जल

"परंपरागत साधनों के संरक्षण से ही बच सकता है जल"

मानसूनी वर्षा के महत्व को समझते हुए इसके संग्रहण के लिए जमीनी प्रयास किए जाने की भी आज आवश्यकता है

DTE Staff

जय प्रकाश पांडेय

भारत मूलतः एक कृषि प्रधान देश है। परिवर्तित जलवायुवीय दशाओं, अनियमित वर्षा पद्धति और सदानीरा नदियों की मात्रा में आ रही कमी के साथ , देश का एक तिहाई क्षेत्र आज सूखा प्रवण है।

पर्वतीय राज्यों जैसे उत्तराखंड के ग्रामीणों, विशेषकर महिलाओं के लिए, घरेलू उपयोग के लिए ताज़ा पानी प्राप्त करने का मतलब कई किलोमीटर से अधिक की दूरी तय करना है। जलसंकट, जल गुणवत्ता और सूखे से जूझ रहे क्षेत्रों की बढ़ती खबरों के साथ, जल संरक्षण और जल संसाधनों का अधिक कुशलता से उपयोग करना आज समय की मांग बन गया है।

बढ़ती आबादी की आवश्यकताओं की पूर्ति और कृषि उत्पादन के स्थिरीकरण के लिए परंपरागत जल स्रोतों के अनुरक्षण, सतही एवं भूजल संसाधनों के त्वरित विकास और उनके रखरखाव की भी आज आवश्यकता है।

विश्व की आबादी में लगभग 18 प्रतिशत हिस्सेदारी रखने वाले भारत में मात्र 4 प्रतिशत जल संसाधन हैं । विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र में जनसंख्या वृद्धि को देखते हुए आने वाले समय में जलसंकट की स्थिति से इंकार नहीं किया जा सकता है । भारत विश्व के कुल जल उपयोग का एक चौथाई से अधिक उपयोग करता है ।

उपभोग और वर्तमान उपयोग के पैटर्न को देखते हुए जल संरक्षण आज के समय की मुख्य आवश्यकता है । भारतीय जल संसाधनों को जलवायु संकट, मानसूनी वर्षा, बांधों के निर्माण, और जल विद्युत की ओर बढ़ते बदलाव के साथ-साथ रेत खनन जैसे स्थानीय कारकों से भी गंभीर खतरा है।

बांधों और विकास परियोजनाओं की वजह से सबसे लंबी नदियाँ आज तेजी से सूखती जा रही हैं। संयुक्त राष्ट्र विश्व जल विकास रिपोर्ट 2023 में भी यह कहा गया है कि जल उपलब्धता के लिए संघर्षरत सर्वाधिक आबादी एशिया में और विशेषकर चीन,भारत और पाकिस्तान में निवासरत है।

संयुक्त राष्ट्र की ही एक अन्य रिपोर्ट के अनुसार, विगत 40 वर्षों में वैश्विक स्तर पर पानी का उपयोग प्रतिवर्ष लगभग 1 प्रतिशत की दर से बढ़ रहा है। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि जलसंकट का सामना करने वाली वैश्विक शहरी आबादी 2016 में 933 मिलियन से बढ़कर 2050 में 1.7-2.4 बिलियन हो जाने का अनुमान है, जिसमें भारत के सबसे गंभीर रूप से प्रभावित होने की प्रायिकता भी सर्वाधिक है।

नीति आयोग की भी वर्ष 2019 की एक रिपोर्ट में यह बताया गया है कि वर्ष 2030 तक गेहूं की खेती के लगभग 74 फीसदी क्षेत्र और चावल की खेती के 65 फीसदी क्षेत्र में जलसंकट उत्पन्न होगा । वर्तमान में हमारी नदियों के जल संग्रहण में भी क्रमिक रूप से कमी देखनी को मिल रही है।

कम वर्षा के कारण नदी प्रवाह में कमी या नदियों और जलाशयों में तलछट के कारण कटाव और तीव्र वर्षा के कारण अवसादन भी देखने को मिल रहा है । इनके सम्मिलित परिणाम जलविद्युत की वहनीय लागत और जल विद्युत उत्पादन को काफी प्रभावित कर सकते हैं। कृषि आधारित राष्ट्र के लिए यह चिंता का कारण है ।

सतत विकास के लिए निर्धारित 17 लक्ष्यों (एसडीजी) में से पृथ्वी पर सबके लिए स्वच्छ पेयजल और स्वच्छता तक पहुंच एक प्रमुख लक्ष्य है। इसको प्राप्त करने के लिए वर्ष 2030 तक की समय सीमा तय की गई है।

