आसाम, बिहार में लगातार बाढ़ की विभीषिका से हर साल लाखों लोग बेघर हो जाते है। इंटरनेशनल फेडरेशन ऑफ रेड क्रॉस के अनुसार भारत में अब तक 68 लाख से अधिक लोग बाढ़ से प्रभावित हुए हैं। हाल ही में भारत, बांग्लादेश और नेपाल में लगभग 550 लोग मारे गए हैं। जबकि पिछले महीने बाढ़ आने के बाद से लाखों लोग अपने घरों से विस्थापित हो गए हैं। अब वैज्ञानिक इस बात की खोज में लगे है कि हर साल मानसूनी बारिश किसी एक क्षेत्र में कैसे बढ़ रही है।
जापान के टोक्यो मेट्रोपॉलिटन यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं ने एशियाई मानसून को लेकर एक अध्ययन किया है। उन्होंने इसके लिए हाई-रिज़ॉल्यूशन क्लाइमेट सिमुलेशन (मॉडल) का उपयोग करके एशियाई मानसून क्षेत्रों में ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से मौसम में बदलाव आने के बारे में बताया है।
एशियाई क्षेत्र में एक बड़ी आबादी रहती है और मानसून दुनिया के जल चक्र को चलाने में अहम भूमिका निभाता है। शोधकर्ताओं ने ग्लोबल वार्मिंग के चलते स्पष्ट किया कि बादल कैसे बन और बरस रहे हैं। उष्णकटिबंधीय मानसून जैसे कि टाइफून/ चक्रवात केंद्रित जल वाष्प की प्रमुख भूमिका निभाते हुए मानसून के बरसने में काफी वृद्धि करते हैं। यह अध्ययन जर्नल ऑफ़ क्लाइमेट में प्रकाशित हुआ है।
जैसा कि विश्व ने ग्लोबल वार्मिंग के प्रभाव से मुकाबला करने के लिए खुद को तैयार किया है, अब पहले से कहीं अधिक महत्वपूर्ण यह जानना है कि जलवायु किस तरह बदल रही है, यहां इसका सटीक विस्तृत चित्रण किया गया है। यह एशियाई मानसूनी क्षेत्रों पर मजूबती से लागू होता है, जहां साल भर में भारी मात्रा में होने वाली वर्षा इसे वैश्विक ऊर्जा और जल चक्र का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाती है।
मानसून की गंभीरता और प्रकृति को टाइफून / चक्रवात जैसे उष्णकटिबंधीय गड़बड़ियां बढ़ाती हैं। मानसून के स्थानीय अनुमान के आधार पर आपदा को कम करने की रणनीतियों के तहत उपयोग किया जा सकता है।
सहायक प्रोफेसर हिरोशी ताकाहाशी की अगुवाई में एक टीम ने एशियाई मानसूनी क्षेत्रों में मौसम के विस्तृत विकास का अध्ययन किया। इसके लिए उन्होंने एनआईसीएएम (नॉन-हाइड्रोस्टैटिक आईसीओसहार्ड एटमॉस्फेरिक मॉडल) के रूप में जाना जाने वाला एक उच्च-रिज़ॉल्यूशन जलवायु मॉडल का उपयोग किया।
मॉडल की प्रमुख ताकत भौतिक सिद्धांतों के आधार पर बादलों के बनने और बरसने के बारे में जानकारी देना है। इससे हवा के दबाव में कमी आने पर प्रभाव और बाद में वर्षा को जन्म देने वाले संवहनी प्रभाव को समझा जा सकता है। इस स्तर पर टीम को सटीकता के साथ एशियाई मानसून के कारण भविष्य में होने वाली वर्षा एंव उसके पैटर्न का अध्ययन करने में आसानी हुई।
टीम ने पिछले 30 साल के ग्लोबल वार्मिंग को सिमुलेशन के माध्यम से मॉनसून पर अजमाया। जहां उत्तरी भारत, इंडोचीन प्रायद्वीप और उत्तरी प्रशांत के पश्चिमी भागों में वर्षा के स्तर में काफी वृद्धि देखी गई है। यह सर्वविदित है कि ग्लोबल वार्मिंग से अधिक वर्षा होती है, जो वायुमंडल में अधिक जल वाष्प के पहुंचने के कारण होता है। हालांकि, प्रत्येक क्षेत्र की विभिन्न विशेषताओं का मतलब है कि परिवर्तन अलग-अलग तरह का हो सकता हैं।
इसके अलावा, टीम ने समुद्र की सतह के तापमान के प्रभाव पर नजर रखी। पिछले अध्ययनों ने अक्सर तापमान में एक वैश्विक, समान वृद्धि और अल नीनो प्रभाव द्वारा बनाई गई क्षेत्रीय विविधताओं को लागू किया था। शोधकर्ताओं ने अपने प्रभावों को अलग करने के लिए, उन्होंने दो स्वतंत्र सिमुलेशन में उन्हें अलग से जोड़ा, दुनिया भर में समुद्र की सतह के तापमान में वृद्धि हुई, जिसमें बढ़ी हुई वर्षा ने सबसे अधिक योगदान दिया।
एशिया में मानसून के मौसम के प्रभाव विनाशकारी हो सकते हैं। उदाहरणों में कई स्थान शामिल हैं जैसे 2018 और 2020 में पश्चिमी जापान और पूर्वी एशियाई देशों में आई बाढ़। इन क्षेत्रीय आधार पर निकाले गए निष्कर्षों से, दुनिया भर में आपदा को कम करने की कोशिश की जा सकती है, साथ ही बुनियादी ढांचे के विकास और नीतिगत निर्णयों में यह महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है।