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विश्व जल दिवस विशेष-2: भूजल बांधों से बचाया जा सकता है पानी

भूजल बांध जमीन के अंदर बह रहे पानी को रोककर उसे भीतर ही जमा करता है

DTE Staff

22 मार्च को विश्व जल दिवस के रूप में मनाया जाता है। इस मौके पर पूरी दुनिया पानी की महत्ता और उसे बचाने के उपायों पर बात करती हैं। इस विशेष आयोजन से पूर्व डाउन टू अर्थ द्वारा पानी से जुड़े विभिन्न मुद्दों से संबंधित रिपोर्ट्स की सीरीज प्रकाशित की जा रही है। इस सीरीज की पहली कड़ी में आपने पढ़़ा भारत में किस तरह पानी की मात्रा घट रही है। दूसरी कड़ी में पढ़ें कि कैसे भूजल स्तर को कम होने से बचाया जा सकता है- 

जमीन के ऊपर पानी को जमा करने में कई नुकसान हैं- जैसे वाष्पीकरण से पानी में कमी, गाद जमा होना, प्रदूषण और खेती योग्य भूमि का नुकसान। पर भूजल बांध इन सभी हानियों को रोक सकते हैं। रोम साम्राज्य के समय के ऐसे बांध सार्डिनिया द्वीप और ट्यूनीशिया में पाए गए हैं। इससे पता चलता है कि उत्तरी अफ्रीका की प्राचीन सभ्यताओं ने इनका निर्माण करवाया था। एरिजोना में भी एक बालू जमा करने वाले बांध का पता चला है, जिसका निर्माण अठारहवीं शताब्दी में किया गया था। हाल के वर्षों में इस तकनीक का इस्तेमाल भारत, दक्षिणी और पूर्वी अफ्रीका और ब्राजील में किया गया है।

भूजल के लिए बांधों के प्रकार

भूजल बांध जमीन के अंदर बह रहे पानी को रोककर उसे भीतर ही जमा करता है। इसके अतिरिक्त, वह भूजल के बहाव को मोड़ भी सकता है जिसके पास के जलभर को पुनरावेशित किया जा सके या उन जलभरों, जिनके पास भूजल की मात्रा काफी कम है, को ऊपर उठाया जा सके और जिससे पानी पंप से निकाले जाने लायक स्तर पर आ जाए। भूजल वाले बांध मूलतः दो प्रकार के होते हैं- अधस्तल बांध और सिक्ता संचयन बांध। अधस्तल बांधों को निर्माण जमीन की सतह के नीचे किया जाता है। यह प्राकृतिक जलभरों में पानी को जमा करने में सहायक होता है। इसके विपरीत सिक्ता संचयन बांध जलछटों में पानी को रोकने में सहायक होता है, जो बांध के कारण ही उसमें जमा होता है। सामान्य तौर पर कोई भी भूजल बांध इन दोनों का मिश्रण है।

अधस्तल बांध की कार्यविधि : मान लें कि किसी एक छोटी घाटी में एक जलभर है जो किसी एक कम गहरे कुएं की सहायता से गांव में पानी देने का काम करता था। गर्मी के दिनों में यह जलभर, प्राकृतिक भूजल के बहने के कारण बिल्कुल सूख जाता है। फलस्वरूप कुआं भी सूख जाता है। इस स्थिति से बचने के लिए इस घाटी में एक खाई की खुदाई की जाती है, जिसे तल-शिला तक खोदा जाता है। इसके बाद इस खाई में एक अभेद्य दीवार का निर्माण किया जाता है जिसे अधस्तल बांध कहा जाता है। इस भूजल जलाशय में पानी कभी भी नहीं खत्म होता। अगर जमा किए हुए पानी से ज्यादा की जरूरत पड़े तो इसे शुष्क मौसमों में भी इस्तेमाल में लाया जा सकता है। सिक्ता संचयन बांध के कार्य करने का तरीका बिल्कुल अलग है। मान लें कि एक गांव में नदी के कम गहरे नदी तल में छिद्र करके, वर्षा के कुछ समय बाद, थोड़ी देर के लिए पानी को जमा करते हैं। यह पानी पूरे शुष्क महीनों में गांववालों की जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी नहीं होता। जल प्रवाह पर एक उचित ऊंचाई वाले बांध का निर्माण किया जाए, तो वर्षा के दिनों में पानी के तेज प्रवाह में बहने वाली रेत के मोटे कण उसके पास जमा हो जाते हैं। ऐसी रेत से पूरा जलाशय भर जाता है। अगर इस बांध का निर्माण अच्छी तरह किया जाए, तो कृत्रिम जलभर हर वर्ष पानी से पुनर्भरित होते रहेंगे और शुष्क मौसम में इस जमा किए हुए जल का प्रयोग आसानी से किया जा सकेगा।

इस प्रकार के बांधों का निर्माण कई चरणों में किया जाता है। इसके पीछे मूल कारण हर चरण में इसकी ऊंचाई को सीमित करना है जिससे छोटे कणों को बहाया जा सके और बड़े कणों को इनमें जमा किया जा सके। एक भूजल बांध पानी के बहाव को नियंत्रित करके किसी भी जलभर को पुनरावेशित कर सकता है। ऐसी ही एक व्यवस्था नामीबिया में काम में लाई जा रही है, जिसके अंतर्गत एक जलभर में एक कुएं की खुदाई की गई है। इससे प्राप्त पानी को एक हवाई अड्डे पर सप्लाई किया जा रहा है। चूंकि यह जलभर अपनी जरूरत के अनुरूप पानी नहीं ले पा रहा था, इसलिए एक सिक्ता संचयन बांध का निर्माण कराया गया, जिससे इसे पुनरावेशित किया जा सके।

