उत्तर प्रदेशके लखनऊ में सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट और उत्तर प्रदेश के शहरी विकास विभाग ने एक कार्यशाला का आयोजन किया। फोटो: सीएसई 
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जल प्रबंधन में आगे बढ़ रहा है उत्तर प्रदेश, लेकिन कई शहर अभी भी हैं पिछड़े, सीएसई रिपोर्ट

सीएसई के आकलन के अनुसार उत्तर प्रदेश ने अपने शहरी जल और अपशिष्ट जल के प्रबंधन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति की है, लेकिन कुछ शहरों का प्रदर्शन अभी भी औसत से नीचे है

Anil Ashwani Sharma

उत्तर प्रदेश अपने 762 शहरों के साथ आने वाले समय में अपने शहरी क्षेत्रों को जल-सुरक्षित बनाने की दिशा में महत्वपूर्ण पहल कर रहा है। अमृत मिशन के तहत, शहरों के बुनियादी ढांचे को विकास, सेप्टेज प्रबंधन सुविधाओं और झील कायाकल्प परियोजनाओं की मदद से बदला जा रहा है। लेकिन क्या राज्य इन परियोजनाओं और पहलों की स्थिरता और सर्वोत्तम उपयोग सुनिश्चित कर पा रहा है?

आज नई दिल्ली स्थित थिंक टैंक सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) और उत्तर प्रदेश सरकार के शहरी विकास विभाग (डीओयूडी) द्वारा संयुक्त रूप से आयोजित कार्यशाला और उच्च स्तरीय बैठक में यही सवाल पूछा गया और इस विषय पर चर्चा की गई। इस कार्यक्रम का शीर्षक था “उत्तर प्रदेश में सतत स्वच्छता और झील प्रबंधन की ओर”। सीएसई, उत्तर प्रदेश राज्य सरकार और उसकी एजेंसियों के साथ मिलकर काम कर रहा है ताकि जल और अपशिष्ट जल के प्रबंधन के क्षेत्र में उनकी क्षमता का निर्माण किया जा सके।


सीएसई ने इस अवसर पर उत्तर प्रदेश से संबंधित तीन नई रिपोर्ट भी जारी की:

  •   “सेप्टेज मैनेजमेंट इन उत्तर प्रदेश: स्केलिंग अप एंड सस्टेनेबलिटी लेसन्स”

  •  “इंफ्यूजिंग न्यू लाइफ:गैप्स एंड चैलेंजेज इन मैनेजिंग लेक्स एंड पॉन्ड्स एंड ग्राउंड वाटर इन फोर सेलेक्ट अमृत सिटीज ऑफ उत्तर प्रदेश”

  •  “मॉनिटरिंग एंड इवैल्यूएशन ऑफ एफ एस टी पी एंड एसटीपी को-ट्रीटमेंट प्लांट्स इन उत्तर प्रदेश”

इस मौके पर सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) की महानिदेशक सुनीता नारायण ने कहा कि उत्तर प्रदेश ने अपने जल और अपशिष्ट जल के प्रबंधन के लिए कई उपाय किए हैं। उदाहरण के लिए, राज्य ने 58 फीकल स्लज और सेप्टेज प्रबंधन (एफएसएसएम) संयंत्रों का निर्माण किया है, जिनमें से लगभग 40 पहले से ही चालू हैं। अब राज्य भूजल प्रबंधन और झील कायाकल्प पर भी ध्यान केंद्रित कर रहा है। इसमें अगला कदम यह सुनिश्चित करना है कि ये पहले संवहनीय हों और इनका अधिकतम उपयोग हो।”

सुनीता नारायण कार्यशाला को संबोधित कर रही थी। इस कार्यशाला का आयोजन सीएसई और उत्तर प्रदेश के शहरी विकास विभाग ने संयुक्त रूप से किया। इस अवसर पर उत्तर प्रदेश में सतत स्वच्छता और झील प्रबंधन पर एक उच्च स्तरीय बैठक भी आयोजित की गई।

नारायण ने कहा, “हमारा जल संकट सभी को स्वच्छ जल उपलब्ध कराने के लिए जल प्रबंधन की एक किफायती प्रणाली बनाने में हमारी असमर्थता के फलस्वरूप पैदा हुआ है। इस समस्या को और बढ़ाने वाला एक कारक जलवायु परिवर्तन है, जो जल संकट को और गंभीर बना रहा है। हमें जल के प्रति संवेदनशील और सुरक्षित भविष्य सुनिश्चित करने के लिए अपनी वर्तमान प्रथाओं पर फिर से काम करने की आवश्यकता है। हमें पानी को रोकने, इसे रिचार्ज करने, इसके उपयोग को कम करने और हर बूंद को रिसाइकिल और पुनः उपयोग करने की अपनी क्षमता को बढ़ाने की आवश्यकता है।”

