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डाउन टू अर्थ विश्लेषण: उभरते अल नीनो के साथ भारत में बढ़ सकता है लू का प्रकोप

तीन मार्च से भारत के 13 राज्यों और एक केंद्र शासित प्रदेश में लू का प्रकोप देखा गया, जहां पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा तापमान दर्ज किया गया

Akshit Sangomla, Lalit Maurya

इस साल 2023 में मार्च-अप्रैल से ही लू का कहर पड़ना शुरू हो गया। जब इन दो महीनों में ही 13 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेश चंडीगढ़ में लू की घटनाएं दर्ज की गई। आशंका है कि लू का कहर आने वाले समय में कहीं ज्यादा भीषण रूप ले सकती हैं, क्योंकि मई के दौरान देश में गर्मियां अपने चरम की ओर बढ़ती हैं। वहीं जून से मानसून की शुरुआत होती है। विशेषज्ञ इसके पीछे भूमध्यरेखीय प्रशांत महासागर में बन रहे अल नीनो को जिम्मेवार मान रहे हैं। 

डाउन टू अर्थ द्वारा भारतीय मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) द्वारा जारी आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि तीन मार्च 2023 से देश के 13 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेश चंडीगढ़ में लू चल रही है। इन दो महीनों में पश्चिम बंगाल में सबसे ज्यादा नौ दिनों तक लू की घटनांए दर्ज की गई हैं।

इसके बाद आंध्र प्रदेश और बिहार में सात-सात दिन, जबकि ओडिशा पांच दिनों तक लू की चपेट में रहा। इसी तरह महाराष्ट्र और कर्नाटक में चार-चार दिन लू की घटनांए दर्ज की गई। यह आंकड़ा 20 अप्रैल 2023 तक का है।

गौरतलब है कि इस साल लू का प्रकोप पिछले साल की तुलना में जल्द शुरू हो गया है। जहां इस साल तीन मार्च से तटीय कर्नाटक में इसकी शुरुआत हुई। जो 12 मार्च को समाप्त हुई, इसके बाद महाराष्ट्र, गुजरात, गोवा और कर्नाटक के पश्चिमी तटीय क्षेत्रों को इसके प्रभावित किया। वहीं पिछले साल 2022 में 11 मार्च से गुजरात में लू का कहर शुरू हुआ था।

उसके बाद देश भर में बड़े पैमाने पर आंधी, बारिश और ओले गिरने की घटनाएं हुई, जिससे दिन के तापमान में काफी गिरावट आई। इसकी वजह से कई क्षेत्रों में, विशेष रूप से उत्तर-पश्चिम भारत में मार्च सामान्य से अधिक ठंडा हो गया। देखा जाए तो यह पश्चिमी विक्षोभ की एक श्रृंखला के कारण हुआ था।

वहीं लू का दूसरा दौर 12 अप्रैल 2023 को पूर्वी राज्य पश्चिम बंगाल से शुरू हुआ और जो अब भी जारी है। प्रभावित क्षेत्रों में इस बदलाव का कारण उत्तरी हिंद महासागर का गर्म होना है। लेकिन साथ ही उत्तर पश्चिम भारत भी बहुत जल्द गर्मी की चपेट में आ सकता है।

नेशनल ओसेनिक एंड एटमोस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन (एनओएए) द्वारा अल नीनो-दक्षिणी दोलन (ईएनएसओ) के लिए जारी नवीनतम अपडेट से पता चला है कि मई-जून-जुलाई में अल नीनो के बनने की 60 फीसदी से अधिक संभावना है, जो जून-जुलाई-अगस्त में लगभग 75 फीसदी तक बढ़ सकती है।

गौरतलब है कि अल नीनो, जो ईएनएसओ घटना का सामान्य से अधिक गर्म चरण है, आमतौर पर भारत में भीषण लू का कारण बन सकता है, जैसा कि 2015 और 2016 में हुआ था। मैरीलैंड विश्वविद्यालय और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, बॉम्बे के एक जलवायु वैज्ञानिक रघु मुर्तुगुड्डे ने इस बारे में बताया कि, "अरब सागर और बंगाल की खाड़ी के ऊपर सतही हवाएं एंटीसाइक्लोन के रूप में बन गई, जिन्होंने उत्तरी हिंद महासागर, विशेष रूप से अरब सागर को गर्म कर दिया था।"

उनके अनुसार अब मिड-लेवल वेस्टरली जेट पवनें उस जगह पर हैं, जो सतही हवाएं पैदा कर रही हैं। यह हवाएं समुद्र की गर्मी को खाड़ी के उत्तरपूर्वी हिस्से में पंप कर रही हैं, जिससे पश्चिमी और उत्तर-पश्चिमी भारत भी गर्म हो रहा है। ऐसे में लू का कहर जारी रहने की आशंका है। उनका कहना है कि गर्म होते महासागरों के चलते चक्रवात भी आ सकते हैं। लेकिन अल नीनो इसकी संभावना को रोक सकता है। मुर्तुगुड्डे ने निष्कर्ष के रूप में बताया कि, "वसंत के दौरान गर्म अरब सागर एक मजबूत मानसून का कारण बन सकता है जो अल नीनो के खिलाफ थोड़ी बहुत क्षतिपूर्ति कर सकता है।