एक अधस्तल बांध में दो मूल गुणों का होना अति आवश्यक है। इसका ढांचा काफी कठोर होना चाहिए, जिससे यह धरती और पानी के अलग-अलग दबावों को झेल सके और यह अभेदनीय भी होना चाहिए। इसके निर्माण में ईंटों, पत्थरों, चिकनी मिट्टी की दीवारों, बेन्टोनाइट के घोल, बल्लियों, तारकोल रहित नमद और पोलीथीन जैसी चीजों को उपयोग में लाया जाता है। सबसे बढ़िया उपाय, सिर्फ तकनीकी कारणों से, इनमें से दो तत्वों को मिलाना है। जैसे ईंटों या पत्थरों से दीवारों को तैयार करना, और उस पर प्लास्टिक की परत चढ़ाना, जिससे यह अभेदनीय हो जाए।

तमिलनाडु के वन विभाग ने श्रीविल्लीपुट्टूर शहर में पानी की आपूर्ति सुधारने के लिए पश्चिमी घाटों के पूर्वी ढलान वाले क्षेत्रों में कई सिक्ता संचयन बांधों का निर्माण करवाया है। केरल के मध्यवर्ती इलाकों में केंद्रीय भूजल बोर्ड ने भूजल बांधों के निर्माण के लिए उपयुक्त जगहों को खोजना शुरू कर दिया है। पश्चिमी घाटों के तमिलनाडु की तरफ के क्षेत्रों में भूजल बांधों के लिए अच्छी संभावनाएं मौजूद हैं। यहां का पर्यावरण और भौगोलिक अवस्था भी निर्माण के लिए अनुकूल है। यहां पाए जाने वाले एक सोते के ऊपरी क्षेत्रों में, जहां एक भी प्राकृतिक जलभर नहीं है, एक-दूसरे से जुड़े कई सिक्ता संचयन बांधों का निर्माण किया जा सकता है। इन बांधों से पानी पास के गांवों में आसानी से पहुंचाया जा सकता है। इसके अलावा इस व्यवस्था को अगर निचले हिस्से में चलाए जा रहे पानी की आपूर्ति की व्यवस्थाओं से जोड़ दिया जाए, तो बड़े गांवों और शहरों में पानी की मात्रा में काफी बढ़ोतरी हो सकती है।

भारतीय अनुभव

अधस्तल बांधों का निर्माण केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में किया जा चुका है। पिछले कुछ वर्षों में पश्चिमी घाटों के पूर्वी ढलानों पर कुछ सिक्ता संचयन बांधों और अधस्तल तथा सिक्ता संचयन बाधों को एक साथ मिलाकर निर्मित किया गया है। इसके अच्छे परिणाम आए हैं। जिन स्थानों पर यह व्यवस्था सफल नहीं हो पाई है वहां या तो खेजबीन का काम ठीक से नहीं किया गया था या तकनीकी गलतियां की गई थीं। केरल में सबसे पहला अधस्तल बांध का निर्माण सन 1963 में एक किसान/उद्योगपति द्वारा निजी जमीन पर किया गया था। वह बांध 155 मीटर चौड़ा और 9 मीटर ऊंचा है। यहां का पानी जलभरों से होते हुए कई बड़े कुओं में जाता है और बांध के ऊपरी हिस्से में सिंचाई की जाती है।

सन 1979 में अनानगनाडी में केंद्रीय भूजल बोर्ड ने एक अधस्तल बांध का निर्माण किया था। एक 160 मीटर चौड़ी घाटी में एक खाई की खुदाई की गई थी। इसमें सिर्फ हाथ से काम किया गया था। इस खाई में एक प्लास्टर की गई ईंट की दीवार को खड़ा किया गया था। और बांध के साथ-साथ दो खुले हुए कुओं का निर्माण भी किया गया था। इस बांध के कुछ हिस्सों में तारकोल नमदों और प्लास्टिक की चादरों का इस्तेमाल किया गया था। इसमें से एक कुएं में दरार आने की वजह से पानी रिसकर बह जाता है।

उडगमण्डलम में स्थित वाटर कन्जर्वेशन रिसर्च एंड ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट में एक अधस्तल बांध का निर्माण किया जाता था। यह जगह पहाड़ों से घिरी हुई है। इसमें प्लास्टिक की चादरें लेटीराइट मिट्टी में भूजल के बहाव को रोकती हैं। सन 1988 में केरल कृषि विश्वविद्यालय ने भी आडाक्काली में एक अधस्तल बांध का निर्माण किया था। इस बांध में ईंट की दीवारें हैं और ऊपरी हिस्से में प्लास्टिक की चादों को इस्तेमाल में लाया गया है। इस बांध की लंबाई 120 मीटर और इसकी अधिकतम ऊंचाई 7 मीटर है। इसमें जमा पानी को नारियल के पेड़ों को सींचने के काम में लाया जाता है। इस तरह भूजल बांध पानी की कमी वाले इलाकों में काफी महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। चूंकि ये शुष्क क्षेत्रों में पानी का रखने में काफी सहायक होते हैं।

(बूंदों की संस्कृति पुस्तक से साभार)