जल

संयुक्त राष्ट्र 2023 जल सम्मेलन: अपने जीवनरक्त को बर्बाद कर रही है मानवता - एंटोनियो गुटेरेस

जल एक मानवाधिकार है, लेकिन जिस तरह से हमने इसका दुरूपयोग किया है उसके चलते यह अमूल्य संसाधन आज करोड़ों की पहुंच से दूर होता जा रहा है

Lalit Maurya

संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस का कहना है कि "जल संकट में है। मानवता अपने जल रूपी जीवनरक्त को बर्बाद कर रही है।" उनके अनुसार हम अपने जल संसाधनों का बहुत ज्यादा दोहन कर रहे हैं। उसको बिना सोचे समझे व्यर्थ बहा रहे हैं और तापमान में होती वृद्धि के जरिए ऐसे ही भाप बनकर उड़ने दे रहें है। यह बातें उन्होंने 22 मार्च, 2023 को संयुक्त राष्ट्र जल सम्मेलन के उद्घाटन के अवसर पर कहीं हैं।

गौरतलब है कि ‘संयुक्त राष्ट्र 2023 जल सम्मेलन’, न्यूयॉर्क में, 22 से 24 मार्च 2023 के बीच आयोजित किया गया है। देखा जाए तो मानवता के लिए यह सम्मेलन 2030 तक सुरक्षित जल व स्वच्छता तक सार्वभौमिक पहुंच की दिशा में प्रगति को तेज करने का एक अवसर है। इस तीन दिवसीय सम्मेलन की सह-मेजबानी नीदरलैंड्स और ताजिकिस्तान कर रहे हैं।

अमूल्य जल संसाधन, “गहरे संकट में” हैं। यही वजह है कि इससे पहले बहुत देर हो जाए, दुनिया भर के नेता, ‘इस बहुकोणीय वैश्विक संकट’ के समाधानों पर चर्चा करने के लिए यूएन मुख्यालय में जमा हुए हैं। इस बैठक का उद्देश्य वैश्विक जल संकट के प्रति जागरूकता बढ़ाना और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर जल संबंधी लक्ष्यों को हासिल करने के लिए ठोस कार्रवाई पर निर्णय लेना है।

जल एक मानवाधिकार है, लेकिन जिस तरह से हमने इसका दुरूपयोग किया है उसके चलते यह अमूल्य संसाधन आज करोड़ों की पहुंच से दूर होता जा रहा है। समस्या किस कदर गंभीर हो चुकी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि आज वैश्विक स्तर पर करीब 200 करोड़ लोगों के पास पीने का सुरक्षित पानी उपलब्ध नहीं है, जबकि 46 फीसदी आबादी ऐसे वातावरण में जीवन-यापन करने को मजबूर है, जहां स्वच्छता का आभाव है।

सात वर्षों में आपूर्ति से 40 फीसदी बढ़ जाएगी ताजे पानी की मांग

वहीं दुनिया में करीब 320 करोड़ लोग ऐसे हैं जिन्हें साल में कम से कम एक महीने पानी की भारी किल्लत का सामना करना पड़ रहा है। शहरों में तो यह समस्या कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले चुकी है आज दिल्ली, चेन्नई जैसे अनगिनत शहर पानी की कमी से त्रस्त हैं। मौजूदा आंकड़ों पर गौर करें तो दुनिया में शहरों में बसने वाले 100 करोड़ लोग आज जल संकट का सामना कर रहे हैं। वहीं अंदेशा है कि 2050 तक यह आंकड़ा बढ़कर 240 करोड़ तक पहुंच जाएगा।

हाल ही में संयुक्त राष्ट्र संयुक्त द्वारा जारी नई 'वर्ल्ड वाटर डेवलपमेंट रिपोर्ट 2023' से पता चला है कि यदि ऐसा ही चलता रहा तो 2050 तक शहरों में पानी की मांग 80 फीसदी तक बढ़ जाएगी। कुछ ऐसा ही हाल गांवों का भी है। जहां जल संकट की समस्या गंभीर होती जा रही है, जिसके लिए कहीं न कहीं भूजल का गिरता स्तर और नदियों, झीलों आदि में गिरती जल गुणवत्ता जिम्मेवार है।

यदि ऐसा ही चलता रहा तो अगले सात वर्षों में ताजे पानी की मांग, उसकी आपूर्ति से 40 फीसदी बढ़ जाएगी। नतीजन पानी को लेकर होती खींचतान कहीं ज्यादा गंभीर रूप ले लेगी। वैसे भी दुनिया के कही हिस्सों में पानी को लेकर होने वाले संघर्ष की घटनाएं आम हो चुकी हैं।

इस अवसर पर संयुक्त राष्ट्र महासचिव ने रेखांकित किया कि पानी एक मानवाधिकार है, जो विकास के लिए अत्यंत जरूरी है। इससे के बेहतर कल को आकार मिलेगा। लेकिन साथ ही उन्होंने चेताया कि, "मनुष्य ने जल चक्र को तोड़ दिया है, पारिस्थितिक तंत्र को नष्ट करने के साथ भूजल को दूषित कर दिया है।”

