जल

बिहार: कहां जा रहा है कुओं पर खर्च किया जा रहा पैसा?

बिहार सरकार ने हर कुएं के जीर्णोद्धार पर औसतन 62 हजार करोड़ रुपए खर्च करने का निर्णय लिया है, लेकिन इसके क्या परिणाम निकलेंगे?

Rahul Kumar Gaurav
फरवरी 2021 में बिहार सरकार के पंचायती राज विभाग ने राज्य के 69,768 सार्वजनिक कुओं का जीर्णोद्धार का फैसला लिया था। प्रति कुआं औसतन 62 हजार रुपए आवंटित किया गया था। इसके अलावा लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग और कृषि विभाग के द्वारा भी बिहार में कुओं का जीर्णोद्धार लगातार किया जा रहा है, लेकिन क्या ये अभियान सफल हो रहे हैं?
 
बिहार के दरभंगा जिले के ढोल पंचायत को 2020-21 की अवधि में राज्य सरकार ने कुएं निर्माण कार्य में  5,94,038 रुपए का फंड मिला, लेकिन गांव में एक भी कुआं ऐसा नहीं है, जिसका पानी पिया जा सकता है। गांव के 26 वर्षीय मृत्युंजय कुमार कहते हैं कि पानी पीना तो दूर, उससे नहाया भी नहीं जा सकता। 
 
भागलपुर जिले के नारायणपुर प्रखंड की 13 पंचायतों में मौजूदा समय करीब 700 कुएं हैं, लेकिन अधिकांश कुएं खंडहर में तब्दील हो गए हैं। इनमें से कई सूख गए हैं। तो कई कुओं में पानी है, लेकिन वहां गंदगी का ढेर जमा है। इसलिए लोग पानी पीते नहीं हैं।  
 
प्रखंड के भ्रमरपुर गांव के 70 वर्षीय शिक्षक मंगलेश्वर नाथ झा बताते हैं, "करीब चार दशक पहले तक ग्रामीण इलाकों में पानी पीने और सिंचाई के लिए कुएं ही साधन हुआ करते थे। लेकिन अब इनका उपयोग सिर्फ धार्मिक आयोजनों तक ही सिमट गया है।"
 
सुपौल जिले के लाउढ पंचायत में स्थित 100 कुंए में एक कुएं का चयन जीर्णोद्धार के लिए लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के द्वारा हुआ था। गांव के वार्ड नंबर 2 के जनप्रतिनिधि बिंदेश्वरी पासवान उस कुएं की ओर इशारा करते हुए कहते हैं, "आगे से कुएं के दीवार को मरम्मत कर दी गई, लेकिन अंदर से सफाई तक नहीं की गई। चेन पुली और सोख्ता का निर्माण भी नहीं किया गया। एक कुएं के लिए लगभग 1.20 लाख रुपए आवंटित होते हैं, लेकिन इस पैसे की बंदरबांट हो गई।"
दरअसल जनवरी 2021 में राज्य सरकार के कार्यक्रम जल जीवन हरियाली अभियान के तहत राज्य भर के कुओं की सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की गई, जिसके मुताबिक बिहार में कुल 3,14,982 कुएं मिले हैं। बिहार में गांव की संख्या 45,067 है। मतलब प्रत्येक गांव में सात से आठ कुएं बचे हुए हैं। 
 
बिहार के जल पुरुष के नाम से मशहूर एमपी सिन्हा बताते हैं, "शुरुआत में डायरिया और ईकोलाई बैक्टीरिया के संक्रमण की वजह से सरकार और कई संस्थानों ने हैंडपंप को बढ़ावा दिया था, लेकिन इस वजह से आज बिहार में लोग आयरन, आर्सेनिक और फ्लोराइड युक्त जल पीने के लिए विवश हैं। अब सरकार कुएं को बढ़ावा देने के नाम पर पैसा खर्च तो कर रही है, लेकिन इसमें भारी भ्रष्टाचार जड़े जमा रहा है।"
 
सिन्हा कहते हैं कि फरवरी 2021 में बिहार सरकार के पंचायती राज विभाग ने राज्य के 69,768 सार्वजनिक कुओं का जीर्णोद्धार का फैसला लिया था। फिर दिसंबर में फैसला लिया गया था कि जनवरी में सात दिनों में अभियान चलाकर 55,000 कुएं का जीर्णोद्धार कार्य पूरा किया जाएगा। इधर प्रत्येक पंचायत में मुखिया फंड के द्वारा भी 5-10 कुओं का जीर्णोद्धार किया जा रहा है, लेकिन जमीन पर इसका 5 प्रतिशत भी असर नहीं दिख रहा है।
 
बिहार की राजधानी पटना स्थित महावीर कैंसर संस्थान, यूके की यूनिवर्सिटी ऑफ मैनेचेस्टर और आईआईटी खड़गपुर व रूड़की के द्वारा किए गए डेढ़ साल के शोध के अनुसार बिहार के कई जिलों के पानी में यूरेनियम मौजूद है। साथ ही राज्य के 22 जिलों के पानी में आर्सेनिक पाया गया। जिससे 90 लाख से अधिक लोग प्रभावित हैं। यूरेनियम किडनी को सर्वाधिक प्रभावित करता है। साथ ही ये पानी पीने से पाचन क्षमता बिल्कुल खत्म होने लगती है।
 
बिहार में भूगर्भ पानी पर किए गए रिसर्च टीम का हिस्सा रहे डॉ अरुण कुमार महावीर कैंसर संस्थान में ही वरिष्ठ वैज्ञानिक हैं। वो बताते हैं, "कुएं साफ कर पानी का उपयोग करने से दूषित पानी से आयरन और आर्सेनिक दोनों को हटाया जा सकता है। क्योंकि किसी भी रिसर्च में खुले कुओं और सतह के पानी में आर्सेनिक का कोई निशान नहीं मिला। इस आधुनिक जमाने में जब हमारी टीम लोगों को कुएं का पानी पीने की सलाह देते हैं तो लोग हम पर हंसते हैं। वैसे भी बिहार में भूजल में आर्सेनिक फैक्ट्री प्रदूषकों या कीटनाशकों के कारण नहीं है। इसका वजह हैं, भूजल का अत्यधिक दोहन!"
 
बिहार राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अध्यक्ष डॉ. अशोक कुमार घोष बताते हैं, "सूरज की किरणें सीधी कुओं के अंदर पड़ने से कुओं का पानी दूसरे स्रोतों के मुकाबले स्वस्थ होता था। साथ ही वर्षा के पानी को संचयन करने का  मुख्य साधन कुंआ को बनाया जा सकता है। क्योंकि गिरते भूजल स्तर की समस्या से निपटने का एकमात्र उपाय जल संरक्षण ही है‌। भारत में हर वर्ष अरबों घनमीटर वर्षा जल बेकार चला जाता है। जल का जिस तेजी से दोहन किया जा रहा है उससे आने वाले समय में भूजल का स्तर और नीचे चला जायेगा।"