उत्तराखंड में तीन दिन की बारिश से आई तबाही के घाव अभी ताजा ही है कि भारी बारिश के बाद अब भारी बर्फबारी शुरू हो गई है।
देहरादून मौसम विज्ञान केंद्र के निदेशक बिक्रम सिंह ने कहा कि मजबूत पश्चिमी विक्षोभ के चलते भारी बारिश हुई और इसी वजह से उच्च हिमालयी क्षेत्र में बर्फ गिरी है। 17, 18, 19 और फिर 23, 24, 25 अक्टूबर को बागेश्वर, पिथौरागढ़, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी, चमोली समेत उच्च हिमालयी क्षेत्र में बर्फ गिरी है।
हालांकि इसे असामान्य नहीं कहा जा सकता। अक्टूबर में भी थोड़ी बहुत बर्फ गिरती है। लेकिन असामान्य तेज बारिश के चलते बर्फबारी भी अपेक्षाकृत ज्यादा हुई, ये कहा जा सकता है।
वहीं, मौसम विज्ञान केंद्र, देहरादून में काम कर रहे मौसम विज्ञानी रोहित थपलियाल कहते हैं कि 17 से 19 अक्टूबर की बारिश और बर्फ़बारी को छोड़ दें तो बारिश और बर्फ़बारी के साथ ही तापमान अब सामान्य की ओर है। वह कहते हैं कि 17-19 की बारिश-बर्फ़बारी से पहले तो अक्टूबर में तापमान सामान्य से अधिक ही था। अब यह 'ल़ांग पीरियड नॉर्मल' पर आ गया है।
इस साल अक्टूबर में बारिश के सारे रिकॉर्ड टूट गए। जबकि वर्ष 2020 में अक्टूबर से दिसंबर के बीच राज्य में सामान्य से 71% कम बारिश हुई। इस अंतराल में सामान्य औसत बारिश 60.5 मिलीमीटर मानी जाती है। 2020 में 17.8 मिमी दर्ज की गई थी। वर्ष 2019 में अक्टूबर-दिसंबर के बीच 114.2 मिमी बारिश हुई थी। 2018 में 25.5, 2017 में 21.3 और 2016 में 16.2 मिमी बारिश दर्ज की गई।
बारिश के साथ ऊंचाई वाले क्षेत्रों में बर्फबारी से देहरादून समेत पर्वतीय क्षेत्रों में अक्टूबर से ही मौसम सर्द हो गया है। वैज्ञानिकों के अनुमान और किसानों की हालत एकदम अलग हैं।
उत्तरकाशी के हर्षिल घाटी के सुखी गांव के किसान-बागवान मोहन सिंह कहते हैं कि मौसम की आंख-मिचौली खेती पर भारी पड़ रही है। हर्षिल के सेब के साथ ही राजमा भी मशहूर हैं लेकिन बेमौसम बरसात से राजमा की फ़सल को भारी नुकसान हो रहा है। उनके अनुसार 17-18 तारीख से रोज़ दोपहर बाद बारिश हो रही है। इसके चलते राजमा खेतों में ही गीली हो गई है।
वह बताते हैं कि इस बार राजमा की बुआई के समय अप्रैल-मई में भी बेमौसम बारिश हो गई थी। जिसकी वजह से फ़सल को काफी नुकसान हुआ था। अक्टूबर की बारिश ने किसानों को काफ़ी नुकसान पहुंचाया है।
सेब पर भी असर
असमय बारिश और बर्फ़बारी सेब की फ़सल को भी नुकसान पहुंचा रही है। वैसे तो हर्षिल में 80 फ़ीसदी तक सेब की फ़सल निकाली जा चुकी है लेकिन हर्षिल और थराली के कुछ बगीचों में अभी सेब पेड़ों पर लगे हैं। मोहन कहते हैं कि फ़सल को धूप न मिलने की वजह से उसका रंग सही नहीं आ पा रहा। धूप लगती तो सेब लाल होते लेकिन अब हरे ही रह गए हैं। इसकी वजह से सेब की क्वालिटी और दाम पर सीधा असर पड़ रहा है।
मोहन यह भी कहते हैं कि किसान बर्फ़बारी की आशंका में जल्दबाज़ी में भी सेब तोड़ रहे हैं क्योंकि सेबों से लदा पेड़ बर्फ़ पड़ने के बाद वजन की वजह से टूट भी सकता है जो बड़ा नुकसान होगा। वह कहते हैं अक्टूबर-नवंबर में बर्फ़बारी न होकर दिसंबर में होती तो फ़सल के लिए अच्छा होता।