झारखंड की राजधानी रांची से 40 किमी दूर डरिया डेरा टोला के आदिवासी इस तरह पानी का इंतजाम करते हैं। फाइल फोटो मो. असगर खान 
जल

पानी की जहरीली वैश्विक राजनीति से कौन बचेगा ?

वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट के अनुसार दुनिया में पानी की समस्या को केवल छह शब्दों में परिभाषित किया जा सकता है। ये शब्द हैं- बहुत कम, बहुत ज्यादा, बहुत गंदा

Anil Ashwani Sharma

आज की तारीख में पानी की जहरीली वैश्विक राजनीति से कौन बच पाया है। पानी का अधिकार बड़े लोगों के पास जन्मजात होने के कारण विश्व भर के गरीब एक-एक बूंद पानी के लिए तरस रहे हैं। यह स्थिति केवल गरीब देशों में अकेले नहीं है बल्कि चीली और आस्ट्रेलिया जैसे संपन्न देशों में भी यही हो रहा है। पढ़िए यहां इस मुद्दे की पहली किश्त

पानी चोर रात में टैंकर लेकर आते हैं और नहरों से पानी चुरा ले जाते हैं। इस पर एलेजांद्रो मेनेसेस जैसे किसान गुस्से से आग बाबूला हो जाते हैं। ये दक्षिणी अमेरिकी देश चिली के एक सूखे प्रांत कोक्विम्बो में सब्जी उगाने वाले एक किसान हैं।

नियमानुसार उनकी जमीन के स्वामित्व वाले खेतों में प्रति सेकंड 40 लीटर पानी नदी से लेने का अधिकार है। लेकिन बढ़ती चोरी के कारण राज्य में सूखे की स्थिति पैदा हो गई है और ऐसी हालात में केवल दसवां हिस्सा ही उन्हें पानी मिल पाता है।

इसके लिए भी उन्हें अपने पड़ोसियों से बातचीत करनी पड़ती है। वह कहते हैं कि अगर उनके जैसे किसान पर्याप्त मात्रा में फसल नहीं उगा पाते हैं तो खाद्य पदार्थों की कीमतें बढ़ जाती हैं।

इकोनॉमिस्ट की रिपोर्ट बताती है कि इससे एक बड़ी सामाजिक समस्या पैदा हो जाती है। रिपोर्ट में वर्ल्ड रिसोर्सेज इंस्टीट्यूट (डब्ज्ल्यूआरआई ) के चार्ली आइसलैंड के हवाले से बताया गया है कि विश्व की जल समस्याओं को केवल छह शब्दों में ही अभिव्यक्त किया जा सकता है, ये शब्द हैं- बहुत कम-बहुत ज्यादा-बहुत गंदा। वह कहते हैं कि जलवायु परिवर्तन से समस्याएं और बढ़ेंगी। पहले से ही लगभग आधी मानवता ऐसी परिस्थितियों में रहने पर मजबूर है, जिसे हम अत्यधिक जल-तनाव वाली परिस्थितियां कहते हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि अनुकूलन स्थिति पैदा करने के लिए न केवल नई तकनीक बल्कि नई राजनीति की भी आवश्यकता होगी। विश्व भर के गांवों, देशों को अपने थोड़े से जल को साझा करने और बाढ़ सुरक्षा संबंधी निर्माण करने के लिए मदद करने की आवश्यकता होगी। किसान दुनिया के 70 प्रतिशत मीठे पानी का उपयोग करते हैं, ऐसे में उन्हें उन शहरी लोगों की जरूरतों के साथ संतुलित करने की जरूरत होगी।

संक्षेप मे कहें तो विश्वास देने और लेने की राजनीति और साथ ही दीर्घकालिक योजना बनाने की जरूरत है। डार्मस्टाट विश्वविद्यालय के जेन्स मार्क्वार्ड और मार्कस लेडरर द्वारा किए गए एक वैश्विक अध्ययन में पाया गया है कि लोक लुभावन लोग गुस्सा भड़काते हैं। साथ ही विज्ञान के प्रति वे अविश्वास पैदा करते हैं और जलवायु नीतियों को उदार अभिजात वर्ग के एजेंडे के रूप में खारिज करते हैं।

