मौसम

मॉनसून में देरी: संभावित अल नीनो भारत के कुछ हिस्सों में कैसे बन सकता है सूखे की वजह

विशेषज्ञ मॉनसून के आने से पहले चक्रवात व बाढ़ की आशंका से इंकार नहीं कर रहे हैं और किसानों को इसके लिए तैयार रहने की सलाह दे रहे हैं

Akshit Sangomla, Lalit Maurya

इस साल मॉनसून की शुरुआत में थोड़ी देरी से हो सकती है। इतना ही नहीं, जानकारी मिली है कि आगामी दक्षिण-पश्चिमी मॉनसून का सीजन इस बार छोटा हो सकता है। साथ ही इसकी वजह से बारिश का वितरण भी असमान हो सकता है।

हाल ही में कई विशेषज्ञ इस साल खराब मॉनसून को भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में बन रही अल नीनो की घटना के साथ भी जोड़कर देख रहे हैं। साथ ही, तापमान बढ़ने की आशंका और प्रबल हो गई है। अमेरिका के नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) के मुताबिक जहां इस साल मई-जून-जुलाई के बीच अल नीनो बनने की सम्भावना 80 फीसदी है जो जून-जुलाई-अगस्त में बढ़कर 90 फीसदी तक पहुंच जाएगी।

अल नीनो, दक्षिणी दोलन से जुड़ी घटना ईएनएसओ के सामान्य से अधिक गर्म चरण का दौर है जिसके चलते आमतौर पर भारत में मॉनसून के दौरान सामान्य से कम बारिश होने की आशंका रहती है। इतना ही नहीं, जिन वर्षों में अल नीनो की घटना घटी हैं उन वर्षों में मॉनसून की शुरूआत देर से होने के साथ-साथ सूखे की स्थिति भी देखी गई है।

एनओएए के अनुसार, ईएनएसओ घटना कितनी शक्तिशाली है, इसको ओसियन नीनो इंडेक्स (ओएनआई) से मापा जाता है। जो केंद्रीय भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में समुद्र की सतह के तापमान का सामान्य से बढ़ने को दर्शाता है।

वैज्ञानिकों के अनुसार जब इस सूचकांक की माप 0.5 से 0.9 के बीच होती है, तो वो एक कमजोर अल नीनो की ओर इशारा करती है, जबकि एक से ऊपर मध्यम अल नीनो की घटना का संकेत देता है। वहीं जब सूचकांक 1.5 को पार कर जाता है लेकिन 1.9 से कम रहता है, तो मजबूत अल नीनो होता है। वहीं जब यह सूचकांक 1.9 से ऊपर चला जाता है तो एक मजबूत अल नीनो की घटना होती है।

यदि एनओएए के आंकड़ों को देखें तो कई ईएनएसओ मॉडल वर्तमान एल नीनो घटना के लिए 1.5 से अधिक के इंडेक्स की भविष्यवाणी कर रहे हैं। वहीं कुछ मॉडलों के मुताबिक ओएनआई दो से अधिक हो सकता है। गौरतलब है कि सितंबर 2014 से मई 2016 के बीच दर्ज अंतिम प्रमुख अल नीनो की घटना के दौरान, ओएनआई 2.6 जितना ऊंचा था, जिससे यह एक बहुत मजबूत अल नीनो बन गया था।

अल नीनो कैसे कर सकता है मॉनसून को बर्बाद

इस बारे में इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ ट्रॉपिकल मेट्रोलॉजी (आईआईटीएम), पुणे से जुड़े जलवायु वैज्ञानिक रॉक्सी मैथ्यू कोल ने डाउन टू अर्थ को बताया कि, "इस साल मॉनसून पर एल नीनो का प्रभाव पड़ने की प्रबल आशंका है। ऐसे में देश के किसानों को इसके लिए तैयार रहने की जरूरत है।"

उनके मुताबिक आमतौर पर अल नीनो की घटना सर्दियों में अपने चरम पर होती है, लेकिन मौजूदा घटना काफी तेजी से विकसित होती दिख रही है। वहीं मॉनसून के मौसम की शुरुआत भी देर से होने जा रही है, जो इसके प्रभाव का संकेत देती है। इसके अलावा, देश भर में इस बारे बारिश में क्षेत्रीय स्तर पर व्यापक कमी हो सकती है।

कोल के मुताबिक आमतौर पर एल नीनो वर्ष में मॉनसून की वापसी जल्द हो जाती है। ऐसे में मॉनसून की देर से शुरुआत और जल्द वापसी से बारिश का पूरा सीजन छोटा हो जाता है।

विशेषज्ञ का कहना है कि इसके अलावा, किसी भी प्रतिपूरक कारकों जैसे कि एक मजबूत हिंद महासागर द्विध्रुव (डिपोल) का विकास आदि, के होने का कोई संकेत नहीं हैं, जो आमतौर पर अल नीनो के दौरान बारिश में गिरावट की भरपाई कर देता है। हालांकि एक्सपर्ट के मुताबिक इसका यह मतलब नहीं कि भारी बारिश या बाढ़ की घटनाएं नहीं घटेंगी। उनके अनुसार वास्तव में हमें सूखे के दौरान बाढ़ के लिए तैयार रहना चाहिए।

मैरीलैंड विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान के जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुड्डे ने बताया कि, "अगर ला नीना सर्दियों से अल नीनो गर्मियों की ओर बदलाव होता है, जैसा कि आमतौर पर होता रहा है, तो जून में कम बारिश के साथ मॉनसून की शुरुआत में देरी हो सकती है।"

उनके मुताबिक 'क्रॉस-इक्वेटोरियल फ्लो' अभी भी मजबूत बना हुआ है। ऐसे में हमें यह देखना होगा कि अगले एक या दो सप्ताह में अंडमान-निकोबार और बंगाल की खाड़ी में 'ट्रफ' कैसे चलती है। गौरतलब है कि 'ट्रफ' अपेक्षाकृत कम दबाव का एक लम्बा क्षेत्र होता है, जो कम दबाव क्षेत्र के केंद्र से फैला होता है।

एक्सपर्ट ने सम्भावना जताई है कि इसका एक अन्य कारण, मॉनसून की शुरुआत से ठीक पहले एक अन्य चक्रवात के बनने की संभावना भी हो सकती है। ऐसा आमतौर पर तब होता है जब मॉनसून या तो कमजोर या उसकी शुरुआत में देरी हो।

ऐसे में वातावरण और समुद्र में बनने वाली परिस्थितियां चक्रवात के बनने के लिए अनुकूल माहौल तैयार करती हैं। इस तरह के चक्रवात पिछले कुछ वर्षों में देखे भी गए हैं, इनमें 2020 में आया चक्रवात निसर्ग और 2021 में बनने वाले चक्रवात यास और ताउते शामिल हैं।

इस बारे में कोल ने बताया कि, "यदि मॉनसून से ठीक पहले एक चक्रवात बनता है, तो वो मौसम की शुरुआत के दौरान बारिश के वितरण को प्रभावित कर सकता है।" वहीं मुर्तुगुड्डे का कहना है कि मॉनसून की शुरुआत में अभी भी कुछ हफ्ते बाकी हैं और ऐसे में एक और चक्रवात आ सकता है, जो मॉनसून के पूर्वानुमान पर असर डाल सकता है।

गौरतलब है कि बंगाल की खाड़ी मई, 2023 के दूसरे सप्ताह में पहले ही चक्रवात मोका का सामना कर चुकी है। जो एक शक्तिशाली चक्रवात में बदल गया था और म्यांमार के तटों से टकराया था।