जालौन जिले के मीगनी ग्राम पंचायत के तहत आने वाले हिम्मतपुरा और मीगनी गांव की तस्वीर बदलने में मनरेगा ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इसका सबसे अधिक फायदा दलित और वंचित तबकों को पहुंचा है। इसे हिम्मतपुरा गांव से समझा जा सकता है। गांव में सभी निवासी दलित समुदाय के हैं। इस गांव में साल 2004 में परमार्थ समाजसेवी संस्था की मदद से एक चेकडैम बनाया गया था। इसका फायदा कुछ साल तक लोगों को मिला लेकिन बाद के वर्षों में यह चेकडैम भर गया और भीषण जलसंकट फिर शुरू हो गया। साल 2017 में मनरेगा से इस चेकडैम का पुनरोद्धार किया गया। इसके बाद मानो चमत्कार हो गया।
चेकडैम के पुनरोद्धार के बाद पानी के जलस्तर में वृद्धि हुई और गांव के सूखे चुके कुओं में जान आ गई। वर्तमान में गांव में तीन कुएं हैं जो 80 प्रतिशत ग्रामीणों की प्यास बुझा रहे हैं। चेकडैम का सबसे बड़ा लाभ खेती को हुआ। गांव के करीब 70 एकड़ में फैले खेतों को चेकडैम से पानी मिलने लगा है। पुष्पेंद्र सिंह भी एक ऐसे ही किसान हैं जिनका एक एकड़ खेत अब सोना उगल रहा है। उनका कहना है कि पहले उनके खेत में मुश्किल से 40 किलो सरसों होता था लेकिन चेकडैम से पानी मिलने के बाद पैदावार में रिकॉर्ड बढ़ोतरी हुई। अब एक एकड़ में 4 क्विंटल सरसों की पैदावार हो रही है। गेहूं का उत्पादन भी दोगुना हो गया है। पानी के अभाव में पहले यहां गेहूं उगता ही नहीं थी। पानी मिलने पर अब वह साल में दो फसलें कर रहे हैं। पुष्पेंद्र बताते हैं कि खेत को पानी मिलने से उनका उत्पादन और आय 10 गुणा तक बढ़ गई है। पुष्पेंद्र अपने घर के बाहर बने कुएं में पानी आने का श्रेय भी चेकडैम को देते हैं।
हिम्मतपुरा के मुन्नीलाल भी मनरेगा से पुनर्जीवित हुए चेकडैम की बदौलत गरीबी के दुष्चक्र से काफी हद तक बाहर निकल चुके हैं। वह 2005 तक गांव से बाहर रहे। उन्होंने कभी ट्रक चलाया तो कभी राज मिस्त्री का काम किया। 2010 में गांव में पूरी तरह बस गए और तब से लगातार खेती कर रहे हैं। उनका कहना है, “अगर चेकडैम से पानी नहीं मिलता तो खेती संभव नहीं हो पाती।” पहले गांव में खेती घाटे का सौदा थी लेकिन अब यह सभी ग्रामीणों का पेट भर रही है। ग्रामीण बताते हैं कि करीब 15 साल पहले तक गांव के सभी परिवार साहूकारों के कर्ज तले दबे थे। अधिकांश परिवार भुखमरी का शिकार थे। चेकडैम से पानी मिलने पर खेती आय का साधन बन गई और धीरे-धीरे लोग साहूकारों के कर्ज के भंवरजाल से बाहर निकल आए। हिम्मतपुरा में अब लोग धान, बैंगन, आलू, गाजर आदि भी खेती भी कर रहे हैं जो पहले असंभव थी। ग्रामीणों की आय बढ़ने पर शिक्षा के स्तर में भी सुधार हुआ है। मुन्नीलाल दावे के साथ कहते हैं कि गांव ऐसा कोई लड़का या लड़की नहीं है जो अशिक्षित हो। खेती से आमदनी में वृद्धि का नतीजा यह निकला कि 95 प्रतिशत लोगों ने पक्के घर बना लिए हैं और लगभग हर घर में भैंस है। आज गांव के किसान खेती के अलावा औसतन 240 रुपए का अतिरिक्त आय प्रतिदिन अर्जित कर रहे हैं।
