दक्षिण अफ्रीका के समृद्ध शहरों में से एक केपटाउन के होटल के कमरों की दीवारों पर आजकल जल संरक्षण संबंधी एक कहावत दीवारों की शोभा बढ़ा रही है- “यदि भूरे रंग का है तो बहने दो, यदि पीला है तो रहने दो।” इस कहावत का मतलब बखूबी समझ में आता है जब हम शहर के प्राकृतिक झरनों की ओर जाने वाले रास्ते स्प्रिंग्स वे की तरफ बढ़ते हैं। यहां सपाट ट्रोली जिसे ऊबर सेवा के नाम से बुलाया जा रहा है। इसके जरिए पानी के गैलनों को कारों तक पहुंचाते हुए देखा जा सकता है।
दरअसल, केपटाउन पर जीरो डे यानी नलों से पानी बंद होने का गंभीर खतरा मंडरा रहा है जो फिलहाल अगले साल तक टल गया है। लेकिन समस्या अब भी गंभीर बनी हुई है। यहां की स्थानीय कानून व्यवस्था की निगरानी में लोग स्प्रिंग वाटर के पास लगे तीन इंच की पाइप से पानी भरने के लिए एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में दिखाई पड़ते हैं। यहां पहले से ही पानी संग्रहित करने के लिए कड़े नियम बनाए गए हैं। यहां की नगरपालिका ने नियम बनाया है कि यदि किसी घर में एक महीने में 6,000 लीटर से अधिक पानी का इस्तेमाल किया गया (यानि प्रति व्यक्ति 50 लीटर पानी प्रति दिन) तो उस पर आसमान छूने वाली टैरिफ और दंड का प्रावधान लागू किया जाएगा। पिछले वर्ष सितंबर में इस्तेमाल करने की यह सीमा प्रति व्यक्ति प्रति दिन 87 लीटर थी।
जब से केपटाउन में यह महसूस किया गया कि यहां सूखा पड़ने वाला है तब से एक समय न्यूलैंड का शांत रहने वाला यह स्प्रिंग-वे नामक टोला जहां उच्च मध्यवर्गीय लोग रहते हैं, अब भीड़-भाड़ वाली जगह में तब्दील हो गया है। जैसा कि केपटाउन के एक निवासी लुइस ने बताया, “हम यहां प्रतिदिन पानी लेने आते हैं। पानी की निर्धारित सीमा कम पड़ती है, इसलिए स्प्रिंग से अतिरिक्त लेकर राजमर्रा की जरूरतें पूरी करते हैं।” हालांकि सीधे झरने से पानी इकट्ठा करने पर फिलहाल कोई सीमा लागू नहीं है।
पहले 15 जुलाई, 2018 से जीरो डे लागू करने की घोषणा की गई, इसे अब 2019 कर दिया है। हालांकि बांधों के पानी के स्तर में कोई परिवर्तन नहीं आया। जीरो डे से प्रति व्यक्ति प्रतिदिन 25 लीटर पानी की सीमा निर्धारित है। बांधों में पानी की क्षमता 13 प्रतिशत होने पर जीरो डे लागू हो जाता है। जब ऐसा होगा तब यहां के निवासियों को हथियार बंद सैनिकों की निगरानी में पानी इकट्ठा करने के लिए लाइनों में लगकर पानी लेना पड़ेगा। 25 लीटर पानी कितना कम पानी है! देखा जाए तो जब हम एक बार शौचालय का इस्तेमाल करते हैं तो कम से कम 9 लीटर पानी बह जाता है। 25 लीटर पानी की सीमा लागू होने का समय अब दूर नहीं है, भले ही कैपटाउनवासी 50 लीटर की सीमा को ही स्वीकार नहीं कर पा रहे हैं।
शून्य दिवस उसी दिन से लागू हो जाएगा जब सभी 6 बांधों में जल का स्तर 13 प्रतिशत तक पहुंच जाएगा। जब से 25 लीटर पानी की सीमा तय करने की बात सामने आई है, तब से लोगों की बेचैनी बढ़ी है। यह सीमा लागू करते समय शहर की सुरक्षा व्यवस्था कैसे बनाई रखी जा सकेगी, यहां उग्रता के लक्षण स्पष्ट तौर पर दिखने लगे हैं।
मौसम विज्ञान का लेखा जोखा
