दक्षिणी पश्चिमी मानसून के कमजोर होने के चलते केरल के सभी 14 जिलों में सूखे जैसी स्थितियां पैदा हो गई हैं। खासतौर से इडुक्की और वायनाड जैसे पहाड़ी जिले भी सूखे जैसी स्थितियों की मार झेल रहे हैं। दक्षिणी पश्चिमी मानसून अपने आखिरी चरण में जा रहा है इसके बावजूद वायनाड में सूखे जैसी स्थितियां विभिन्न तरह के चावल उगाने वाले किसानों के लिए चिंताजनक हो चुकी हैं।
वायनाड में इस बार बुआई बहुत देर से हुई क्योंकि जून और जुलाई में वर्षा ही नहीं हुई। अधिकांश किसान अब अगस्त महीने में पर्याप्त वर्षा की आस लगाए हुए हैं ताकि नर्सरी को दोबारा लगा सकें।
स्थानीय स्तर पर किसानों के साथ काम करने वाले थिरुनेल्ली एग्री प्रोड्यूसर कंपनी लिमिटेड के सीईओ राजेश कृष्णन ने डाउन टू अर्थ से कहा कि पर्याप्त वर्षा न होने के कारण न सिर्फ किसान प्रभावित होंगे बल्कि उनकी लागत बढ़ेगी और उपज कम होगी।
वहीं, इडुक्की के सांथनपारा में एक आदिवासी किसान एसपी वेंटचेलम ने कहा जनवरी से मई के बीच हमने सिर्फ दो से तीन वर्षा प्राप्त की। वह समय बीजों की बुआई का था लेकिन उस वक्त भी पानी नहीं मिला। हम सिर्फ खेती-किसानी ही नहीं बल्कि गंभीर पेयजल संकट से भी गुजर रहे हैं। एग्रीकल्चर ऑफिस से हमें ओणम बाजार के लिए सब्जियों के बीज मिले थे लेकिन हम कुछ नहीं कर सकते।
काली मिर्च, धनिया, अदरक, कॉपी जैसी अन्य कैश क्रॉप पैदा करने वाले किसानों के लिए स्थितियां बहुत ही भयावह हैं। वर्षा की प्रवृत्ति में हो रहे बदलाव के चलते काली मिर्च के पौधों में फल और फूल ठीक ढंग से नहीं आ रहे। इसलिए काली मिर्च की कमी का गंभीर संकट है। इडुक्की में करीब 61 फीसदी की कमी है।
वायनाड में कॉफी के पौधों में भी फूल सही से नहीं आ रहे हैं। इस बार अप्रैल और मई जैसे गरम महीने में वर्षा नहीं हुई।
वायनाड के गांवों में भयंकर पानी की कमी है। वायनाड से ही काबीनी नदी निकलती है जो विभिन्न फीडर्स में जाकर मिलती है। इसके अळावा पुलपैल्ली और मुल्लानकोल्ली जैसे गांवों में भी स्थितियां वायनाड से अलग नहीं हैं। जहां से नदी गुजरते हुए कर्नाटक में प्रवेश करती है।
पूर्वी पहाड़ी क्षेत्र में पानी और अन्य बुनियादी चीजों पर काफी दबाव है क्योंकि वहां गर्मी से बचने के लिए पर्यटक वहां पहुंच रहे हैं।
केरल ने इस साल अभी तक सामान्य से 45 फीसदी कम वर्षा हासिल की है। वहीं, बढ़ती गर्मी ने समूचे राज्य में बिजली और पानी की मांग को बढ़ा दिया है। जलाशयों की देखरेख करने वाले इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड ने बताया कि 20 अगस्त तक जलाशयों में सिर्फ 36 फीसदी पानी ही मौजूद है।
जलवायु के जानकार यह बता रहे हैं कि अलनीनो (प्रशांत महासागर में सतह के जल का गर्म होना) के कारण अगस्त में सबसे कम वर्षा हो सकती है।
तिरुवनंतपुरम के नेशनल सेंटर फॉर अर्थ साइंस स्टडीज के माधवर नायर राजीवन ने कहा कि इस हफ्ते और आगे होने वाली वर्षा मानसून की इस बड़ी कमी को भर नहीं पाएगी।
सितंबर के अंत में मानसूनी वर्षा के होने के आसार हैं। हालांकि, अल नीनो वर्ष में सितंबर में वर्षा बहुत कम देखी गई है।
मानसून को ट्रैक करने वाले कोट्टायम स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ क्लाइमेट चेंज स्टडीज (आईसीसीएस) के विशेषज्ञों ने बताया कि यदि वर्तमान मौसमी विशेषताओं को देखा जाए तो अगस्त के शेष दिनों में पिछले कुछ वर्षों की तरह अत्यधिक वर्षा की कोई घटना होने की संभावना नहीं है।
भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के अनुसार 1 जून से 16 अगस्त तक केरल में केवल 877.2 मिलीमीटर बारिश हुई, जबकि राज्य में दक्षिण-पश्चिम मानसून के लिए दर्ज की गई सामान्य वर्षा का आंकड़ा 1,572.1 मिमी है। आईएमडी केरल के निदेशक के संतोष ने कहा “अगले दो हफ्तों के लिए बारिश का पूर्वानुमान भी सामान्य से नीचे के वर्षा पैटर्न को दर्शा रहा है।"
