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जल

पानी के लिए बनाए गए टांके ही मौत का बन गए कारण

पश्चिमी राजस्थान के ग्रामीण इलाकों में बने बड़े-बड़े पानी के टांकों में कूद कर महिलाओं द्वारा आत्महत्या के मामले बढ़ने के बाद जिला प्रशासन ने यूनीसेफ की मदद से अनमोल जीवन अभियान चलाया

Anil Ashwani Sharma

“जल ही जीवन है” लेकिन यही जल जब किसी की मौत का कारण बनने लगे तो यह सोचने पर मजबूर होना पड़ता है कि सरकार द्वारा जल की आपूर्ति के लिए बनाए गए बड़े-बड़े टांके ही मौत का कारण क्यों बन रहे हैं? यह स्थिति उस राज्य के इलाके में है, जहां सैकड़ों सालों से “जल ही जीवन है” वाली कहावत चरितार्थ होते आई है, लेकिन अब इस कहावत का उलट हो रहा है।

यह देखने में आया है कि राजस्थान के बाड़मेर जिले में वैवाहिक झगड़ों के बाद महिलाओं द्वारा अपने बच्चों के साथ सरकार द्वारा बनाए गए बड़े-बड़े टांकों में कथित रूप से कूद कर जान दे रही हैं। और यह स्थिति दिन-ब-दिन और गंभीर होते जा रही है। क्योंकि ऐसे मामलों में लगातार वृद्धि हो रही है। इस बात को ध्यान में रखते हुए अब गांवों में निर्माण किए जाने वाले टांकों की स्थिति में बदलााव किया जा रहा है। जिले में आत्महत्या जैसे जघन्य कृत्य को रोकने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में पानी सहेजने के लिए अब तक चली आ रही परंपराओं में परिवर्तन किया जा रहा है।

द हिंदू में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार पश्चिमी राजस्थान में पारंपरिक रूप से बनाए जाने वाले विशाल जल भंडारण क्षमता वाले टांके गांव में बने घरों के पास बनाए जाते हैं और घर के अधिकांश: लोग घर से अच्छी खासी दूर बनी ढाणियों (खेतों पर बने अस्थायी घर) में रहते हैं। टांकों में बारिश के पानी को एकत्र किया जाता है ताकि यह पानी सालभर उनकी घरेलू जरूरतों को पूरा कर सके। ध्यान रहे कि गांव के घरों से आमतौर पर ढाणियों (बस्तियों) की दूरी बहुत अधिक होती है। चूंकि इन टांकों की गहराई अच्छी खासी होती है, ऐसे में यदि इसमें महिलाएं या बच्चे कूदते हैं तो उनका जीवित रहना लगभग असंभव ही होता है। जिले में शुरू में जब इन गहरे टांकों में महिलाओं के कूदने की घटनाएं होने लगीं तो इसकी रोकथाम के लिए जिला प्रशासन ने ऐसे टांकों के आसपास जंजीर और रस्सी आदि रखने की व्यवस्था की लेकिन प्रशासन ने माना कि इससे बात बनी नहीं। इसके बाद प्रशासन ने स्थानीय जन सहयोग से इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए एक अभियान शुरू किया। इस अभियान का नाम है, “अनमोल जीवन अभियान”।

बाड़मेर जिले में हाल ही में शुरू किए गए इस अनमोल जीवन अभियान में प्रशासन ने ग्राम पंचायतों और घरों के बड़े बुजर्गों को शामिल किया है और उन्हें इस बात के लिए प्रेरित किया कि यदि वे टांकों और तालाबों पर बंद ढक्कनों की व्यवस्था करें तो महिलाओं के इसमें कूदने की घटना पर रोक लगाई जा सकती है। ध्यान रहे कि यह अभियान जिला प्रशासन ने संयुक्त राष्ट्र बाल कोष (यूनिसेफ) और एक्शन एड द्वारा संयुक्त रूप से जिले के चोहटन ब्लॉक में किए गए एक शोध के बाद शुरू किया। शोध में अब तक हुए मामलों का विस्तृत विश्लेषण किया गया था। शोध से पता चला कि पिछले साल दर्ज किए गए कुल 171 आत्महत्या के मामलों में से 64 महिलाएं शामिल थीं। इनमें अधिकांशत: वे थीं जो पानी के बड़े-बड़े टांकों में कूद कर अपनी इहलीला समाप्त कर दी।