ऐसा उस शहर के साथ कैसे हुआ जिसे जल संरक्षण और जल आपूर्ति प्रबंधन समिति के बेहतर कार्यों के कारण 2015 में सी-40 शहरों की पुरस्कार सूची में शामिल किया गया था। जलवायु परिवर्तन इसका सबसे बड़ा कारण है। केपटाउन पूरी तरह वर्षा के जल पर निर्भर रहता है जिससे इस शहर के 6 जलाशय भरते हैं। 2015 से 2017 तक हुए औसत से भी कम वर्षा ने यहां के जलाशयों को सूखे के कगार पर लाकर खड़ा कर दिया है।
वास्तव में 2015 से पश्चिम केप का यह क्षेत्र जहां केपटाउन बसा हुआ है, भयानक सूखे के कगार पर है। 2014 से 2017 के बीच उत्पन्न हुए अल नीनो के दुष्परिणाम के कारण दक्षिणी अफ्रीका के साथ-साथ पूर्वी अफ्रीका में दक्षिण अफ्रीका के कुछ स्थानों के साथ ही जिम्बाव्बे, मलावी, रवांडा, मेडागास्कर, मोजाम्बिक, बोत्सवाना, जाम्बिया, सोमालिया, दिजीबोती, इथोपिया, केन्या और युगांडा जैसे देशों में सूखे की स्थिति उत्पन्न हुई थी। 2017 में औसत से थोड़ा ज्यादा हुई बारिश से इन देशों की स्थिति संभल गई, लेकिन दक्षिण अफ्रीका का यह दक्षिणी छोर इतना भाग्यशाली नहीं रहा। इसीलिए दक्षिण अफ्रीका को इस वर्ष भी सूखे की स्थिति से निपटना होगा।
केपटाउन विश्वविद्यालय से जलवायु पर शोध कर रहे पियोत्र वोल्सकी ने ऐतिहासिक वर्षा के आंकड़ों का विस्तृत अध्ययन किया है। वह बताते हैं कि 2017 में पड़ा सूखा अपने आप में अनोखा है, जिसकी संभावना 36 वर्षों में एक बार बनती है। इस शीर्ष सूखे की असंभावना विचारने योग्य है, जबकि इन तीन वर्षों के दौरान पड़ा सूखा नि:संदेह आने आप में एक रिकॉर्ड है। वह विश्वविद्यालय के वेबपेज पर लिखे गए अपने एक विश्लेषण में अंकित करते हैं, “मेरी खोज के अनुसार इस तरह का सूखा 311 वर्ष में एक बार पड़ता है और 90 प्रतिशत सम्भावना इस बात की है कि यह 105 वर्ष और 1280 वर्ष के बीच में या केवल एक बार पड़े।” दक्षिण अफ्रीका वेदर सर्विस (एसएडब्ल्यूएस) के अनुसार, केपटाउन में वर्ष में 820 मिलीमीटर बारिश होती है, जिसमें 77 प्रतिशत बारिश ठंड के मौसम के दौरान होती है और बाकी गर्मी के मौसम में होती है। औसत वर्षा के अनुसार, यह क्षेत्र थोड़ा बंजर है, लेकिन इन मानकों के बावजूद पिछले तीन वर्ष बहुत ही खराब रहे हैं। साल 1921 से जब से वर्षा का रिकॉर्ड रखा जाने लगा है तब से ये दो वर्ष बहुत ही खराब रहे हैं। यहां वर्ष 2015 में 549 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई, वर्ष 2016 में 634 मिलीमीटर और 2017 में यह 499 मिलीमीटर दर्ज की गई। यहां अभी जो सूखा पड़ा है इसका मतलब यह नहीं कि लगातार बारिश नहीं होने के कारण हो रहा है, वास्तव में यहां के बारिश की यही प्रमुख विशेषता रही है कि यह साल दर साल इसी तरह से परिवर्तनशील रही है। जब केपटाउन में सन 2013 में 1211 मिलीमीटर वर्षा दर्ज की गई तो यह अब तक का छठा सबसे अधिक वर्षा वाला वर्ष था और जब 2014 में 853 मिलीमीटर दर्ज की गई तो यह भी औसत से अधिक ही था।
कृषि पर प्रभाव और फसल कम होना
जब डाउन टू अर्थ ने मार्च के शुरुआती दिनों में पश्चिमी केपटाउन के सबसे बड़े व वहां के लोगों के लिए प्रमुख जल स्त्रोत की यात्रा की तब यहां 10 प्रतिशत तक जल था। यहां 500 वर्ग किलोमीटर तक धूल का गुबार पेड़ों के ठूंठों पर देखा गया जो जलस्त्रोत की तलहटी पर खड़े थे और जल सूखकर एक पतली धारा में रूप तब्दील हो चुका था। चार वर्ष पहले लगभग इसी समय यही विशालकाय माटीमयी जलधारा जो सोन्डेरेंड नदी पर है, 80 प्रतिशत तक जल से भरी थी।
