मौसम

सावधान! जुलाई में लौटेगा अल नीनो, भारत सहित दुनिया के कई हिस्सों को कर सकता है प्रभावित

विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने चेताया है कि भारत सहित दुनिया के कई देशों में आने वाले महीने कहीं ज्यादा गर्म रह सकते हैं। साथ ही मानसून पर इसके असर को खारिज नहीं किया जा सकता

Lalit Maurya

भारत सहित दुनिया के कई देशों में आने वाले महीने कहीं ज्यादा गर्म रह सकते हैं। आशंका है कि ऐसा अल नीनो की वजह से हो सकता है, जिसके बारे में विश्व मौसम विज्ञान संगठन (डब्ल्यूएमओ) ने चेताया है कि वो जुलाई के अंत तक बन सकता है।

गौरतलब है कि 2016 में अल नीनो और बढ़ते तापमान की वजह से वैश्विक तापमान रिकॉर्ड स्तर पर पहुंच गया था। इस बारे में डब्ल्यूएमओ द्वारा जारी नए अपडेट के मुताबिक मई से जुलाई के बीच इस बात की 60 फीसदी आशंका है कि अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) अल नीनो में बदल जाएगा।

वहीं जून से अगस्त के बीच इसके बनने की आशंका 70 फीसदी और सितंबर में 80 फीसदी तक बढ़ जाएगी। डब्ल्यूएमओ के अनुसार लंबे समय तक चलने वाले ला नीना के बाद इस एल नीनो का आना दुनिया के कई हिस्सों में मौसम और जलवायु के पैटर्न पर विपरीत असर डालेगा। साथ ही इसकी वजह से वैश्विक तापमान में भारी बढ़ोतरी की आशंका है। अनुमान है कि इसकी वजह से दुनिया के कई हिस्सों में गर्मी का कहर बढ़ जाएगा।

गौरतलब है कि असामान्य रूप से तीन साल तक चलने के बाद अब जिद्दी ला नीना का असर समाप्त हो गया है और उष्णकटिबंधीय प्रशांत मौजूदा समय में ईएनएसओ की तटस्थ स्थिति में है। मतलब वहां न तो ला नीना और न ही एल नीनो की स्थिति है। लेकिन जलवायु वैज्ञानिकों का अनुमान है कि जल्द ही यह स्थिति बदल जाएगी।

इस बारे में डब्ल्यूएमओ के महासचिव प्रोफेसर पेटेरी तालास का कहना है कि, "पिछले तीन वर्षों तक ला नीना के होने के बावजूद हमने आठ सबसे गर्म वर्षों को अनुभव किया था।" उनके अनुसार हालांकि ठन्डे ला नीना ने बढ़ते तापमान में एक अस्थाई ब्रेक का काम किया था। लेकिन अब एल नीनो के विकसित होने के साथ वैश्विक तापमान में एक नई वृद्धि होगी। इससे तापमान के नए रिकॉर्ड पर पहुंचने की आशंका बढ़ जाएगी।

क्या भारत में मानसून को कर सकता है प्रभावित

गौरतलब है कि कुछ दिनों पहले जारी स्टेट ऑफ द ग्लोबल क्लाइमेट रिपोर्ट ने इस बात की पुष्टि की थी कि 2015 से 2022 के बीच आठ वर्ष अब तक के सबसे गर्म वर्ष थे। जब तापमान में होती वृद्धि औद्योगिक काल से पहले की तुलना में 1.15 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज की गई थी। वहीं 2021 में वैश्विक तापमान औसत से 1.11 डिग्री सेल्सियस ज्यादा दर्ज किया गया था।

हाल ही में डाउन टू अर्थ ने अपने विश्लेषण में जानकारी दी थी कि उभरते अल नीनो के साथ भारत में लू का प्रकोप बढ़ सकता है। देखा जाए तो यह चेतावनी विश्व मौसम विज्ञान संगठन द्वारा जारी अपडेट से मेल खाती है, जिसमें डब्ल्यूएमओ ने वैश्विक तापमान में वृद्धि की आशंका जताई है। 

गौरतलब है कि इस साल लू का प्रकोप पिछले साल की तुलना में जल्द शुरू हो गया था। इसका असर मार्च-अप्रैल में ही नजर आने लगा था। हालांकि उसके बाद देश के कई हिस्सों में बड़े पैमाने पर आंधी, बारिश और ओले गिरने की घटनाएं हुई, जिससे दिन के तापमान में काफी गिरावट आ गई है।