इससे पहले भी सहस्राब्दी विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने में अधिकतर देश असफल ही रहे हैं अतः ऐसे में वर्तमान जल संकट को देखते हुए इन लक्ष्यों पर पुनर्चर्चा और लक्ष्य प्राप्ति हेतु कार्ययोजना पर सार्थक संवाद सतत विकास लक्ष्यों की सफलता का मार्ग प्रशस्त कर सकते है।

आंकड़ों की बात करें तो वर्ष 2001 और वर्ष 2011 में भारत में औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता क्रमशः 1816 घन मीटर और 1545 घन मीटर आंकी गई थी, जो वर्ष 2021 में 1486 क्यूबिक मीटर और वर्ष 2031 के लिए 1367 घन मीटर आंकी गई है।

जल उपलब्धता की इस कमी को संकट में बदलते देर नहीं लगेगी अतः आवश्यक है परंपरागत स्रोतों के साथ ही हम लोग जल संरक्षण की दिशा में मजबूत कदम आगे बढ़ाएं । विश्व आर्थिक मंच द्वारा भी इस भयावह स्थिति को समझते हुए वैश्विक जोखिमों में सर्वोच्च स्थान पर जल संकट को स्थान दिया है।

वैश्विक स्तर पर जनसंख्या वृद्धि के साथ स्वच्छ पेयजल उपलब्ध कराना एक बड़ी चुनौती बनती जा रही है। आज सूखे और फसल की बर्बादी से प्रभावित लाखों किसान जीवन के लिए संघर्षरत हैं।

वर्ष 2018 में नीति आयोग द्वारा प्रकाशित “समग्र जल प्रबंधन सूचकांक” शीर्षक व रिपोर्ट में उल्लेख किया गया है कि भारत अपने इतिहास में सबसे खराब जल संकट से गुजर रहा है और लगभग 600 मिलियन लोग जल संकट का सामना कर रहे हैं।

रिपोर्ट में आगे उल्लेख किया गया है कि जल गुणवत्ता सूचकांक में भारत 122 देशों में 120वें स्थान पर है, जिसमें लगभग 70% पानी दूषित है। मानवीय और जलवायुवीय दोनों कारकों के कारण पिछले तीन दशकों में बड़ी झीलों में संग्रहीत पानी की मात्रा में भी कमी आई है।

उपग्रह अवलोकन, जलवायु मॉडल और हाइड्रोलॉजिकल मॉडल के उपयोग से यह निष्कर्ष प्राप्त हुआ है कि बड़ी प्राकृतिक झीलों और जलाशयों दोनों में से 50% से अधिक मात्रा में हानि का अनुभव हुआ है।

शोध के अनुसार भारत में भी 30 से ज्यादा बड़ी झीलों में पानी घट रहा है। इनमें दक्षिण भारत की 16 बड़ी झीलें भी हैं, जिनमें मेत्तूर, कृष्णराजसागर, नागार्जुन सागर और इदमलयार आदि शामिल हैं ।

विश्व में भू-जल का सबसे अधिक निष्कर्षण करने वाले देश भारत में , निष्कर्षित भू-जल का केवल 8 फीसदी ही पेयजल के रूप में उपयोग किया जाता है। जबकि, इसका 80 फीसदी भाग सिंचाई में और शेष 12 प्रतिशत हिस्सा उद्योगों द्वारा उपयोग किया जाता है।

सतही जल की आपूर्ति में भूजल की महत्त्वपूर्ण भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है। घरेलू, ग्रामीण, शहरी, औद्योगिक और कृषि आवश्यकताओं के लिए जल आपूर्ति को सुनिश्चित करते भूजल संसाधन अक्षय नहीं है।

इनके ऊपर बढ़ते दबाव ने भूजल संसाधनों के दोहन, प्रबंधन और संरक्षण के लिए नीति निर्माण की प्रासंगिकता सिद्ध की है।

यूनाइटेड नेशंस यूनिवर्सिटी द्वारा जनवरी में जारी किए गए एक अध्ययन से पता चला है कि तलहटी में जमा होने वाले गाद की वजह से वर्ष 2050 तक बड़े बांधों की जल भण्डारण क्षमता में भी 26 फीसदी की गिरावट आ सकती है। बांधों की जल भंडारण क्षमता में आ रही इन कमियों के लिए नीतिगत फैसलों में भी परिवर्तन आवश्यक हैं ।

जलसंकट को दूर करने के लिए वर्तमान सरकार द्वारा दूरदर्शी सोच दिखाते हुए वैश्विक मंचों के सहयोग से भी अनेक परियोजनाओ का क्रियान्वयन किया जा रहा है । जल संसाधनों के राज्य सूची का विषय होने के कारण अक्सर ये प्रयास राजनीति के ही शिकार भारत में होते आए हैं ।

