जल

भारत समेत दुनिया की 400 बड़ी नदी घाटियों में बढ़ रहा पानी कम होने का खतरा : यूएन रिपोर्ट

Vivek Mishra

भारत समेत दुनिया के 400 बड़ी नदी घाटियों में पानी का भंडारण कम होने का जोखिम बढ़ गया है। इस जोखिम में भारत के अलावा अफ्रीका के कई हिस्से और साथ में ऑस्ट्रेलिया, उत्तरी चीन, स्पेन और संयुक्त राज्य अमेरिका के पश्चिमी हिस्से शामिल हैं। इन कृत्रिम जल संरचनाओं में पानी का भंडारण आबादी के अनुपात में पर्याप्त तरीके से नहीं हो रहा है।  

विश्व जल दिवस यानी 22 मार्च के दिन संयुक्त राष्ट्र की विश्व जल विकास रिपोर्ट में यह बात उठाई गई है। रिपोर्ट के मुताबिक प्रत्येक व्यक्ति के लिए जल-संरचनाओं में भंडारण की क्षमता वैश्विक स्तर पर कम होती जा रही है यानी आबादी की तुलना में इन कृत्रिम जलाशयों का विस्तार नहीं हो रहा है।  

रिपोर्ट कहती है कि वर्ष 2040 तक विश्व की आबादी 9 अरब तक पहुंच सकती है। वहीं, जलाशयों (रिजरवॉयर) का अनुमानित आयतन 7000 अरब घन मीटर तक ही स्थिर रह सकता है। जलाशयों में जलभंडार की यह स्थिरता वर्ष 2000 से ही दिखाई दे रही है, जबकि आबादी में बढोत्तरी जारी है। 

रिपोर्ट के अनुसार सालाना स्तर पर बने हुए जलाशयों की क्षमता में औसत जल भंडार में एक फीसदी की क्षति हो रही है जिसकी अनुमानित लागत करीब 13 अरब डॉलर प्रति वर्ष है।   

यूएन की इस रिपोर्ट में जलाशयों में गाद भर जाने की समस्या को प्रमुखता से चिन्हित किया गया है। रिपोर्ट के मुताबिक रिजरवॉयरों के विस्तार न होने की यह बड़ी वजह है, इनमें गाद भरे हैं जिसके कारण जल भंडारण नहीं हो रहा है। 

रिपोर्ट के अनुसार "कृत्रिम जलाशयों के भंडारण में हो रही कमी का प्रमुख कारण उनमें गाद का भरना है जो मूल्यहृास पैदा करता है। पूंजी निवेश में कमी और निवेश के बाद लागत में कमी के कारण गाद के विरुद्ध उपाय में भी लागत बढ़ जाती है।

कृत्रिम झीलों और जलाशयों में पानी की कमी का एक और कारण वास्तविक नदी के प्राकृतिक वाष्पीकरण की तुलना में अधिक वाष्पीकरण (इवोपेरेशन) का बढ़ना भी है। यह क्षेत्रों में बढ़ते तापमान और गर्मी का नतीजा है।

पानी में हो रही कमी के इस रुझान ने कई सवाल खड़े किए हैं। मसलन टिकाऊ जल संसाधन रणनीति के लिए क्या कृत्रिम जलाशयों की क्षमता का विस्तार एक केंद्रीय घटक होना चाहिए। पानी के दोबारा इस्तेमाल और जमीन के प्रबंधन से आपूर्ति बढ़ाई जा सकती है। इसके अलावा  विकेंद्रीकृत समाधान इस समस्या का जवाब हो सकता है।