मौसम

मॉनसून 2023: भारत में औसत से कम होगी बारिश, उत्तराखंड और मध्यप्रदेश होंगे सबसे ज्यादा प्रभावित

आशंका है कि उत्तराखंड में औसत से 100 मिलीमीटर तक कम बारिश हो सकती हैं, वहीं केरल, मिजोरम और मणिपुर में औसत से ज्यादा बारिश की सम्भावना है

Pulaha Roy, Lalit Maurya

इस साल भारत में मॉनसून के दौरान औसत से 25 मिलीमीटर कम बारिश हो सकती है। यह जानकारी मॉनसून के पूर्वानुमान से जुड़े आंकड़ों के विश्लेषण में सामने आई है। विश्लेषण में 1996 से 2013 के दौरान मॉनसून में हुई औसत बारिश के आधार पर गणना की गई है।

गौरतलब है कि फिलहाल दक्षिण-पश्चिम मॉनसून भारतीय उपमहाद्वीप से कुछ हफ्ते दूर है। भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के मुताबिक मॉनसून 19 मई को बंगाल की खाड़ी के दक्षिण पूर्वी हिस्सों और अंडमान निकोबार द्वीप समूह के कुछ हिस्सों में पहले ही सक्रिय हो चुका है।

यह विश्लेषण रीडिंग विश्वविद्यालय के जलवायु वैज्ञानिक अक्षय देवरस द्वारा किया गया है। अपने इस विश्लेषण में उन्होंने तीन जलवायु मॉडलों (यूनाइटेड किंगडम मेट्रोलॉजिकल ऑफिस, यूरोपियन सेंटर फॉर मीडियम-रेंज वेदर फॉरकास्ट्स और नेशनल सेंटर्स फॉर एनवायर्नमेंटल प्रिडिक्शन) को आधार बनाया है और औसत मूल्य की गणना के लिए उन्हें आपस में जोड़ा है।

देवरस के अनुसार, अल नीनो में निरंतर होती प्रगति के चलते उसके दक्षिण-पूर्वी मॉनसून को प्रभावित करने की आशंका है। उन्होंने बताया कि, मॉनसून पर अल नीनो का प्रभाव जून से शुरू होने की आशंका है। जलवायु से जुड़े प्रमुख मॉडल भी जून से सितंबर के दौरान भारत के कई हिस्सों में औसत से कम बारिश की भविष्यवाणी कर रहे हैं।"

उन्होंने यह भी बताया कि कैसे इस बार 2023 में जोकि एक अल नीनो वर्ष है उसमें मॉनसून ला नीना वर्षों की तुलना में अलग होगा। एल नीनो के समय आमतौर पर भारत में मॉनसून के दौरान (जून-सितंबर) सामान्य से कम बारिश होती है। केरल में पहले ही मॉनसून की शुरूआत कुछ दिनों देर से हो रही है।

ऐसे में मॉनसून के दौरान देश में कई हिस्सों में औसत से कम वर्षा हो सकती है, जो भारत के मध्य और उत्तर-पश्चिमी हिस्सों में सबसे ज्यादा प्रबल है। इसमें मुख्य मॉनसूनी क्षेत्र भी शामिल हैं, जो देश में मॉनसून की औसत मौसमी बारिश से सीधे तौर पर संबंधित है।

ला नीना के दौरान सूखे की अवधि और आवृत्ति में आम तौर पर वृद्धि देखी जाती है। वहीं दूसरी तरफ ला नीना के दौरान स्थिति पूरी तरह बदल जाती है। अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार, अल नीनो के विपरीत ला नीना, एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) का ठंडा चरण है।

केरल, मिजोरम और मणिपुर में हो सकती है औसत से ज्यादा बारिश

डाउन टू अर्थ ने देवरस द्वारा उपयोग किए गए मॉडलों के आंकड़ों का विश्लेषण किया है और यह समझने का प्रयास किया है कि अगले चार महीनों में जून से सितंबर 2023 के बीच स्थानीय तौर पर बारिश को लेकर क्या उम्मीद की जा सकती है।

इस विश्लेषण के मुताबिक उत्तराखंड में सबसे ज्यादा विसंगति रहने की आशंका है। मतलब की वहां मॉनसून के दौरान औसत से सबसे ज्यादा कम बारिश का अनुमान है। इसके बाद मध्यप्रदेश और फिर छत्तीसगढ़ का नंबर आता है।

वहीं कर्नाटक और तमिलनाडु 1996 से 2013 की तुलना में इस बार औसत मॉनसून की उम्मीद कर सकते हैं। वहीं दूसरी तरफ केरल, मिजोरम और मणिपुर में औसत से ज्यादा बारिश की उम्मीद की जा सकती है।

हालांकि साथ ही देवरस ने जलवायु मॉडल के उपयोग में ‘सावधानी’ की भी बात कही है। देवरस के अनुसार हमें, "यह याद रखना चाहिए कि कोई भी जलवायु मॉडल पूरी तरह सटीक नहीं है। यही वजह है कि हम इन मॉडलों में एक बड़े पैमाने पर पैटर्न/प्रवृत्ति और संकेत देख रहे हैं। हालांकि साथ ही देवरस ने यह भी कहा है कि इन तीनों विशेष केंद्रों द्वारा बनाए जलवायु मॉडल भारत के मामले में अन्य की तुलना में कहीं ज्यादा बेहतर हैं।

जलवायु के दृष्टिकोण से देखें तो भीषण या कम बारिश अक्सर बाढ़ या सूखे जैसी विनाशकारी घटनाओं से जुड़ी होती हैं। हालांकि, मॉनसून का प्रभाव इनसे कहीं ज्यादा गहरा होता है। स्काईमेट के मुताबिक, भारत की 70 फीसदी आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से मॉनसून पर निर्भर करती है, जबकि देश में 26 करोड़ किसान धान, गन्ना आदि फसलों के लिए मॉनसून पर निर्भर हैं।