इस सूखे का प्रभाव कृषि पर, जो ज्यादातर मेवों की खेती पर साफ दिखाई दे रहा है। पश्चिमी केपटाउन में सेब, नाशपाती व अन्य फलों की फसलों की पैदावार 20 प्रतिशत तक कम हुई है। इनकी खेती इसी जलस्त्रोत पर निर्भर थी। जब पिछले साल बारिश कम हुई तो किसानों ने फसल के लिए बीज ही नहीं बोए, जिसका प्रभाव फसल कटाई के समय साफतौर पर दिखाई पड़ रहा था। फरवरी माह के दौरान दक्षिण अफ्रीकी सरकार ने पूर्वी, पश्चिमी और उत्तरी केपटाउन में राष्ट्रीय आपदा घोषित की थी।
कमर्शियल स्टिवोडेरिंग एग्रीकल्चर एंड अलाइड वर्कर्स यूनियन (सीएसएएडब्ल्यूयू) के प्रवक्ता कैरेल स्वार्ट ने कहा, “पानी की कम उपलब्धता के कारण इस बार छोटे किसानों ने खेती ही नहीं की, इसलिए कुछ भी पैदावार नहीं हुई। किसानों ने गर्मी के मौसम में होने वाली कठिनाई के पूर्वााभास के कारण परेशान होकर पहले से ही अपने पशुधन का एक हिस्सा बेच दिया है। इसका असर नौकरी की सुरक्षा पर भी पड़ रहा है। सरकार द्वारा इस दिशा में समाधान का प्रयास नहीं दिखाई देता और न ही किसानों को किसी तरह की सहायता देने की बात हो रही है।”
असमानता में वृद्धि
केवल किसान ही नहीं, इस समस्या ने, इस वृहत तौर पर असमानता वाले शहर में जहां एक साथ महल, शरण स्थल व गरीब बस्तियां है, हर किसी को प्रभावित किया है। लोग अपने आर्थिक हालात के अनुसार जल संकट का सामना कर रहे हैं। अमीर लोग इस संकट की घड़ी में भूस्तर से ताजा जल निकासी के लिए गहराई तक बोरवेल खुदवाने में पैसा बहा रहे हैं। यही नहीं वे जल संरक्षण की तकनीकी पर भी दिल खोलकर खर्च कर रहे हैं। वहां के एक संपन्न इलाके हाउट-बे की रहने वाली स्टेफनी पीटर ने पिछले साल कुल इस्तेमाल किए जाने वाले जल में कमी लाने के लिए 2,200 डॉलर (1,43,275 रुपए) खर्च किए। उन्होंने यह खर्च करके अपने घर में जल के किफायती इस्तेमाल के लिए तकनीकी संयत्र जैसे वर्षा के जल से सिंचाई करने, ग्रे वाटर संयत्र (यह नहाने, वाश बेसिन आदि में प्रयोग हुए जल को पुनः इस्तेमाल के लिए साफ करता है) बगीचे के पानी के लिए, एयर डिफ्यूजिंग टैप (इसमें पानी के साथ हवा मिलाने पर 80 प्रतिशत पानी का इस्तेमाल कम हो जाता है) लगवाकर अपने घर को पूरी तरह से बदल दिया है। स्टेफनी यह बात बड़े गर्व से बताती हैं कि उन्होंने अपने निजी तरण लाल के लिए बैकवाश वाटर कलेक्शन संयत्र लगवाया है जिससे एक महीने में 2,000 लीटर पानी की बचत होती है।
वहीं गरीबों के लिए शहरी प्रशासन द्वारा पानी की खपत की तय सीमा संबंधी नियम और कम इस्तेमाल करने के लिए आह्वान का उनके लिए कोई मतलब नहीं है। तरण ताल जैसी कुलीन सुविधाओं से इतर वे तो सामुदायिक नल से अपनी जरूरतों के लिए पानी भरते हैं। अनौपचारिक रिहायसी इलाके इमीजामो येथू में रहने वाले लोगों में जल संकट का तनाव साफतौर पर महसूस किया जा सकता है और यह स्टेफनी के घर से थोड़ी ही दूरी पर है। यह रिहाइश 2,000 लोगों के लिए थी लेकिन फिलहाल यहां 50,000 लोग रहते हैं। इन्हीं