जल

कमी से नहीं, कुप्रबंधन से बढ़ रहा है जल संकट, सीएसई सम्मेलन में बोले केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी

केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी सीएसई द्वारा आयोजित 2023 पॉलिसी एंड प्रैक्टिस फोरम में बोल रहे थे जोकि पानी, दूषित जल और स्वच्छता जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा के लिए आयोजित की गई है

Lalit Maurya

केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी का कहना है कि भारत में जल संकट, जल संसाधनों की कमी के कारण नहीं बल्कि उसके कुप्रबंधन के कारण है। गौरतलब है कि वो सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) द्वारा आयोजित 2023 पॉलिसी एंड प्रैक्टिस फोरम में बोल रहे थे।

गौरतलब है कि 25 से 27 अप्रैल, 2023 के बीच आयोजित यह तीन दिवसीय सम्मेलन, सीएसई के शैक्षिक केंद्र अनिल अग्रवाल पर्यावरण प्रशिक्षण संस्थान, अलवर में आयोजित किया गया है।

यह अंतराष्ट्रीय सभा पानी, दूषित जल और स्वच्छता जैसे अहम मुद्दों पर चर्चा के लिए आयोजित की गई है। इस अंतर्राष्ट्रीय बैठक में दुनिया भर के 100 से भी ज्यादा नीति निर्माता, चिकित्सक, शोधकर्ताओं और विशेषज्ञ हिस्सा ले रहे हैं।

बैठक में बोलते हुए केंद्रीय मंत्री ने कहा कि जहां तक ऊर्जा का सम्बन्ध है हमारे पास पर्यावरण अनुकूल बदलावों के लिए बहुत अच्छी योजना है। लेकिन पानी के मामले में हमारे पास कोई विकल्प नहीं है। बढ़ते जल संकट के साथ यह संसाधन कहीं ज्यादा मूल्यवान होता जा रहा है। उनका कहना है कि जलवायु में आते बदलाव इस संकट को और बढ़ा रहे हैं।

उनका कहना है कि पानी को लेकर की गई संधियां इससे जुड़े राजनैतिक संघर्षों को तो हल कर सकती हैं, लेकिन हम जिस तरह से इस संसाधन का दोहन, उपभोग और प्रबंधन कर रहे हैं या किस तरह से स्वच्छता से जुड़ी प्रणालियों के विषय में योजनाएं बनाते हैं वो उनमें मौलिक रूप से जरूरी बदलाव की आवश्यकता से नहीं निपटेंगी।

उन्होंने सीएसई के प्रयासों की सराहना करते हुए कहा कि वो इस मुद्दे पर न केवल बौद्धिक राय को जुटा रहे हैं, बल्कि विमर्श को सार्वजनिक नीतिगत कार्रवाइयों तक ले जा रहे हैं।

देश में पानी को लेकर बढ़ी है साक्षरता: सुनीता नारायण

वहीं अपने उद्घाटन भाषण में सीएसई की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि, “अच्छी खबर यह है कि पानी को लेकर देश में समझ बढ़ी है। पिछले कुछ दशकों में, देश ने जल प्रबंधन के मुद्दे पर कई अहम सबक सीखे हैं और नए आदर्श विकसित किए हैं। विकेंद्रीकृत जल प्रबंधन में रुचि बढ़ी है, लेकिन इसके बावजूद यह स्पष्ट है कि हम अपने भविष्य को सुरक्षित करने के लिए पर्याप्त प्रयास नहीं कर रहे हैं।“

उनके अनुसार समस्या यह है कि हमारी भूमि और जल अफसरशाही बिखरी हुई है। किसी एजेंसी के पास तालाब है, तो किसी के पास नाली और किसी के पास जलग्रहण क्षेत्र है। जल सुरक्षा के लिए इसमें बदलाव की आवश्यकता है। उनके मुताबिक स्थानीय समुदायों को जल संरचनाओं पर अधिक नियंत्रण देना इसका एक समाधान है। साथ ही लोकतंत्र को सशक्त करना और शक्तियों का हस्तांतरण इसमें मददगार हो सकता है।

वहीं इस अंतर्राष्ट्रीय बैठक के उद्देश्यों पर प्रकाश डालते हुए सीएसई के जल और अपशिष्ट जल कार्यक्रम के निदेशक दीपिंदर कपूर ने बताया कि यह फोरम जल और स्वच्छता प्रबंधन के मुद्दे पर समावेशी और किफायती समाधान प्रदान करने पर ध्यान केंद्रित करेगी।

उनके अनुसार यह फोरम वाटर रिसर्च कमीशन (डब्ल्यूआरसी), इंटरनेशनल वाटर एसोसिएशन (आईडब्ल्यूए), फीकल स्लज मैनेजमेंट एलायंस (एफएसएमए), कोलंबिया विश्वविद्यालय और जीआईजेड के सहयोग से आयोजित की गई है जिसे अनुभव-साझा करने और एजेंडा-सेटिंग फोरम के रूप में डिजाइन किया गया है।

फोरम में बोलते हुए राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक जी अशोक कुमार ने बताया कि एनएमसीजी अब रियल टाइम में सीवेज उपचार संयंत्रों के प्रदर्शन पर निगरानी रख रहा है। मिशन ने रिवर सिटी एलायंस भी लॉन्च किया है।

इस अंतरराष्ट्रीय बैठक में केंद्रीय मंत्री हरदीप सिंह पुरी, सुनीता नारायण और दीपिंदर कपूर के अलावा, फोरम की मेजबानी करने वाले अन्य प्रमुख वक्ताओं में आवास और शहरी मामलों के मंत्रालय की संयुक्त सचिव रूपा मिश्रा, ओडिशा के आवास और शहरी विकास के प्रमुख सचिव जी मथि वाथनन, राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन (एनएमसीजी) के महानिदेशक जी अशोक कुमार, उत्तर प्रदेश में शहरी विकास विभाग के प्रमुख सचिव अमृत ​​अभिजात, ओडिशा में डीडीडब्ल्यूएस के निदेशक-सह-संयुक्त सचिव बी परमेश्वरन, कर्नाटक के ग्रामीण विकास और पंचायत राज के अतिरिक्त मुख्य सचिव एल के अतीक, प्राकृतिक विरासत प्रभाग के प्रधान निदेशक मनु भटनागर, जीआईजेड के अर्ने पनेसर और दक्षिण अफ्रीका में जल अनुसंधान आयोग की सीईओ जेनिफर मोलवंतवा आदि शामिल हुए।