पलक्कड़ केरल में सबसे अधिक पेयजल संकट वाला जिला है। पलक्कड़ के शोरनूर में केरल की दूसरी सबसे बड़ी नदी भरतपुझा अब लगभग एक धारा में तब्दील हो गई है, जिससे शोरनूर और पास के ओट्टापलम में पीने के पानी की कमी हो गई है। वहीं, ओट्टापलम, शोरानूर, वानियमकुलम, अंबालापारा और लक्किडी जैसे प्रमुख स्थानों पर भरतपुझा से पंपिंग काफी हद तक प्रभावित रहती है।
भरतपुझा उत्तर-मध्य पलक्कड़, मलप्पुरम और त्रिशूर जिलों में एक दर्जन से अधिक नगर पालिकाओं और 175 ग्राम पंचायतों की सिंचाई और पीने के पानी की जरूरतों को नियंत्रित करता है।
पलक्कड़ के उम्मिनी क्षेत्र में चावल उत्पादकों के एक मंच उम्मिनी पदशेखरा समिति के प्रमुख पी अबुबकर ने कहा: राज्य में पिछले चार वर्षों में दक्षिण-पश्चिम मानसून के दौरान उच्च तीव्रता वाली बारिश देखी गई, जिसके परिणामस्वरूप कई बाढ़ और भूस्खलन हुए। अब यहां के किसानों ने मौजूदा पानी की कमी के कारण धान की पहली फसल का मौसम लगभग छोड़ दिया है। पानी के अभाव में जिले भर में धान के पौधे मुरझा रहे हैं, और हमारे पास अब इस संकट से उबरने का कोई साधन नहीं है।
चावल के खेतों में खारे पानी की अधिक मात्रा के प्रवेश ने अलाप्पुझा जिले के कुट्टनाड क्षेत्र (केरल के धान के कटोरे के रूप में जाना जाता है) में खेती पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है। कुट्टनाड में पीने के पानी की भारी कमी है, जो समुद्र तल से नीचे है और विशाल बैकवाटर से घिरा हुआ है। यहां के लोगों को कहीं और से सुरक्षित पेयजल पाने के लिए सरकारी नावों का इंतजार करना पड़ता है।
आदिवासी हृदय स्थल अट्टापडी में कुएं और तालाब पहले ही सूख चुके हैं। पलक्कड़ में एरुथेम्पथी, वडकरपति और कोझिंजमपारा पंचायतों में निवासियों को सप्ताह में तीन बार पानी ले जाने वाले ट्रकों के लिए इंतजार करना पड़ता है।
इडुक्की, जहां केरल की सबसे बड़ी जलविद्युत परियोजना स्थित है, वहां इस सीजन में 16 अगस्त तक सबसे कम (60 फीसदी) बारिश दर्ज की गई है। ताजा प्रवाह नहीं होने से इडुक्की पनबिजली स्टेशन पर बिजली उत्पादन प्रभावित हो सकता है। केरल इलेक्ट्रिसिटी बोर्ड लिमिटेड के निदेशक, उत्पादन (सिविल) के सहायक तकनीकी विशेषज्ञ के सजीश ने कहा, “फिलहाल इडुक्की में जल स्तर (क्षमता का) केवल 31.13 प्रतिशत है, जो पिछले साल इसी समय के दौरान 80.2 प्रतिशत था।”
पथानामथिट्टा के कक्की में दूसरी सबसे बड़ी बिजली परियोजना में जल स्तर अब 35.6 प्रतिशत है, जो पिछले साल अगस्त के दौरान 62.42 प्रतिशत के स्तर से काफी कम है। राज्य में पीने के पानी के जलाशयों की भी कुछ ऐसी ही स्थिति है। यदि आगामी पूर्वोत्तर मानसून के दौरान वर्षा कम हुई तो राजधानी शहर में पानी की आपूर्ति भी प्रभावित होगी।
केरल में सबसे बड़े पेयजल भंडारण मालमपुझा में 58 प्रतिशत की कमी हुई है। फिलहाल पेप्पारा बांध पर अगले 100 दिनों तक ही पीने का पानी उपलब्ध है। केरल जल प्राधिकरण, तिरुवनंतपुरम के बांधों के सहायक अभियंता सौम्या एस ने कहा, अगर हमें पूर्वोत्तर मानसून की बारिश नहीं मिलती है, तो चीजें मुश्किल हो जाएंगी।
वाटर रिसोर्सेज डेवलपमेंट एंड मैनेजमेंट सेंटर के हाइड्रोलॉजी एंड क्लाइमेटोलॉजी के वरिष्ठ वैज्ञानिक सीपी प्रिजू ने कहा हमारे अनुमान के अनुसार "इस वर्ष केरल में भूजल स्तर भी पिछली इसी अवधि की तुलना में नीचे चला गया है।" उन्होंने कहा कि राज्य में भूजल स्तर में गिरावट के संबंध में एक विस्तृत अध्ययन अभी किया जाना बाकी है।
आईएमडी के निदेशक संतोष ने कहा 'इस अवधि के दौरान जब हमारे यहां अच्छी बारिश होती थी, तो तापमान का स्तर कम होता था। हालांकि, इस साल, औसत अधिकतम तापमान तीन-चार डिग्री सेल्सियस अधिक है।”
अल नीनो ने मानसून से ठीक पहले अरब सागर और बंगाल की खाड़ी में पश्चिमी हवाओं और चक्रवात संरचनाओं को कमजोर कर दिया था। आईएमडी निदेशक ने बताया कि इससे केरल में मॉनसून वर्षा पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है। केरल अब पूर्वोत्तर मॉनसून पर अपनी उम्मीदें लगा रहा है, जो अक्टूबर और दिसंबर के बीच आने की उम्मीद है।