बाड़मेर जिला प्रशासन के अनुसार बच्चों के साथ महिलाओं की आत्महत्या की घटनाएं वास्तव में बच्चों की हत्या से कम नहीं है। प्रशासन ने अब बड़ें टांकों में हैंडपंप लगवाना भी अनिवार्य कर दिया है। इससे टांके चारो ओर से बंद रहेंगे। प्रशासन की सोच है कि जब बड़े टांकों में ढक्कन लग जाएंगे तो निश्चित रूप से इन टांकों में कूदने की प्रवृत्ति अपने आप ही कम होते जाएगी। टांकों को बंद करने से उसमें लोगों की पहुंच कम हो जाएगी और आत्महत्या की प्रवृत्ति रखने वाले ऐसे हालात में दोबारा सोचने पर मजबूर होंगे। इसके अलावा प्रशासन का कहना है कि टांकों में हैंडपंप लगवाने से टांके से पानी निकालना महिलाओं के साथ बच्चों के लिए भी आसान होता है। इसके अलावा खुले टांकों में मवेशी के गिरने का भी खतरा बना रहता है। इससे भी बचाव संभव होगा।   

जिले के बछरौ ग्राम पंचायत के सदस्यों के अनुसार चूंकि महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) के तहत घरों के पास बड़े टांकों का निर्माण किया गया था, इसलिए पंचायत ने ऐसे बड़े टांकों पर हैंडपंप लगाने का अतिरिक्त प्रावधान की व्यवस्था कर दी। पंचायत के अनुसर बछराऊ पंचायत क्षेत्र में 130 टांकों में हैंडपंप के साथ-साथ बड़े चबूतरे भी बनाए गए हैं, जिनका उपयोग घरेलू जरूरतों के लिए किया जा सकता है।

इसी तरह जिले के बायतू विकास खंड के कोसरिया ग्राम पंचायत के सरपंच रुगा राम चौधरी ने तो अपनी जेब से पैसा खर्च कर 110 टांकों पर हैंडपंप लगवाए। प्रत्येक हैंडपंप की कीमत 1,700 से 2,000 रुपये के बीच थी। कोसरिया पंचायत के भियानी-मेघवालों की ढाणी के निवासियों ने यह माना कि टांकों पर हैंडपंप लगाने से रोजमर्रा के कामों में न केवल असानी हुई है बल्कि उन लोगों ने अपने परिवारों की सुरक्षा के लिए इसे उपयोगी भी माना।

अभियान को और बड़े क्षेत्र में फैलाने के लिए बाड़मेर और जैसलमेर के स्थानीय लोक गायकों की एक टीम को तैयार कर संभावित खतरों वाले ब्लॉकों, जैसे चोहटन, धोरीमन्ना, सेरवा, धनाऊ आदि स्थानों पर जागरूकता क लि भेजा गया। टीम ने “प्रशासन गांव के संग” स्लोगन के साथ कई कार्यक्रमों का आयोजन भी किया।

इस दौरान टीम ने लोक गायकी से ग्रामीणों की एक बड़ी आबादी को जागरूक किया है। यह सही है कि इस अभियान ने पिछले तीन से चार माह के दौरान अपना प्रभाव डाला है और इसी का नतीजा है कि क्षेत्र में आत्महत्याओं की घटनाओं में धीरे-धीरे कमी आ रही है। इस प्रकार की घटनाओं को रोकने के लिए जिला प्रशासन ने जिला कलेक्ट्रेट परिसर में चौबीसों घंटे की एक हेल्पलाइन की भी व्यवस्था की है।

इसमें तीन काउंसलर कॉल करने वालों से लगातार बातचीत करते हैं और उन्हें हर संभव मदद करते हैं। इस अभियान में लगभग 250 से अधिक कार्यकर्ताओं ने जागरुकता का काम तो किया ही साथ ही उन्होंने मानसिक स्वास्थ्य जैसे गंभीर मामलों का पता लगा कर लोगों को इसकाइलाज कराने के लिए राजी भी किया।

ध्यान रहे कि ग्रामीण इलाकों में मानसकिक स्वास्थ्य के प्रति लोग पूरी तरह से लापरवाह होते हैं। अधिकांशत: इसे बीमारी नहीं मानते हैं। अभियान के तहत प्रशासन ने नौवीं से बारहवीं कक्षा के किशोर छात्रों तक पहुंचने के लिए स्कूलों में “हर दिन है मन का दिन” जैसे जागरूकता कार्यक्रम भी शुरू किए हैं। अभियान ने धीरे-धीरे महिलाओं के बीच अलगाव जैसे गंभीर मुद्दों को कम करने के लिए, उन उपायों की पहचान भी की है, जिनकी मदद से महिलाओं को अधिक से अधिक जागरूक किया जा सकेगा।