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विश्व जल दिवस विशेष-7: मनरेगा को हथियार बनाकर 2004 की सूनामी से उबरा नागपट्टिनम

डाउन टू अर्थ ने मनरेगा से बदले हालात के बारे में जानने के लिए 15 राज्यों के 16 गांवों का दौरा किया। पढ़ें, तमिलनाडु का नागपट्टिनम जिले के एक गांव की कहानी-

Aishwarya Sudha Govindarajan

22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर पूरी दुनिया पानी की महत्ता और उसे बचाने के उपायों पर बात करती हैं। इस विशेष आयोजन से पूर्व डाउन टू अर्थ द्वारा पानी से जुड़े विभिन्न मुद्दों से संबंधित रिपोर्ट्स की सीरीज प्रकाशित की जा रही है। इस सीरीज की पहली कड़ी में आपने पढ़़ा भारत में किस तरह पानी की मात्रा घट रही है। दूसरी कड़ी में पढ़ें कि कैसे भूजल स्तर को कम होने से बचाया जा सकता है । जल संरक्षण को महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) के तहत खासी तवज्जो दी गई है। इसकी हकीकत जानने के लिए डाउन टू अर्थ ने 15 राज्यों के 16 गांवों का दौरा किया। मध्यप्रदेश के टीकमगढ़ के गांव  के अलावा सीधी जिले के गांव  और राजस्थान के डूंगरपुर जिले के गांव की कहानी। अब पढ़ें तमिलनाड के गांव की कहानी- 

तमिलनाडु का नागपट्टिनम कोई ऐसा जिला नहीं है, जिसे पानी की कमी से जोड़कर देखा  जाता हो। कावेरी नदी के डेल्टा क्षे़त्र में समुद्र के तट पर स्थित इस शहर में कछारी भूमि और उपजाऊ जलस्तर पाया जाता है। यहां सालाना औसत बारिश भी ज्यादा (1331 मिलीमीटर) है, जो इस क्षेत्र को खेती के लिए आदर्श बनाती है।  लेकिन 2004 की सूनामी और उसे बाद के असर ने इस उपजाऊ जिले की तकदीर चैपट कर दी। सूनामी में जहां एक ओर तमिलनाडु में सात हजार से ज्यादा जानें गईं, वहीं इसने नागपट्टिनम की जमीन और जलस्तर को खारा बनाकर छोड़ दिया।

राज्य के कृषि निदेशालय के मुताबिक, सूनामी के बाद नागपट्टिनम में भूमि का इलेक्ट्रिकल कंडक्टिविटी लेवल (जिससे जमीन में नमक की मात्रा आंकी जाती है) तीन गुना बढ़ गया था। चेन्नई के पर्यावरणीय आर्थिक विशेषज्ञ कवि कुमार के मुताबिक, तमाम प्राकृतिक नहरों के तंत्रों के जरिए डेल्टा क्षेत्र, बंगाल की खाड़ी से जुड़ता है, जिससे कुछ समय से यहां की भूमि में नमक की मा़त्रा पहले से ही बढ़ रही थी, लेकिन सूनामी ने इसे काफी ज्यादा बढ़ा दिया।  

यही वह दौर था, जिसके कुछ समय बाद 2006 में नागपट्टिनम  में महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) की शुरूआत की गई। इस योजना के जरिए लोगों की जिंदगी पटरी पर लौटने लगी। नजदीकी गांव वेल्लापल्लम के सरपंच मधनराज बताते हैं, ‘करीब पांच सौ किसान और मछुआरे सूनामी के बाद नौकरी करने के लिए दुबई चले गए थे।’ 2011 की जनगणना के मुताबिक, समुद्र से कुछ मीटर दूर वेल्लापल्लम गांव में लगभग 1900 परिवार रहते थे।
अब साठ साल के हो चुके संपथ, उन कुछ लोगों में से जिन्होंने गांव न छोड़ने का फैसला लिया था। वह कहते हैं, ‘खेती करना मेरा जुनून था और मैं इसे छोड़ना नहीं चाहता था। हालांकि मेरे इस फैसले की वजह से मेरा परिवार कर्ज में डूब गया क्योंकि खारी जमीन में कुछ भी उगाना मुश्किल हो गया था। ’

मनरेगा आने के बाद संपथ और गांव के अन्य लोग भूमि का खारापन कम करने और तालाबों को गहरा करने के काम में जुटे। तालाबों में जमा बारिश के पानी ने भूमि और जलस्तर के खारेपन को कम करना शुरू किया। आज संपथ उसकी पचास फीसद फसल उगा लेते हैं, जितनी वह सूनामी से पहले उगाते थे। उनके गांव ने खारेपन को कम करने के लिए सिंचाई के नालों को गहरा करने के साथ ही तमाम छोटे बांध यानी पुश्ते भी तैयार किए।

नागपट्टिनम के तत्कालीन कलेक्टर टीएस जवाहर याद करते हैं, ‘बड़ी तादाद में लोगों के पलायन की वजह से शुरू में गांवों में मनरेगा के लिए मजदूर जुटाना मुश्किल था। इसीलिए हम गर्मियों के मौसम में (क्योंकि यह खेती में आराम का समय होता है) गांवों की महिलाओं से मिले और उन्हें इस योजना से जोड़ना शुरू किया।’

इस योजना से पड़ोसी गांव नेलुवेदापत्थी में रहने वाली थमिजरासी को भी काम करने का मौका मिला। तीन बच्चों की मां थमिजरासी पिछले चालीस साल से अपने घर के आसपास हरी सब्जियां उगाती हैं, और उन्हें बाजार में बेचती हैं। जिस दिन उनकी किस्मत अच्छी होती थी, उस दिन उन्हें पांच सौ रुपये तक मिल जाते थे लेकिन सूनामी ने उनकी आजीविका छीन ली थी। मनरेगा से केवल उन्हें ही नहीं, गांव की कम से कम 75 महिलाओं को जिदंगी चलाने के लिए कुछ पैसा मिलने लगा।

उनके गांव के लोगों ने मनरेगा के जरिए नेलुवेदापत्थी ग्राम पंचायत के आॅफिस के अंदर पौधों की एक नर्सरी भी तैयार की है। जिसमें होने वाली वनस्पतियों को पूरे जिले में बेचा जाता है। जमीन के खारेपन को कम करने के लिए गांववालों ने नारियल के पेड़ों की विभिन्न प्रजातियों उगाने के साथ कई अन्य प्रयास भी शुरू किए हैं।

इतना ही नहीं, गांव के लोग इसके करीब ही स्थित उस पार्क को फिर से स्थापित करने का प्रयास भी कर रहे हैं, जिसे एक दिन (दो अक्टूबर, 2005) में सबसे ज्यादा पौधे (254,464) लगाने के लिए गिनीज बुक ऑर्प वर्ल्ड रिकाडर्स में जगह मिली थी।