में से जो सक्षम हैं उन्होंने गैरकानूनी रूप से सामुदायिक नल से अपने घरों तक पानी का कनेक्शन लगवाया हुआ है जबकि दूसरे पानी के लिए प्रतिदिन संघर्ष करते हैं। वे इस बात की भी शिकायत करते हैं कि इस मौजूदा संकट के समय भी बहुत सारा पानी सामुदायिक नल की पाइप टूटी होने की वजह से और सामुदायिक शौचालयों में बर्बाद हो रहा है। इसी रिहाइश में पिछले एक दशक से रहने वाले जस्टिस ओंकवाना ने बताया, “यहां के लगभग सभी पाइपों से पानी रिसता है। अगर आपको सच में जल बर्बादी का सही नजारा देखना है तो शौचालय को देख लें। यह हमेशा ही होता है कि इसके नल रिसते रहते हैं लेकिन कोई भी ठीक करने नहीं आता। यह बहुत ही खराब स्थिति है कि लोगों के घरों में पानी नहीं है लेकिन वे यहां रोज पानी बर्बाद होते देख रहे हैं।” उन्हीं की रिहायसी इलाके में 3,500 लोगों के लिए 9 शौचालय हैं।
आनन-फानन में बनाई योजनाएं
साउथ अफ्रीका वाटर रिसर्च कमीशन के मुख्य कार्यकारी आयुक्त धेशीगन नायडू ने बताया कि यह जल संकट योजना और विविधिकरण के उपायों के न होने के कारण उत्पन्न हुआ है। पिछले 20 वर्षों में केपटाउन की जनसंख्या में लगातार वृद्धि हुई है। 1980 में इस नगर में 16 लाख लोग निवास करते थे। 2011 में यह आबादी 37 लाख तक पहुंच गई। तत्कालीन गणना के अनुसार, यहां फिलहाल 43 लाख लोग रह रहे हैं। जनसंख्या में वृद्धि के साथ जल उपभोग में भी वृद्धि हुई है।
एक्जीक्यूटिव डिप्टी मेयर अल्दरमेन लैन नेइल्सन के अनुसार, “पिछले वर्ष तक शहर जल संसाधनों के विविधिकरण पर अमल करने में सक्षम नहीं था। यदि हम सर्दी में अच्छी बारिश देखते हैं तो नए बनाए गए संरचना का प्रयोग नहीं हो सकता था। शहर में जल संरक्षण और विविधिकरण का बंदोबस्त तब आरंभ किया गया जब यह महसूस किया गया कि 2018 की सर्दी में इस संकट से बचाए रखने के लिए किन उपायों को अपनाने की जरूरत है।”
जब से केपटाउन ने अपने निवासियों को शून्य दिवस नामक खतरे से आगाह किया है, इस अमूल्य संसाधन के दान से शहर को खतरे से निपटने में थोड़ी मदद मिली है। इसी सदभावना के तहत यहां के जमींदार किसानों ने अपने निजी जलाशयों से 10 प्रतिशत जल का दान किया है। हालांकि शून्य दिवस को अगले साल तक के लिए टाल दिया गया है, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि शहर से खतरा टल गया है। आर्मितेज कहते हैं, “हमें बारिश के लिए प्रार्थना करनी चाहिए। सूखे के फिर से पड़ने से बचाव और निपटने के लिए आवश्यक संरचनात्मक बदलाव की आवश्यकता है और इसमें थोड़ा अधिक समय लग सकता है।”
“2050 तक जयपुर में भी पानी का गंभीर संकट”
कैसे शहरीकरण में वृद्वि की प्रक्रिया से वैश्विक स्तर जल की मांग पर असर पड़ेगा? वैश्विक शहरीकरण की प्रक्रिया में वृद्धि से 2030 तक 20 लाख से अधिक जनसंख्या का भार बढ़ेगा। हमारे शहर बढ़ेंगे। आज, अनुमानतः पूरे विश्व की 54 प्रतिशत या 390 करोड़ लोग शहरों में निवास करते हैं। इस शताब्दी के अंत तक यह 60 से 92 प्रतिशत तक बढ़ने की संभावना है। ऐतिहासिक रूप से जैसे-जैसे नगरीय जनसंख्या का विस्तार हुआ है पिछले 60 वर्षों में घरेलू जल के उपभोग में चौगुना वृद्धि हुई है। इसमें लोगों की समृद्धि