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उत्तराखंड: इस बार पहाड़ों में चश्मे भी नहीं फूटे , 500 जलस्रोत सूखने की कगार पर

कम बरसात के कारण उत्तराखंड में अब तक चश्मे नहीं फूटे हैं, वहीं पूरे राज्य में जल स्त्रोत तेजी से सूख रहे हैं

Trilochan Bhatt

उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में स्थाई जलस्रोतों के साथ ही बरसात के मौसम में फूटने वाले चश्मों की संख्या भी लगातार कम होती जा रही है। हालांकि बरसाती चश्मों की कम होती संख्या अथवा इनसे पानी मिलने की अवधि को लेकर फिलहाल कोई अध्ययन सामने नहीं आया है, लेकिन औद्यानिकी और कृषि के जानकारों का कहना है कि राज्य में स्थाई स्रोतों के सूख जाने अथवा उनमें पानी कम हो जाने के साथ ही बरसात के दिनों में लाखों की संख्या में फूटने वाले चश्मों की संख्या और उनकी अवधि में भारी गिरावट आई है। 

वैज्ञानिक इसका कारण अनियमित बारिश, बंजर पड़ती खेती की भूमि और लगातार हो रहे निर्माण कार्यों को मानते हैं। बरसाती चश्मों की संख्या किस तरह कम होती जा रही, इसे दो उदाहरणों से समझा जा सकता है। रुद्रप्रयाग जिले के रायड़ी गांव की निवासी और पर्यावरण आंदोलनों में सक्रिय रही सुशीला भंडारी बताती हैं कि उनके गांव के आसपास दो तरह के सोते हैं। तीन सोते बारहमासी हैं, जिनमें पूरे वर्ष पानी आता है, हालांकि सर्दियों और गर्मियों में इनका पानी कम हो जाता है। इसके अलावा चार ऐसे सोते हैं जो बरसात के दिनों में फूटते हैं।

इनके फूटने की अवधि भी बारिश की मात्रा के अनुसार अलग-अलग होती है। कुछ चश्में कम बारिश में ही फूट जाते हैं, जबकि कुछ ठीक-ठाक बारिश होने पर और कुछ बहुत ज्यादा बारिश होने के बाद फूटते हैं। वे कहती हैं कि हम लोग आमतौर पर इन सोतों के फूटने पर ही यह अनुमान लगाते रहे हैं कि अब तक बारिश कम हुई है, ठीक-ठाक हुई है या फिर ज्यादा हुई है। लेकिन, इस बार सावन का महीना आधा से ज्यादा गुजर जाने के बाद भी चार में से केवल एक सोता ही एक बार फूटा था, लेकिन वह भी फिर से सूख गया है।

इसी जिले के डालसिंगी गांव के निवर्तमान ग्राम प्रधान मोहन सिंह के अनुसार पहले जुलाई का महीना शुरू होने के साथ ही गांव के आसपास इतने चश्मे फूट जाते थे कि उनके गांव से लगते बरसाती गदेरे में पनचक्कियां चलने लगती थी, जो तीन या चार महीने लगातार चलती थी। हालांकि अब पनचक्कियों का अस्तित्व खत्म हो गया है। इस बार जुलाई का महीना बीतने के बाद भी इस बरसाती गदेरे में पानी की मात्रा पनचक्की चलाने लायक नहीं है। वे कहते हैं कि बरसात के महीनों में यह स्थिति इस बात का साफ संकेत है कि आने वाली सर्दियों और गर्मियों में पानी की बूंद-बूंद के लिए तरसना पड़ेगा।

उत्तराखंड में जलस्रोत लगातार सूख रहे हैं, यह बात नीति आयोग की रिपोर्ट से भी साफ होती है और उत्तराखंड जल संस्थान के अध्ययन से भी। उत्तराखंड जल संस्थान की रिपोर्ट कहती है कि राज्य के 500 जलस्रोत सूखने की कगार पर हैं। राज्य की 512 पेयजल परियोजना में पानी की आपूर्ति में 50 से 90 प्रतिशत तक की कमी आ गई है।

उत्तराखंड उद्यान विभाग के पूर्व वैज्ञानिक डाॅ. विजय प्रसाद डिमरी कहते हैं कि बरसाती सोतों के कम होने या उनसे मिलने वाले पानी की अवधि कम हो जाने का अलग से कोई अध्ययन अभी तक सामने नहीं आया है, लेकिन सामान्य अनुभव से यह आसानी से पता लगाया जा सका कि इस तरह के बरसाती सोतों की संख्या अब पहले की तुलना भी आधी ही रह गई है और जो सोते पहले तीन से चार महीने तक पानी देते थे, अब मुश्किल से एक महीने ही इनमें पानी आ रहा है।  

इस बार बरसाती चश्मों के न फूटने की वजह सामान्य से बहुत कम बारिश भी मानी जा रही है। देहरादून स्थित मौसम विज्ञान केन्द्र की ओर से जारी 31 जुलाई, 2019 तक के बारिश के आंकड़े बताते हैं कि राज्य में अब तक सामान्य से 40 प्रतिशत कम बारिश हुई है और मैदानी जिलों की तुलना में पर्वतीय जिलों में स्थिति ज्यादा खराब है। पौड़ी जिले में स्थिति सबसे ज्यादा खराब है। यहां 31 जुलाई तक 580.9 मिमी बारिश हो जानी थी, लेकिन मात्र 225.6 मिमी बारिश ही दर्ज हुई है। यानी अब तक 61 प्रतिशत कम बारिश हुई है।

चम्पावत, टिहरी अल्मोड़ा जिलों में भी लगभग सूखे जैसी स्थिति बन रही है। चम्पावत जिले में 31 जुलाई, तक सामान्य रूप से 686.9 मिमी बारिश होती है, लेकिन इस वर्ष 365.9 मिमी यानी सामान्य से 47 प्रतिशत कम बारिश हुई है। उत्तरकाशी जिले में भी यही स्थिति है। यहां इस दौरान 622.3 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन मात्र 327.9 मिमी बारिश दर्ज की गई, यह भी सामान्य से 47 प्रतिशत कम है। टिहरी जिले में अब तक 480.9 मिमी बारिश होनी चाहिए थी, लेकिन 259.5 मिमी, यानी सामान्य से 46 प्रतिशत कम बारिश हुई है। ऊधमसिंह नगर और नैनीताल जिलों में सबसे ज्यादा बारिश हुई। इन दोनों जिलों में सामान्य से 12 प्रतिशत कम बारिश दर्ज हुई है।