पृथ्वी पर लगभग 97 प्रतिशत पानी खारे समुद्र में है और भूमि-झील-नदी आदि में सभी को मिला कर केवल 3  प्रतिशत है। हालांकि धरती पर पानी की मात्रा अपरिवर्तनीय है। जल चक्र कई प्रक्रियाओं से बना है, उनमें से कई विभिन्न समय-सीमाओं और क्षेत्रों में संचालित होते हैं। सभी अंततः सूर्य की ऊर्जा द्वारा संचालित होते हैं। यह समुद्री जल को वाष्पित करता है, पौधों को वाष्पित करता है, उष्णकटिबंधीय क्षेत्रों को असमान रूप से गर्म करके समुद्री धाराओं व मौसम प्रणालियों को शक्ति प्रदान करता है।

वहीं दूसरी ओर अब ग्लोबल वार्मिंग पानी के व्यवहार के तरीकों को तेजी से बदल रहा है। यह जल चक्र को तीव्र करता है, जिससे बारिश और बहुत अधिक सूखे की घटनाओं की सख्या और बढ़ जाती है। गर्म हवा अधिक नमी को पकड़ सकती है, जो गर्म महासागरों से अधिक आसानी से वाष्पित हो जाती हैं। वायुमंडल में अधिक नमी का मतलब है कि बारिश या बर्फ के रूप में अधिक गिरना। इससे बाढ़ के आने की संभावना अधिक बढ़ जाती है। इसका मतलब है कि सूखे स्थानों के लिए कम संभावित वर्षा बची है। वहां की प्यासी हवा मिट्टी से नमी को सोखने की अधिक संभावना रखती है, जिससे सूखा लंबा और भयावह होते जा रहा है।

संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि 2002 से 2021 के बीच बाढ़ से लगभग 1.6 बिलियन लोग प्रभावित हुए और लगभग एक लाख लोग मारे गए। इसके अलावा 830 बिलियन डॉलर से अधिक का आर्थिक नुकसान हुआ।

इसी अवधि में सूखे से 1.4 बिलियन लोग प्रभावित हुए और बीस हजार से अधिक लोग मारे गए। वहीं 170 बिलियन डॉलर का नुकसान हुआ। प्रति व्यक्ति मीठे पानी की वैश्विक आपूर्ति का स्तर लगातार गिर रहा है और आने वाले दशकों में अफ्रीका में विशेष रूप से अधिक गिरने की संभावना है।

चिली में अत्याधिक पानी की कमी एक बड़ा संकट बनते जा रहा है, जिसके लिए राजनीति समाधान खोजने की लगातार कोशिश की जा रही है। ध्यान रहे कि यह दक्षिण अमेरिका का सबसे अधिक जल-तनाव वाला देश है। देश के लोक निर्माण मंत्री जेसिका लोपेज ने तो चेतावनी तक दे डाली है कि अभी तो देश की राजधानी सैंटियागो की स्थिति ठीक है लेकिन आने वाले दस साल में यह ठीक नहीं रहने वाली।

सदियों से चिली के लोग जिन्हें पानी चाहिए था, वे इसे नदियों और नालों से लेते थे या भूजल के लिए कुएं खोदते थे। लेकिन जैसे-जैसे देश के कुछ हिस्से सूख रहे हैं, बारिश के पानी के लिए बनाए गए नियम अब अव्यावाहारिक होते जा रहे हैं। हाल के वर्षों में देश में बड़े पैमाने पर पानी को लेकर विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहा है।

देश में वामपंथियों और दक्षिणपंथियों के बीच गहरे अविश्वास के कारण देश में पानी के नियमों में संशोधन करना मुश्किल होते जा रहा है। रूढ़िवादी सरकारों ने कई जमीन मालिकों को पानी के अधिकार अधिक मात्रा में दे रखा है, जिससे उन्हें हर दिन एक बड़ी मात्रा में पानी पंप करने की अनुमति मिली हुई है, वह भी मुफ्त और हमेशा के लिए।

इस प्रकार के लोगों की संख्या अत्याअधिक है, जिन्हें पानी का अधिकार मिला हुआ है। इसलिए मेनेसेस जैसे किसानों को अपने स्थानीय जल संघ के साथ मिल बैठ कर इस बात पर सहमत होना पड़ता है कि हर कोई कितना पानी पंप कर सकता है। फिर भी कुछ लोग धोखाधड़ी करने से बाज नहीं आते और अवैध रूप से पानी निकालते ही हैं।

ऐसे हालात होने के कारण चीली में बड़े किसानों और छोटे किसानों के बीच तनाव बहुत अधिक व्याप्त हो गया है और यह किसी भी समय एक बड़े संकट का करण बन सकता है।