हिम्मतपुरा में बने चेकडैम को जब पड़ोसी गांव मीगनी ने देखा तो वहां भी इन्हें बनाने की मांग उठने लगी। 2010 के बाद इस गांव में एक के बाद एक पांच चेकडैम बनाए गए। इतना ही नहीं समय-समय पर इन चेकडैम का रखरखाव भी मनरेगा से हुआ। इन चेकडैम ने वर्षा के पानी पर कृषि की निर्भरता को बहुत हद तक खत्म कर दिया है। ये सभी चेकडैम पानी से लबालब हैं। सूखाग्रस्त बुंदेलखंड के किसी गांव में ऐसा नजारा दुर्लभ है।
गांव के प्रधान राजेश कुमार बताते हैं कि इन चेकडैम ने सूखे का प्रकोप खत्म कर दिया है। अब भीषण सूखे और गर्मी में भी यहां पानी की दिक्कत नहीं होती। गांव के कुओं में भी अब पूरे साल पानी रहता है। चेकडैम के पानी से अपने 7 एकड़ खेत सींचने वाले कामता प्रसाद बताते हैं, “करीब 10 साल पहले तक पानी की इतनी दिक्कत थी कि अधिकांश खेतों बेकार पड़े रहते थे। किसान केवल एक ही फसल करते थे। लेकिन अब सभी किसान दो फसलें उगा रहे हैं। गांव में करीब 800 एकड़ यानी 80 प्रतिशत खेत इन चेकडैम के पानी से सिंचित हो रहे हैं।” कामता प्रसाद बताते हैं कि चेकडैम की बदौलत जहां खेतों को पर्याप्त पानी मिला, वहीं कुएं और हैंडपंप का भी जलस्तर सुधर गया है। किसान राम बिहारी के खेत में बने कुएं में 2010 से पहले केवल बरसात में पानी भरता था, लेकिन अब 10 फीट की गहराई पर पानी है। उनके ढाई एकड़ के खेत को चेकडैम और कुएं से जीवनदान मिला है।
जालौन जिले में मनरेगा से जल संरचनाओं के निर्माण की शुरुआत 2005-06 से हो गई थी। हालांकि इस साल तालाब निर्माण का केवल एक काम हुआ। लेकिन बाद के वर्षों में कार्यों ने गति पकड़ी और 2020-21 तक कुल 23,174 संरचनाओं का निर्माण पूरा कर लिया गया। इन कामों से रोजगार के 1.54 करोड़ मानव दिवस सृजित हुए। इन निर्माण कार्यों पर कुल 226.73 करोड़ रुपए खर्च किए गए। 2016-17 में सर्वाधिक 2,961 संरचनाओं का निर्माण हुआ।
मीगनी ग्राम पंचायत की बात करें तो मनरेगा से 2007-08 में जल संरक्षण के काम शुरू हो गए। ग्राम पंचायत में अब तक हुए कुल 211 कार्यों में 72 काम अकेले जल संरक्षण व संचयन से संबंधित थे। यानी गांव में हुए समस्त कामों में 30 प्रतिशत से अधिक जल संरक्षण की हिस्सेदारी रही। जिले में मनरेगा उपायुक्त एके श्रीवास्तव बताते हैं कि सामुदायिक कार्यों के अलावा जिले में जल संरक्षण से जुड़े व्यक्तिगत कार्य भी प्रमुखता से किए जा रहे हैं। अकेले 2020-21 में करीब 2,500 व्यक्तिगत परिसंपत्तियों का निर्माण हुआ है। उनका कहना है कि खेत का पानी खेत में रोकने के लिए अब खेत तालाब और मेड़बंदी जैसे व्यक्तिगत कार्य प्राथमिकता के आधार पर किए जा रहे हैं।