स्वच्छ जल के बिना एक स्वस्थ और सुखद जीवन की कल्पना करना असंभव है। चाहे केंद्र हो या राज्य, ग्रामीण समुदायों तक पानी पहुंचाना हर नई सरकार की प्राथमिकता रही है।
हालांकि अनुभव से पता चलता है कि भले ही पानी की सुविधा कई गांवों में “उपलब्ध” हो गई है, लेकिन ऐसे गांवों की संख्या भी बढ़ी है, जहां पानी फिर से “अनुपलब्ध” हो चुका है।
दरअसल जलापूर्ति का मतलब केवल पाइपें बिछाना नहीं है, बल्कि आपूर्ति प्रणाली के स्रोत को सुनिश्चित करना भी है। मतलब यह कि भले ही पानी की आपूर्ति गांव तक पहुंच गई हो, लेकिन स्रोत के सूख जाने या दूषित होने से पाइप बिछाने का कोई फायदा नहीं होता।
ऐसे में जल आपूर्ति प्रणाली, विशेषकर जल आपूर्ति के स्रोत की स्थिरता सुनिश्चित करना मुख्य चुनौती बन जाती है। भारत सरकार का महत्वाकांक्षी और बेहद जरूरी जल जीवन मिशन (जेजेएम) इस मूलभूत दोष को समझता है और स्थिरता पर जोर देता है, ताकि नलों में लगातार पानी आता रहे। इस प्रकार, जेजेएम का सबसे महत्वपूर्ण उद्देश्य हर घर में एक नल की व्यवस्था न होकर “चालू” हालत में एक नल होना है।
इसके लिए जल सम्पत्तियों अथवा वाटर ऐसेट्स के स्थायित्व में सुधार पर ध्यान देने की जरूरत है। यह सुनिश्चित किया जाए कि तालाब या झील या टैंक पर अतिक्रमण नहीं किया गया है और जल निकासी की सुरक्षा की दृष्टि से अति महत्वपूर्ण जल क्षेत्र नष्ट नहीं होंगे। इसके लिए स्रोत स्थिरता की भी आवश्यकता है ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि जल स्रोत चाहे वह नदी, झील या कुआं हो, अच्छी तरह से रिचार्ज हो। साथ ही भूमि पर फेंका गया मलमूत्र या वैसे घर जिनमें अब नल और शौचालय हैं, उनसे निकलने वाला अपशिष्ट पानी को प्रदूषित न करे।
यह सोचनेवाली बात है कि घरों में आपूर्ति किया जाने वाला 80 प्रतिशत पानी अपशिष्ट जल के रूप में बहा दिया जाता है। ग्रामीण इलाकों में, स्वच्छता कार्यक्रम ऐसे शौचालयों के निर्माण पर जोर देते हैं जिनमें न्यूनतम पानी का उपयोग होता है। अधिकांश अपशिष्ट जल खुले में छोड़ दिए गए ग्रे वाटर के रूप में होता है। शौचालय को छोड़कर अन्य काम, जैसे स्नान, कपड़े धोने और बर्तन धोने जैसे सभी मानव उपयोगों से पैदा होने वाले अपशिष्ट जल को ग्रे वाटर कहते हैं।
यह ग्रे वाटर छोटे तालाबों की शक्ल में इकठ्ठा होकर वेक्टर्स (सदिश) और अन्य बीमारियों के लिए प्रजनन स्थल बनने के अलावा भूजल और सतही पानी के लिए प्रदूषण का एक और स्रोत बन जाता है। अतः ग्रे वाटर प्रबंधन खेती के लिए या भूजल को रिचार्ज करने के लिए अपशिष्ट जल का पुन: उपयोग करना, स्रोत स्थिरता की कुंजी है। यह पानी हमारे काम का है, बर्बादी के लिए नहीं।
