का लगभग 18% तक हैं।

हालांकि सबसे  महत्वपूर्ण बात जो किसी को नहीं भूलनी  चाहिए, वह यह है कि देश की लगभग आधी आबादी या तो किसान या खेतिहर मजदूर के रूप में कृषि पर निर्भर है।

इसके अलावा मानसून ने न केवल कृषि सेक्टर की मदद की है बल्कि बाकी अर्थव्यवस्था पर एक "रब-ऑफ" इफेक्ट भी बनता है, जिसके फलस्वरूप अच्छे मानसून के दौरान उपभोक्ता खर्च में भी वृद्धि होती है। 

इस संदर्भ में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा सकारात्मक मानसून पूर्वानुमान ने कई मौकों पर शेयर बाजारों को मदद पहुंचाई है। अच्छे या बुरे मानसून का प्रभाव न केवल शेयर बाजारों में बल्कि ट्रैक्टर, एफएमसीजी उत्पादों, दोपहिया वाहनों, ग्रामीण आवास जैसे कृषि उत्पादों की मांग में भी दिखाई देता है। 

भारतीय ग्रीष्मकालीन मानसून देश की वार्षिक वर्षा में लगभग 75 प्रतिशत योगदान देता है। भारत के लिए 1971-2020 की लंबी अवधि की औसत वार्षिक वर्षा 116 सेमी है, जबकि दक्षिण पश्चिम मानसून (जून से सितंबर) के दौरान लंबी अवधि की औसत वर्षा 86 सेमी है।

दक्षिण-पश्चिम मानसून के इन चार महीनों में होने वाली वार्षिक वर्षा का 3/4 भाग  देश भर में भूजल संसाधनों के लिए  महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।

यह भारत की आर्थिक राजधानी मुंबई से सबसे स्पष्ट रूप से दिखता है। ग्रेटर मुंबई को पानी की आपूर्ति का 96 प्रतिशत तुलसी, विहार, ऊपरी वैतरणा, भाटसा आदि झीलों से आता है, जिनका जलस्तर हर साल दक्षिण-पश्चिम मानसून के महीनों के दौरान रिचार्ज हो जाता है।

इस प्रकार चार महीने की यह बारिश जल प्रबंधकों को अगले 9 महीनों तक पीने की जरूरतों के लिए पानी जमा करने की अनुमति देती है। जून के दूसरे पखवाड़े में जल प्रबंधक अगले मानसून के मौसम की प्रतीक्षा करने लगते हैं और अगले साल के लिए पानी जमा करने की योजना बनाते हैं।

केंद्रीय जल आयोग का जलाशय भंडारण बुलेटिन  हीराकुंड, भाखड़ा, श्रीशैलम मेट्टूर आदि जैसे देश भर के 140 प्रमुख और महत्वपूर्ण जलाशयों के अपडेट प्रदान करता है। 

यह बुलेटिन कृषि के साथ-साथ भूजल पुनर्भरण, जल विद्युत उत्पादन एवं पीने के पानी के लिए सहायता प्रदान करने में दक्षिण-पश्चिम मानसून की महत्वपूर्ण भूमिका को दोहराता है।

पिछले 10 वर्षों में दक्षिण-पश्चिम मानसून की शुरुआत के दौरान इन 140 जलाशयों का औसत संचयी भंडारण 1/4 से कम रहता  है, जबकि दक्षिण-पश्चिम मानसून के  के 30 सितंबर को आधिकारिक रूप से समाप्त होने तक भंडारण कुल क्षमता का लगभग 3/4 हो जाता है।

पिछले 10 वर्षों में औसतन इन जलाशयों ने 133 बीसीएम के संचयी भंडारण तक पहुंचने में कामयाबी हासिल की है, जो इन महत्वपूर्ण जलाशयों में पानी के भंडारण को फिर से भरने में दक्षिण-पश्चिम मानसून की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है।  

चाहे वे तमिलनाडु के चावल उगाने वाले डेल्टा जिले हों या गेहूं उगाने वाले पंजाब और मध्य भारतीय जिले - एक अच्छा मानसून वर्ष भारत जैसे देश को बहुत अधिक खाद्य सुरक्षा प्रदान करता है।

मानसून के पूर्वानुमान के आधार पर खेती के क्षेत्र में सालाना लगभग 20 से 25% तक भिन्नता हो सकती है। भारत में खेती के तहत लगभग 60 प्रतिशत क्षेत्र वर्षा पर निर्भर है और देश में खाद्यान्न उत्पादन का लगभग आधा हिस्सा वर्षा आधारित फसलों से आता है, जो एक बार फिर देश की खाद्य सुरक्षा में दक्षिण-पश्चिम मानसून की महत्वपूर्ण भूमिका को उजागर करता है। 

संक्षेप में यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है कि प्रसिद्ध तमिल कवि तिरुवल्लुवर ने अपने कालजयी ग्रन्थ  थिरुक्कुरल के शुरुआती अध्याय में भगवान का आह्वान करने के बाद दूसरा स्थान   "वर्षा की महिमा" को दिया  जिसमें  बारिश को दैवी आशीर्वाद की तरह बताया गया है-

अगर बारिश न हो तो धरती  

पानी के बीच रहकर भी भूखी ही रहेगी

इस दोहे के माध्यम से उन्होंने वर्षा के महत्व का बखूबी वर्णन किया है। पृथ्वी का लगभग 2/3 भाग पानी से भरा होने के बावजूद अगर बारिश विफल हो जाती है तो मानव जाति के सामने भूख से मरने के आलावा कोई चारा नहीं रहेगा।  

(लेखक इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी (आईआईटी) मद्रास में प्रोफेसर हैं)