सबसे ज्यादा तापमान के कारण पिछले चार सालों से धौलपुर सुर्खियां बटोर रहा है। इस बार इस शहर की गिनती उनमें शामिल हो गई हैं, जहां 50 डिग्री से ऊपर तापमान पहुंच जाता है। सोमवार को यहां का तापमान 51 डिग्री तक पहुंच गयाा था। ऐसे में, सोचिए कि इस शहर के लोगों का दिन कैसा बीत रहा होगा। दरअसल, इस शहर के लोगों ने गर्मी से बचने के लिए अपना काम करने का तरीका ही बदल दिया है।
धौलपुर एक ऐसा शहर जहां अधिकतर काम सूरज के ढलने के साथ शुरू होता है और सुबह उसके उगते खत्म हो जाता है। मजदूर से लेकर शिक्षक तक दिन में निकलने से डरते हैं। इसलिए ये अलसुबह अपने कामों के लिए निकल जाते हैं और सूरज के निकलने के पूर्व ही अपने गंतव्य तक पहुंच कर शाम तक सूरज के अस्त होने का इंतजार करते हैं।
पिछले चार सालों से यहां का तापमान गर्मियों में लगातार 40 डिग्री सेल्सियस से अधिक रहा है। इसी बात की पुष्टि करते हुए स्थानीय पर्यावरणविद अरविंद शर्मा ने बताया कि इस साल (2018) के मार्च में ही यहां का तापमान 39 डिग्री सेल्सियस तक जा पहुंचा था। धौलपुर जिले के डॉ. धर्म सिंह ने बताया कि मार्च में ही यहां हीटवेव जैसी स्थिति पैदा हो गई है। यही कारण है कि इस साल जनवरी-फरवरी के मुकाबले मार्च-अप्रैल में 40 फीसद अधिक बच्चे व बूढ़े अस्पताल आए हैं। इनमें भी बच्चों के मामले 70 फीसद है। अस्पताल आने वाले ज्यादातर बच्चों को दस्त, बैचेनी और चक्कर आने की शिकायतें हैं।
धौलपुर के पत्थर राजस्थान ही नहीं देशभर में मशहूर हैं। यहां पत्थर की खदानों में काम करने वाले 44 वर्षीय मंगतराम ने बताया कि खदानों में काम करने से पैसा तो मिलता है लेकिन इस पत्थर की गर्मी हम जैसे मजदूरों का शरीर जला डालती है। धर्म सिंह कहते हैं कि मैं उस इलाके से आता हूं जो हीटवेव का सबसे अधिक प्रभावित इलाका है क्योंकि वहां चारों ओर जमीन के नीचे पत्थर हैं। यहां पर काम करने वाले 80फीसद ग्रामीण हीटवेव के शिकार होते हैं। मनरेगा में काम करने वाले मजदूर भी इसकी चपेट में आते हैं। हालांकि राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) ने हीटवेव प्रभावित सभी 17 राज्यों को 3 मार्च, 2018 को हीटवेव संबंधी नए दिशा-निर्देश जारी किए हैं। इसमें स्पष्ट रूप से उल्लेख है कि मनरेगा के तहत काम करने वाले मजदूर सुबह व शाम की पाली में ही काम करेंगे। निर्देश में कहा गया है, जहां पानी की पूरी व्यवस्था होगी, वहीं पर काम होगा। सिंह बताते हैं कि हीटवेव की समयावधि में पिछले चार सालों में लगातार वृद्धि दर्ज की गई है। यह समयावधि 2015 में जहां 40-45 दिन होती थी, अब बढ़कर 60-70 दिन हो गई है।
सिर्फ पथरीला भूगोल ही पिछले चार साल में धौलपुर को देश का सबसे गर्म जिला बनाने का जिम्मेदार नहीं है। एक समय चंबल के डाकुओं के लिए वरदान बने बीहड़ अब धौलपुर में गर्मी बढ़ा रहे हैं। बीहड़ से लगे पिपरिया गांव के बुजुर्ग मुल्कराज सिर से लेकर पैर तक सफेद धोती से अपने को लपेटे हुए अपनी पान की गुमटी में बैठे बीहड़ की ओर इशारा करते हुए कहते हैं कि न जाने ये बीहड़ कब खत्म होंगे। पहले इनमें डाकुअन राज करते थे अब यहां गर्मी की लहर का राज है। राजस्थान विश्वविद्यालय के पर्यावरण विभाग के प्रमुख टीआई खान कहते हैं कि यहां दूर-दूर तक जंगल नहीं हैं और बीहड़ों के कारण यहां की जमीन और अधिक ताप छोड़ती है।
अरविंद शर्मा कहते हैं कि धौलपुर में हीटवेव के लगातार बने रहने का एक बड़ा कारण यह है कि चंबल के बीहड़ों के कारण हवा क्रॉस नहीं हो पाती। वह कहते हैं कि एक समय बीहड़ के डाकू देशभर के लिए दहशत का अवतार माने जाते थे। लेकिन आज यहां के आम लोगों के लिए सबसे खूंखार जानलेवा हीटवेव है। यहां के सरकारी कर्मचारी हीटवेव से बचने के लिए तड़के 3-4 बजे ही दफ्तर के लिए निकल पड़ते हैं। हीटवेव के सामने बीहड़ का डर भी कम हो गया है। गरम हवा के खौफ ने डाकुओं का खौफ मिटा दिया है।