मध्य प्रदेश का झाबुआ जिला पानी की किल्लत की वजह से वर्षों से देश में सबसे खराब स्थिति वाला जिला माना जाता है। यहां सरकार की कई योजनाएं पानी की कमी को दूर करने के लिए बनी लेकिन अधिकतर योजनाएं बोरिंग और नलकूप लगाने तक की सीमित रही। ऐसे में वहां की सामाजिक संस्थाओं ने अलग- अलग तरीकों से झाबुआ की पानी की समस्या जल संरक्षण से दूर करने का प्रयास किया। पद्मश्री से सम्मानित महेश शर्मा द्वारा संचालित संस्था शिवगंगा झाबुआ ने इस वर्ष अप्रैल से मई तक झाबुआ के विभिन्न इलाकों में श्रमदान और समाज के सहयोग से तालाब बनाने का काम किया। मानसून से इन तालाबों का काम पूरा कर लिया गया।
इस काम के लिए शिवगंगा झाबुआ ने क्राउड फंडिंग का सहारा लिया। संस्था से जुड़े कुमार हर्ष बताते हैं कि उन्होंने एक रुपए की लागत में 32 लीटर पानी बचाने का लक्ष्य रखा था। हालांकि श्रमदान और लोगों के उत्साह की वजह से जब काम पूरा हुआ तो 6 तालाब और एक स्टॉप डैम में 72 करोड़ लीटर पानी इकट्ठा होने की क्षमता पाई गई। इस पूरे काम में 37 लाख 57 हजार रुपए का खर्च आया और इस तरह इन तालाबों में 1 रुपए में 190 लीटर वर्षा जल संग्रहित हो पाएगा। वनवासियों के साथ उनके हित में काम करने वाले शिवगंगा झाबुआ के संस्थापक महेश शर्मा को वर्ष 2019 में पद्मश्री से सम्मानित किया गया।
सदियों पुरानी पद्धति हलमा से कर रहे जल संरक्षण
झाबुआ में ढालू जमीन के कारण बारिश का पानी कम ठहरता है और अंधाधुंध निर्वनीकरण जल-संकट को विकराल रूप दे दिया। महेश शर्मा बताते हैं कि सदियों से झाबुआ क्षेत्र में यह हलमा परम्परा चली आ रही है हलमा को आलीराजपुर में 'ढासिया' या 'लाह' कहते हैं। झाबआ जिले में इसे हलमा ही कहते हैं। हलमा, ढासिया, लाह का भाव एक ही है 'परमार्थ'।
पानी बचाने के लिए आदिवासी हलमा करते आ रहे हैं। हलमा के माध्यम से आस-पास के गांव के लोग मिलकर जल संरक्षण के लिए तालाब-निर्माण, कुआं खोदना, पहाड़ियों की ढलान पर गड्ढे करना इत्यादि करते आ रहे हैं।ऐसे में झाबुआ के वनवासियों ने हलमा को भी इस समस्या से जूझने का साधन बनाया। वर्ष 2005 में गोपालपुरा गांव में 16 गांवों के लोगों ने मिलकर एक तालाब का निर्माण किया।
इस सफलता से लोगों को यह भी ध्यान आया कि हलमा से पुरे झाबुआ की तस्वीर बदली जा सकती है। इससे उत्साहित और प्रभावित होकर जनजागरण और हलमा के संदेश को गांव-गांव तक पहुंचाने के लिए झाबुआ के हाथिपावा पहाड़ी पर हलमा का आयोजन शुरू हुआ। महेश बताते हैं कि वर्ष 2009 से 2017 के बीच पहाड़ी पर 12000 से अधिक 10 हजार प्रति गड्ढे क्षमता वाले गड्डों का निर्माण हुआ जिससे 20 करोड़ लीटर पानी हर बारिश में धरती के अंदर जाता है। इस तरह हर साल झाबुआ का भूजल रीचार्ज हो रहा है।