वर्तमान सरकार के प्रयासों से स्वच्छ गंगा के प्रबंधन और संस्थागत क्षमता विकास के लिए राष्ट्रीय मिशन के अंतर्गत विश्व बैंक भारत सरकार को 1 बिलियन डॉलर की मदद भी कर रहा है । विश्व बैंक की एक अन्य परियोजना, बांध पुनर्वास और सुधार परियोजना, ने पुनर्वास, क्षमता-मजबूतीकरण और संस्थागत ढांचे को बढ़ाने के उपायों के माध्यम से देश में 223 बांधों की सुरक्षा और प्रदर्शन में भी सुधार किया है ।

भारतीय राज्यों की लगभग 8,220 ग्राम पंचायतों में कार्यान्वित, दुनिया के सबसे बड़े समुदाय-आधारित भूजल प्रबंधन कार्यक्रम,अटल भूजल योजना कार्यक्रम को भी इन्हीं प्रयासों में एक और सार्थक कदम कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी ।

सर्बाधिक भूजल की कमी वाले क्षेत्रों में ग्रामीण आजीविका को बेहतर बनाने के उद्देश्य से संचालित इस कार्यक्रम में विश्व बैंक द्वारा भी सहयोग किया जा रहा है । ग्रामीण क्षेत्रों में जल संकट को दूर करने के लिये भारत के प्रत्येक ज़िले में कम-से-कम 75 अमृत सरोवरों के निर्माण के लिए 24 अप्रैल, 2022 को ‘अमृत सरोवर मिशन’ का भी शुभारंभ वर्तमान सरकार द्वारा किया गया है।

जहां एक तरफ आज प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना – वाटरशेड डेवलपमेंट कंपोनेंट (PMKSY-WDC)’ के जरिए जल संचयन और संरक्षण कार्यों के निर्माण में गतिशीलता आई है तो वहीं दूसरी ओर जल की उपलब्धता, संरक्षण और गुणवत्ता में सुधार के उद्देश्य से ‘जल शक्ति अभियान’ सरीखे कार्यक्रम भी वर्तमान सरकार द्वारा चलाए जा रहे हैं।

नागरिक प्रयासों की बात करें तो बुंदेलखंड की धरती से आने वाले जल प्रहरी श्री रामबाबू तिवारी सरीखे नौजवानों द्वारा गांवों में पानी चौपाल, पानी पंचायत लगाकर सामूहिक श्रमदान से 74 से अधिक तालाबों का जीर्णोद्धार कराया है। खेत का पानी खेत में, गांव का पानी गांव में मिशन के तहत बरसात का पानी को रोकने को खेतों में मेड़बंदी कराई गई है । ऐसे जागरूक नागरिकों के प्रयासों को भी बल दिए जाने की आज आवश्यकता है।

वस्तुत: वृहद सिंचाई योजनाओं के स्थान पर लघु सिंचाई योजनाओं और परंपरागत जल स्रोतों के अनुरक्षण से विशेषकर छोटे एवं सीमांत किसान तथा पहाड़ों के निवासियों को लाभ होगा इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती । जल बजट हेतु भारत की निर्भरता प्रायःमानसून पर ही होती है।

इस मानसूनी वर्षा के महत्व को समझते हुए इसके संग्रहण के लिए जमीनी प्रयास किए जाने की भी आज आवश्यकता है। आज विश्व बैंक समर्थित कर्नाटक जल आपूर्ति सुधार परियोजना ने अब साबित कर दिया है कि शहरी क्षेत्रों में 24/7 पानी की आपूर्ति वास्तव में संभव, सस्ती और टिकाऊ है।

जलसंकट के समाधान के लिए विश्व के समस्त देशों को एक साथ आने की आज आवश्यकता है। जल संग्रहण के हमारे परंपरागत साधन झोड़ा, बावड़ी, नौलों आदि के अनुरक्षण की दिशा में किए गए प्रयास भी इस क्रम में सार्थक सिद्ध होंगे।

वर्षा जल संग्रहण को अनिवार्य करने जैसे सशक्त कदम भी वर्तमान स्थितियों में प्रासंगिक होंगे। आधुनिक सिंचाई तकनीकों का भी उपयोग इस समस्या को काफी हद तक नियंत्रित कर सकता है। दक्षिणी अफ्रीका, सूडान,यमन, मैक्सिको,जॉर्डन, सोमालिया और ऑस्ट्रेलिया के जलसंकट के सबक यदि हम लेंगे तो समवेत सहयोग से इस संकट से बाहर निकलने में हम सक्षम सिद्ध होंगे।

लेेखक ओएनजीसी, देहरादून में वरिष्ठ राजभाषा अधिकारी हैं। लेख में व्यक्त विचार उनके व्यक्तिगत हैं।