जलवायु परिवर्तन और जल संकट में है गहरा सम्बन्ध

उन्होंने पानी से जुड़े खतरों को लेकर आगाह करते हुए कहा कि चार में से तीन प्राकृतिक संकट, पानी से जुड़े हुए हैं। धरती के करीब एक चौथाई हिस्से पर लोगों को सुरक्षित तरीके से प्रबंधित जल सेवाओं या साफ पानी के बिना ही जीवित रहना पड़ता है। आज भी लाखों बच्चियों को हर दिन पानी लाने के लिए कई घंटों का समय खर्च करना पड़ता है।

ऐसे में संयुक्त राष्ट्र प्रमुख एंटोनियो गुटेरेस ने चार प्रमुख क्षेत्रों में कार्रवाई करने की दरकार की है। इसमें सबसे पहले जल प्रबंधन में मौजूद खाई है। उनके अनुसार सरकारों को ऐसी योजनाएं लागू करने की जरूरत हैं जिनसे सभी लोगों के लिए जल की सामान पहुंच सुनिश्चित हो सके। साथ ही जल संरक्षण को भी प्रोत्साहित करना जरूरी है। उनका कहना है कि इस बेशकीमती संसाधन के संयुक्त प्रबंधन के लिए सबको एक साथ मिलकर काम करने की जरूरत है। इसके साथ ही

जल और स्वच्छता सम्बंधित प्रणालियों में भी व्यापक रूप से संसाधनों के निवेश की जरूरत है। इसके लिए वैश्विक वित्तीय ढांचे में भी सुधार की आवश्यकता है। यह सुधार सतत विकास से जुड़े निवेश में व्यापक बदलावों पर लक्षित होने चाहिए।

उनके मुताबिक तीसरा प्रमुख क्षेत्र सहनक्षमता से जुड़ा है, क्योंकि “हम 21वीं सदी में सामने आने वाली आपदाओं का प्रबन्धन, किसी अन्य युग के ढांचे की मदद से नहीं कर सकते।” ऐसे में उन्होंने इन आपदाओं को सहने के काबिल पाइपलाइनों, जल-आपूर्ति ढांचे, वेस्ट वाटर ट्रीटमेंट प्लांट के साथ पानी को रीसायकल करने और जल संरक्षण के तरीकों में निवेश की गुहार लगाईं है।

आज उठाए कदमों पर निर्भर है कल का भविष्य

वैश्विक समुदाय को जलवायु और जैव-विविधता के अनुकूल खाद्य प्रणालियों की भी जरूरत होगी, जो कम से कम मीथेन उत्सर्जन करे और कृषि में बढ़ते जल उपयोग को सीमित करने में मददगार हो। साथ ही इसके लिये वास्तविक समय में पानी की आवश्यकता के बारे में अनुमान लगाने वाली वैश्विक सूचना प्रणालियों की भी जरूरत है।

वहीं आखिरी क्षेत्र जलवायु परिवर्तन का सामना करने से जुड़ा है। यूएन महासचिव के मुताबिक “जलवायु कार्रवाई और सतत जल भविष्य, दरअसल एक ही सिक्के के दो पहलू हैं।” ऐसे में उन्होंने सरकारों से तापमान में होती वृद्धि को 1.5 डिग्री सैल्सियस तक सीमित रखने का आग्रह किया है। साथ ही विकासशील देशों को जलवायु न्याय दिलाने में कोई कसर न छोड़ने की बात कही है। उन्होंने धनी देशों को, उभरती अर्थव्यवस्थाओं का समर्थन करने के लिए, वित्तीय और तकनीकी संसाधन देने की बात भी याद दिलाई है।

यूएन महासभा अध्यक्ष कसाबा कोरोसी का कहना है कि वैश्विक समुदाय, इस समय एक बहुत महत्वपूर्ण पड़ाव पर है। उनके अनुसार वैश्विक समुदाय को यह स्वीकार करना होगा कि पानी “एक वैश्विक साझा विरासत है और उसी को ध्यान में रखते हुए उन्हें अपनी नीतियों, नियमों और वित्त को ढालना होगा।“

उन्होंने देशों से टालमटोल और अपने फायदे के लिए नहीं बल्कि लोगों और ग्रह के हित में काम करने का आग्रह किया। उन्होंने ऐसे एकीकृत भूमि प्रयोग, जल और जलवायु नीतियों का भी आहवान किया जो पानी को, जलवायु शमन और अनुकूलन का उत्प्रेरक बनाएं। इससे लोगों व प्रकृति दोनों के लिए सहनक्षमता का निर्माण हो।

उनका कहना है कि, “हम वैश्विक जल सूचना प्रणाली के माध्यम से, देशों व इस मुद्दे पर काम कर रहे लोगों को सशक्त करने के लिए एक साथ मिलकर काम कर सकते हैं। यह प्रणाली जल उपलब्धता, मांग और कमी को हल करने के लिए हमारा जीवन बीमा है।"

उन्होंने जोर देकर कहा कि यह सम्मेलन सौदेबाजी करने का स्थान नहीं है। उन्होंने नेताओं से ऐसे समाधानों पर चर्चा करने का आग्रह किया जो विज्ञान आधारित, टिकाऊ और व्यावहारिक हों। साथ ही जिसमें सबकी हिस्सेदारी हो।