इसकी वजह से कई क्षेत्र, विशेष रूप से उत्तर-पश्चिम भारत में मार्च सामान्य से अधिक ठंडा हो गया था। देखा जाए तो यह पश्चिमी विक्षोभ की एक श्रृंखला के कारण हुआ था। हालांकि आशंका है कि अल नीनो के चलते लू का प्रकोप बढ़ सकता है, जैसा कि 2015 और 2016 में हुआ था।  

वहीं भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के महानिदेशक मृत्युंजय महापात्रा ने पिछले हफ्ते भारतीय मानसून पर अल नीनो के प्रभावों को लेकर कहा था कि देश में मानसून पर इसका कोई भी असर मानसून के आधा बीत जाने के बाद ही दिखाई देगा।

उनके मुताबिक यह जरूरी नहीं कि हमेशा अल नीनो खराब मानसून की ओर ले जाएगा। बता दें कि 1951 से 2022 के बीच 15 साल अल नीनो का असर दर्ज किया गया था जिनमें से छह सालों में सामान्य से ज्यादा बारिश हुई थी।

वहीं मैरीलैंड विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे से जुड़े जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुड्डे ने बताया है कि गर्म होते महासागरों के चलते चक्रवात भी आ सकते हैं, लेकिन अल नीनो इसकी संभावना को कम कर सकता है। उन्होंने बताया कि, "वसंत के दौरान गर्म अरब सागर एक मजबूत मानसून का कारण बन सकता है जो अल नीनो के खिलाफ थोड़ी बहुत क्षतिपूर्ति कर सकता है।"

ऐसे में डब्ल्यूएमओ ने चेतावनी दी है कि दुनिया को अल नीनो के लिए तैयार रहना चाहिए जो अपने साथ दुनिया के कई हिस्सों में भीषण गर्मी, सूखा लेकर आएगा। इससे बारिश भी प्रभावित हो सकती है। साथ ही मौसम और जलवायु से जुड़ी चरम घटनाओं में भी चिंगारी लगा सकता है। ऐसे में डब्ल्यूएमओ ने सभी के लिए अर्ली वार्निंग पर भी जोर दिया है।

डब्ल्यूएमओ के मुताबिक जहां एल नीनो की यह घटनाएं आमतौर पर दक्षिण अमेरिका, हॉर्न ऑफ अफ्रीका और मध्य एशिया के कुछ हिस्सों में होने वाली बारिश में इजाफा कर सकता है। वहीं दूसरी तरफ इसके विपरीत इसकी वजह से ऑस्ट्रेलिया, इंडोनेशिया और दक्षिण एशिया के कुछ हिस्सों में गंभीर सूखा पड़ सकता है।

क्या होती हैं अल नीनो और ला नीना की घटनाएं

मौसम से जुड़ी इन घटनाओं को आमतौर पर एल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) के नाम से जाना जाता है। यह दोनों ही घटनाएं प्रशांत महासागर की सतह के तापमान में होने वाले बदलावों से जुड़ी हैं। इसमें जहां एल नीनो तापमान में होने वाली वृद्धि से जुड़ा है वहीं ला नीना तापमान में आने वाली गिरावट को दर्शाता है, जिसका प्रभाव करीब नौ महीनों तक रहता है।

वैज्ञानिक रूप से देखें तो एल-नीनो प्रशांत महासागर के भूमध्यीय क्षेत्र की उस मौसमी घटना का नाम है, जिसमें पानी की सतह का तापमान सामान्य से अधिक गर्म हो जाता है और हवा पूर्व की ओर बहने लगती है। इसकी वजह से न केवल समुद्र पर बल्कि वायुमंडल पर भी प्रभाव पड़ता है। जलवायु वैज्ञानिकों के मुताबिक इस घटना के चलते समुद्र का तापमान चार से पांच डिग्री सेल्सियस तक गर्म हो जाता है।

वहीं इसके विपरीत ला नीना पश्चिमी प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में सामान्य से कम वायुदाब बनने की स्थिति में बनता है। इसके कारण समुद्र का तापमान सामान्य से घट जाता है। आमतौर पर इन दोनों ही घटनाओं का असर नौ से 12 महीने तक रहता है, पर कभी-कभी यह स्थिति कई वर्षों तक बनी रह सकती है।

देखा जाए तो यह दोनों ही घटनाएं दुनिया भर में मौसम, बारिश, बाढ़, तूफान और सूखा जैसी घटनाओं को प्रभावित करती हैं। इनकी वजह से कहीं सामान्य से ज्यादा बारिश होती है तो कहीं सूखा पड़ता है, और कहीं तूफान आते हैं।