इसके साथ ही हमें जल आपूर्ति की समस्या को स्वच्छता और अपशिष्ट जल उत्पादन की प्रणाली से जोड़कर देखना होगा। हमें यह समझने की जरूरत है कि जब हम पानी को प्रदूषित करते हैं तो उसे बर्बाद भी करते हैं। असल मुद्दा यह है कि, शौचालय निर्माण कार्यक्रम तब तक अधूरा रहेगा जब तक कि अपशिष्ट जल (एकल या दोहरे गड्ढे या बिना लाइन वाले या हनीकॉम्ब वाले व्यक्तिगत शौचालय में मौजूद फीकल स्लज) का सुरक्षित रूप से निपटान नहीं किया जाता है।
इसका अर्थ यह है कि फीकल स्लज को या तो शौचालय के भीतर ही उपचारित किया जाए (इन सीटू अथवा यथास्थान उपचार) ताकि जब इसे खाली किया जाए, तो पानी या भूमि को प्रदूषित किए बिना स्लज को खाद के रूप में पुन: उपयोग हो सके। या फिर ऐसी व्यवस्था हो जिसमें अपशिष्ट मल को जमा कर उपचार संयंत्रों तक ले जाया जाए और उपचार के बाद ही खेतों में प्रयोग में लाया जाए।
हम जानते हैं कि मल पदार्थ (भोजन के पाचन के बाद हम जो उत्सर्जित करते हैं उसमें मिट्टी से लिया हुआ नाइट्रोजन और फास्फोरस होता है) पोषक तत्वों से भरपूर होता है। इस अपशिष्ट को जलाशयों में बहा देने की बजाय वापस भूमि में डाला जाना चाहिए। लेकिन ऐसा उपचार के बाद ही किया जाना चाहिए ताकि अपशिष्ट हमारे स्वास्थ्य पर खतरा न बन जाए।
लेकिन सबसे महत्वपूर्ण सीख यह है कि जब तक समुदायों को सीधे तौर शामिल नहीं किया जाएगा, तब तक जल आपूर्ति कार्यक्रम निष्क्रिय रहेंगे।
असली समस्या यह है कि भूमि और जल नौकरशाही में कोई तालमेल नहीं है, तालाब का मालिक कोई है, कोई अन्य एजेंसी नालियों को देखती है और जलग्रहण क्षेत्र को कोई और। जल सुरक्षा के लिए इसमें बदलाव की आवश्यकता है।
इसका मतलब है कि लोकतंत्र को मजबूत करके और शक्तियों के हस्तांतरण के माध्यम से स्थानीय समुदाय को जल संरचनाओं पर अधिक नियंत्रण देना, यही जल प्रबंधन की सही राह है। सब को स्वच्छ पानी की आपूर्ति करने के हमारे लक्ष्य में यह अगला गेम चेंजर साबित होगा।
आज की जलवायु जोखिम भरी दुनिया में यह और भी महत्वपूर्ण है। हम इस दशक में प्रकृति का प्रतिशोध देखेंगे। हमें जल प्रणालियों में निवेश करने और उन्हें टिकाऊ बनाने के काम में लगे रहने की जरूरत है, न केवल एक और बारिश की झड़ी बल्कि एक और बाढ़ का सामना करने के लिए।
हमें अपने काम में तेजी लाने की जरूरत है, क्योंकि जलवायु परिवर्तन के फलस्वरूप हमारे यहां अधिक बारिश तो होगी, लेकिन कम समय में। इसका मतलब है कि बारिश जब और जहां हो, हम उसे इकठ्ठा करने की दिशा में कदम उठाएं ताकि भूजल रिचार्ज हो सके।
हमारा जल भविष्य हमारे जल ज्ञान से निर्धारित होगा और हमें इस बात का ध्यान रखना होगा कि पानी और संस्कृति एक साथ चलते हैं। पानी की कमी का मतलब केवल बारिश का न होना नहीं है। यह जीवन जीने और अपनी जल संपदा को साझा करने में समाज की विफलता का परिचायक है।