स्तर और पेयजल संरचना तक पहुंच से जल का अधिक उपभोग हुआ है। यह चिंतनीय है कि यह प्रवृत्ति आगे जारी रहेगी और 2030 तक 80 प्रतिशत तक जल उपभोग में वृद्धि की संभावना है। कौन से शहर जल संकट का सामना करेंगे? एक ऑनलाइन जर्नल “नेचर सस्टेनेबिलिटी” में प्रकाशित हुए हाल के लेख में मेरे साथी और मैंने पाया कि हमारे नमूने में प्रस्तुत शहरों में 16 प्रतिशत शहरों ने जल संकट का सामना किया है। इन शहरों ने 1971 से 2000 के बेसलाइन अवधि के दौरान सतह पर जल की कमी का कम से कम एक माह का सामना किया है। यह तब भी हुआ तब उन्होंने कृषि से अधिक जल को महत्व दिया। इस अध्ययन के अनुसार, 2050 तक लॉस एंजिलिस, जयपुर और दार ए सलाम सबसे भयानक स्तर पर सतह पर जल की कमी का सामना करेंगे। यह औसतन 100 मिलियन क्यूबिक मीटर प्रतिवर्ष बढ़ेगा। कैसे जलवायु परिवर्तन जल आपूर्ति को प्रभावित करेगा? जैसा कि नगरीय जनसंख्या में वृद्धि से जल की मांग बढ़ी है, जलवायु परिवर्तन जल के प्रवाह में बाधा उत्पन्न करेगा। इससे कुछ स्थानों की जल की उपलब्धता में कमी की संभावना होगी। यह संभावना है कि 2050 तक विश्व के 36 प्रतिशत शहर जल संकट का सामना करेंगे। जल संकट पर किए जा रहे विभिन्न अध्ययनों में एक बात सबने कही है कि आने वाले वर्षों में जल संकट और गहराएगा। भविष्य में 6 सबसे बड़े शहरों में से एक जल की अनुपलब्धता से प्रभावित होगा। शहरी जल आपूर्ति में होने वाली वृद्धि से भूमिगत जल संसाधनों पर दबाव पड़ेगा। हमने शहरी भूमिगत जल पर पड़ने वाले दबाव का अध्ययन क्षेत्रीय भूमिगत जलस्त्रोतों से जुड़े शहरी भूमिगत जलस्त्रातों में जल के निशान के माध्यम से किया है। जलवायु परिवर्तन और सामाजिक आर्थिक कारण जैसे शहरीकरण शहरों में भूमिगत जल के स्तर को और नीचे की ओर ले जाएगा। क्या हम सूखे भविष्य की ओर जा रहे हैं? फिलहाल सब केपटाउन की चर्चा कर रहे हैं। इससे पहले साओ पाउलो और कैलिफोर्निया में सूखा पड़ा है। जैसा कि मौसम के बारे में अनुमान लगाना कठिन है इसलिए यह कहना मुश्किल है कि भविष्य में कौन सा शहर सूखे का सामना पहले करेगा। हां, हम यह जरूर निश्चित तौर पर कह सकते हैं कि बढ़ी हुई जल आपूर्ति की मांग और जलवायु परिवर्तन के कारण उसके बनिस्पत कम जल आपूर्ति से केपटाउन जैसे सूखे की स्थिति प्रायः बनती रहेगी। हम कैसे अन्य शहरों में कैपटाउन जैसी स्थिति पैदा होने से रोकें? इसके दो उपाय हैं। पहला जल आपूर्ति में वृद्धि और उसके संरक्षण में वृद्धि। इससे यह सुनिश्चित होगा कि शहर सूखे से निपटने में सक्षम हो जाएंगे। यह लम्बी दूरी तक पानी को भेजने से हो सकता है, पर यह भूमिगत जल से या फिर बिलनवीकरण से भी हो सकता है। जब शहरों में जल पर्याप्त मात्रा में एकत्र होगा, तो यह ताजा जल की पारिस्थितिकी को प्रभावित करेगा। कभी-कभी शहरों में कृषि से अधिक जल का उपभोग किया जाता है। इसके साथ ही समाज को जल का उपयोग बहुत ही किफायत से करना सीखना होगा। इसके लिए रिसने वाले नलों को ठीक करना होगा, जिससे पानी बर्बाद होता है। किसानों को सिंचाई के जल का इस्तेमाल करने के लिए किफायती तरीके इजाद करने होंगे। उपयोग किए जल का पुनः प्रयोग भी एक तरीका हो सकता है। |