कार्यशाला में नगर निगम, नगर पालिका, जलकल और जल निगम के अधिकारी और इंजीनियर मौजूद थे। कार्यशाला को नारायण के अलावा, अमृत के राज्य मिशन के निदेशक अजय कुमार शुक्ला, आईएएस, एसबीएम की अतिरिक्त राज्य मिशन निदेशक रितु सुहास और अमृत के अतिरिक्त राज्य मिशन निदेशक पीके श्रीवास्तव ने भी संबोधित किया।

उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए पीके श्रीवास्तव ने कहा कि शहरों को जल-सुरक्षित बनाने के लिए अधिकारियों को हर क्षेत्र में काम करने की आवश्यकता है। उन्होंने जलाशयों के आसपास के सौंदर्यीकरण पर ध्यान केंद्रित करने की जरूरत पर बल दिया। वहीं अपने संबोधन में रितु सुहास ने इस बात पर जोर दिया कि “यूपी को जमीनी स्तर पर सामने आ रही चुनौतियों को समझने की जरूरत है। एफएसएसएम परियोजनाएं, जो कुछ शहरों में शुरू की हैं, उन्हें बाकी शहरों में भी शुरू किया जाना चाहिए।

सीएसई के जल कार्यक्रम के वरिष्ठ कार्यक्रम प्रबंधक सुब्रत चक्रवर्ती बताते हैं कि यूपी सरकार के शहरी विकास विभाग ने अपने एसबीएम और अमृत कार्यक्रमों के माध्यम से शहरों को अपने एफएसएसएम संयंत्रों को चालू करने में सहायता की है। विभाग ने शहरों को दिशानिर्देश देने के अलावा, शहर के अधिकारियों और अन्य हितधारकों के लिए क्षमता निर्माण कार्यक्रम आयोजित किए हैं और जागरूकता पैदा करने के लिए आईईसी अभियान लागू किया है।

राज्य ने मॉडल एफएसएसएम उपनियम, एक अनुबंध दस्तावेज और ओएंडएम लागत और डीस्लजिंग के अर्थशास्त्र पर एक मार्गदर्शन नोट भी जारी किया है। इसके अलावा एक राज्य स्तरीय निगरानी और समीक्षा प्रणाली लागू की गई है जो सेप्टेज प्रबंधन सेवाएं प्रदान करने में शहर के प्रदर्शन को रैंक प्रदान करेगी।

हालांकि, राज्य के 58 एफएसएसएम संयंत्रों के सीएसई द्वारा हाल ही में किए गए आकलन में पाया गया है कि लखनऊ सहित 20 शहर अपने संयंत्रों को कार्यात्मक बनाने में पिछड़ रहे हैं। राज्य मिशन (अमृत) को इस बारे में जानकारी दे दी गई है तथा इन 20 शहरों के प्राधिकारियों को अपना स्तर बढ़ाने के निर्देश जारी कर दिए हैं।

कार्यशाला के दौरान सीएसई ने इस अवसर पर उत्तर प्रदेश से संबंधित तीन नई रिपोर्ट भी जारी की। पहली रिपोर्ट “सेप्टेज मैनेजमेंट इन उत्तर प्रदेश: स्केलिंग अप एंड सस्टेनेबलिटी लेसन्स”, दूसरी “इंफ्यूजिंग न्यू लाइफ:गैप्स एंड चैलेंजेज इन मैनेजिंग लेक्स एंड पॉन्ड्स एंड ग्राउंड वाटर इन फोर सेलेक्ट अमृत सिटीज ऑफ उत्तर प्रदेश” और तीसरी “मॉनिटरिंग एंड इवैल्यूएशन ऑफ एफ एस टी पी एंड एसटीपी को-ट्रीटमेंट प्लांट्स इन उत्तर प्रदेश” है।

कार्यशाला के अंत में समापन भाषण देते हुए सीएसई के जल कार्यक्रम निदेशक दीपिंदर एस कपूर ने कहा, “बिना सीवर वाली सफाई व्यवस्था भारत के अधिकांश शहरों में स्वच्छता संबंधी कमियों को दूर करने की दिशा में एक आदर्श बदलाव ला सकती है। ओडिशा के बाद, उत्तर प्रदेश देश का दूसरा राज्य है, जिसके 40 से अधिक शहरों में कार्यात्मक सेप्टेज उपचार संरचनाएं मौजूद हैं। इन संयंत्रों के संचालन और उचित परिणाम सुनिश्चित करने के लिए संचालन और रखरखाव अगली चुनौती है।”