यूरोपीय और अमेरिका की एक बड़ी आबादी अब अपने घरों में एक नया उपकरण लगा रही है। इसके बारे में उन्होंने अब तक कभी सोचा भी नहीं था। एयरकंडीशनर, जो उनके लिए इच्छा या आकांक्षा पूरी करने वाली संपत्ति नहीं है, बल्कि बढ़ते हीट वेव की वजह से जरूरत बन चुका है, जो इन देशों में निरंतर बढ़ रहा है।
वर्तमान में अमेरिका का लगभग 60 फीसदी हिस्सा हीट वेव की चपेट में है। जर्मनी, बेलजियम, नीदरलैंड जैसे देशों में उच्च तापमान रिकॉर्ड किया जा रहा है। जुलाई 30 को ब्रिटेन के मौसम विभाग ने कहा कि पिछले सप्ताह रिकॉर्ड किया गया 38.7 डिग्री सेल्सियस तापमान देश के इतिहास का सबसे अधिक तापमान है।
जुलाई 2019 के पहले सप्ताह में यूएस के सेंसस ब्यूरो ने अपनी वार्षिक रिपोर्ट जारी की, जिसे नए घरों की विशेषता कहा गया। इसमें कहा गया है कि देश में तेजी से बढ़ रहे हीट वेव की वजह से घरों में एयरकंडीशनर की संख्या तेजी से बढ़ रही है। वर्ष 1974 में केवल 65 फीसद नए घरों में एयरकंडीशनिंग की व्यवस्था की गई थी, लेकिन 2018 में यह बढ़ कर 94 फीसद हो गया।
अमेरिका के नॉर्थ ईस्ट जैसे इलाकों में प्राकृतिक वातानुकूलन या पारंपरिक कूलर के मुकाबले बजाय घर में एयरकंडीशनिंग पर ज्यादा ध्यान दिया जा रहा है और इसका हीट वेव से लिंक है। देश के दक्षिण इलाके में एयरकंडीशनिंग की परंपरा अधिक रही है।
जर्मनी ने 1881 से लेकर अब तक पिछले साल को सबसे अधिक गर्म वर्ष घोषित किया। देश के व्यापारी संगठन ने एयर कंडीशिनिंग के बारे में हाल ही में कहा है कि देश में इस वर्ष 15 फीसदी एयरकंडीशनर की बिक्री बढ़ी है, ऐसा पहले कभी नहीं हुआ। जर्मनी ने 2 लाख एसी बेचे। जर्मन जब भारत में होते हैं तो वे यहां एसी का इस्तेमाल करने की बजाय पंखा खोल देते हैं और खिड़की के दरवाजे खोल देते हैं।
ऊर्जा विशेषज्ञ इसे सामान्य घटना बता रहे हैं। उनके मुताबिक, जिन भी इलाकों में गर्मी या हीट वेव बढ़ती है, उन इलाकों में सामान्य इलाकों के मुकाबले शीतलन के लिए अधिक ऊर्जा की खपत होती है
इंटरनेशनल एनर्जी एसोसिएशन (आईईए) के मुताबिक, 280 करोड़ लोग गर्म देशों में रहते हैं और इन देशों का औसत तापतान 25 डिग्री सेल्सियस है। आईईए के एनर्जी टैक्नोलॉजी पॉलिसी एनालिस्ट जॉन ड्यूलस और एनालिस्ट चियरा डेलमास्ट्रो के ब्लॉग के मुताबिक, कूलिंग सर्विस एक बड़ा मुद्दा बनता जा रहा है, खासकर विकासशील देशों में, जहां एयर कंडीशनर सामान्य चीज नहीं है।
विकासशील देशों में 10 फीसदी से कम घर ऐसे हैं, जहां एयर कंडीशनर हैं। जबकि दूसरे ओर, जापान, अमेरिका जैसे देशों में 90 फीसदी घरों में एयरंडीकशनर हैं। लेकिन दोनों ही मामलों में एयर कंडीशनर का इस्तेमाल बढ़ने की संभावना है या यहां पहले से एयर कंडीशनर का इस्तेमाल बढ़ चुका है।
आईईए के आंकड़ों के मुताबिक, साल 2050 तक गर्म देशों में रह रहे लगभग 250 करोड़ लोगों के पास अपना एसी होगा। जबकि अभी लगभग 190 करोड़ लोग ऐसे हैं, जिन्हें एसी की जरूरत है, लेकिन उनके पास एसी नहीं है। अनुमान है कि 2050 तक गर्म देशों में रह रहे लगभग 75 फीसदी एसी का इस्तेमाल शुरू कर देंगे।
चियारा और जॉन लिखते हैं कि इसका मतलब है कि 2050 तक लगभग 72 करोड़ नए लोग या लगभग 17 करोड़ नए घरों में एयर कंडीशनर की पहुंच हो जाएगी। जो वर्ष 2100 तक 160 करोड़ तक पहुंच जाएगी, जो भारत और ब्राजील की कुल आबादी के समान होगी।
2030 तक सब जगह तक बिजली पहुंचने के तरीकों की खोज करने वाले आईईए का सतत विकास परिदृश्य कहता है कि 2050 तक 17.50 करोड़ घरों तक एसी पहुंचने के बाद बिजली की मांग 105 टेरावॉट प्रति घंटा हो जाएगी, इसमें 45 फीसदी हिस्सा एसी की खपत का होगा। चूंकि अभी भी लाखों लोगों तक बिजली नहीं पहुंच पाई है, इसलिए डीजल जनरेटर का इस्तेमाल भी बढ़ेगा। यह सही है कि इससे न केवल कार्बन उत्सर्जन बढ़ेगा, बल्कि घरों का खर्च भी बढ़ेगा।