महाराष्ट्र के शिरोल गांव में तालाब को पुनर्जीवित करने से न सिर्फ बाढ़ को नियंत्रित करना आसान हो सका, बल्कि अब वहां सिंचाई के लिए पूरे साल पानी भी मिल रहा है फोटो सौजन्य: मृदा एवं जल संरक्षण विभाग, ठाणे
जल

आवरण कथा: बारिश न होने से जब सूख गए तालाब, तब बनाया टैंक अब आ रहा है काम

नए टैंक से जल भंडारण क्षमता और सिंचित क्षेत्र में बढ़ोतरी हुई, साथ ही बाढ़ पर भी नियंत्रण लगा

Sushmita Sengupta, Swati Bhatia, Pradeep Kumar Mishra, Vivek Kumar Sah, Mehak Puri

महाराष्ट्र के ठाणे स्थित शिरोल गांव में 2008 से 2010 के बीच लगातार 3 साल तक कम बारिश होती रही। इससे गांव का तालाब सूखने लगा और भूजल स्तर भी गिरने लगा। गहराई तक खुदाई के बावजूद बोरवेल सूखे पड़ने लगे और फसलें खराब होने लगीं।

अधिकतर गांव वाले आजीविका के लिए पूरी तरह से खेती और सिंचाई के लिए बोरवेल पर निर्भर थे। ऐसे में उनके लिए खेती करना मुश्किल होने लगा। तब 2011 में किसानों ने ठाणे के मृदा और जल संरक्षण विभाग से संपर्क किया, ताकि सिंचाई की व्यवस्था सुधारी जा सके।

इसके बाद गांव में नए टैंक का निर्माण किया गया, ताकि पानी का भंडार बढ़ाया जा सके, ज्यादा बड़े क्षेत्र में सिंचाई की जा सके और बाढ़ के खतरों से भी निपटा जा सके। 430 हेक्टेयर के क्षेत्र से बारिश का पानी इकट्ठा करने के लिए टैंक खोदा गया, जिसमें 426 लाख रुपए खर्च हुए। पहले मॉनसून में ही यह टैंक पानी से लबालब भर गया, जिससे 12 हेक्टेयर में सिंचाई की जा सकती है।

प्रमुख प्रभाव
तालाब के निर्माण के कारण शिरोल गांव में अब सिंचित कृषि भूमि का दायरा 12 हेक्टेयर बढ़ गया है, जिससे वहां धान के उत्पादन में उल्लेखनीय सुधार हुआ है

इस समय इस टैंक में 1,568 मिलियन लीटर पानी है। गांव अब 40 फीसदी धान की पैदावार खरीफ के सीजन में और 30 प्रतिशत रबी के सीजन में होती है। साथ ही पूरे साल चारे की खेती भी होती है।

लघु सिंचाई योजना से मिलने वाले फंड से टैंक का नियमित तौर पर रखरखाव किया जाता है। अब्दुल फरीद अब्दुल हामिद खान ठाणे के मृदा और जल संरक्षण विभाग में जिला जल संरक्षण अधिकारी हैं।

अब्दुल बताते हैं, “राज्य में जल निकायों को पुनर्जीवित करने के लिए योजनाएं चल रही हैं। ऐसी ही लघु सिंचाई योजनाओं के तहत महाराष्ट्र के कई जिलों में पानी को संग्रहित करने और भूजल रिचार्ज करने के लिए टैंक बनाए गए थे। स्थानीय लोग पानी के स्रोतों के पुनरुद्धार की इन कोशिशों में बढ़चढ़कर हिस्सा लेते हैं और फसलों की बढ़ी पैदावार का लाभ उठाते हैं।”