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वैज्ञानिकों ने बनाई पानी में  फ्लोराइड का पता लगाने की आसान किट

Dayanidhi

अमेरिका की नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी सिंथेटिक के जीव वैज्ञानिकों ने एक सरल, सस्ती परीक्षण किट विकसित की है। यह पीने के पानी में फ्लोराइड के खतरनाक स्तर का पता लगा सकता है।

इस नए किट से पानी में फ्लोराइड का पता लगाने के लिए के बराबर लागत लगती है। इस सिस्टम को केवल पानी की एक बूंद डालकर हिलाने की आवश्यकता होती है। यदि पानी पीला हो जाता है, तो समझ लीजिए कि इसमें फ्लोराइड की मात्रा अधिक है।

यह पद्धति वर्तमान परीक्षणों से बिल्कुल अलग है, जिसमें सैकड़ों रुपये खर्च हो जाते हैं और अक्सर उपयोग करने के लिए वैज्ञानिक विशेषज्ञता की आवश्यकता होती है। 

शोधकर्ताओं ने इस सिस्टम का नॉर्थवेस्टर्न प्रयोगशाला में और कोस्टा रिका में परीक्षण किया, जहां इराजू ज्वालामुखी के पास स्वाभाविक रूप से फ्लोराइड अधिक मात्रा में है। फ्लोराइड के उच्च मात्रा वाले पानी के लंबे समय तक सेवन करने से, फ्लोरोसिस रोग हो सकता है। फ्लोरोसिस एक दर्दनाक स्थिति जो हड्डियों और जोड़ों को सख्त कर देती है।

दुनिया में विशेष रूप से अफ्रीका, एशिया और मध्य अमेरिका के कुछ हिस्सों में, फ्लोराइड स्वाभाविक रूप में बहुत अधिक होता है, जिसका उपभोग खतरनाक होता है। यह शोध एसीएस सिंथेटिक बायोलॉजी नामक पत्रिका में प्रकाशित किया गया है।

किट का परीक्षण

फ्लोराइड एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला तत्व है, जो भूगर्भ जल में घुल कर बाहर निकल जाता है। यह ज्वालामुखीय राख में भी पाया जाता है, ज्वालामुखी के आसपास के क्षेत्रों में फ्लोराइड प्रचुर मात्रा में पाया जाता है।

तीन ज्वालामुखीय का घर कहे जाने वाले कोस्टा रिका क्षेत्र इस डिवाइस का परीक्षण करने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान था। लयुक की प्रयोगशाला के मैथ्यू वेरोस्लोफ ने कोस्टा रिका के पोखरों, तालाबों और खाई से अलग-अलग पानी के नमूने लिए।

अलग-अलग जगहों से लिए गए पानी के इन नमूनों का परीक्षण किया गया। यह जानना बहुत महत्वपूर्ण था कि यह किट पानी में फ्लोराइड होने का पता लगाने में सक्षम थी। लयुक ने कहा हम चाहते हैं कि यह उन लोगों के लिए एक आसान, व्यावहारिक समाधान हो, जिनको इसकी सबसे बड़ी जरूरत है। हमारा लक्ष्य लोगों द्वारा अपने स्वयं के पानी में फ्लोराइड की उपस्थिति की निगरानी करना है।

यह किट कैसे काम करती है

इस डिवाइस का उपयोग करना सरल है, इस किट (तैयार टेस्ट ट्यूब) में एक परिष्कृत सिंथेटिक जीववैज्ञानिक प्रतिक्रिया होती है। लयुक ने कहा उन्होंने इस आरएनए तंत्र को समझने के लिए वर्षों बिताए हैं।

उन्होंने समझाया कि आरएनए को एक पॉकेट में रखा जाता है, जो एक फ्लोराइड आयन की प्रतीक्षा करता है। आयन उस पॉकेट में पूरी तरह से फिट हो सकता है। यदि पानी में आयन होता है, तो आरएनए में प्रतिक्रिया होती है, जो पानी को पीला कर देता है। यदि पानी में आयन नहीं होता है, तो आरएनए आकार बदलता है और प्रक्रिया को रोक देता है। यह एक स्विच की तरह काम करता है।

लयुक के अनुसार, कुछ जीव, बैक्टीरिया पहले से ही प्रकृति में इस कार्य को करते हैं। फ्लोराइड बैक्टीरिया के लिए विष की तरह है। ये बैक्टीरिया सेल में फ्लोराइड को महसूस करने के लिए आरएनए का उपयोग करते हैं, फिर वे इसे बाहर निकालने और विष को अलग करने के लिए एक प्रोटीन बनाते हैं।

लयुक का सिस्टम बैक्टीरिया की तरह ही काम करता है। लेकिन यह प्रोटीन पंप का उत्पादन करने के बजाय, परीक्षण एक प्रोटीन एंजाइम का उत्पादन करता है जो पीले रंग का बन जाता है। इसलिए लोग इसके परिणाम आसानी से देख सकते हैं। इस प्रक्रिया में परिणाम प्राप्त करने में दो घंटे लगते हैं। शोधकर्ताओं ने कहा कि इसे भविष्य में तेजी से काम करने वाला बनाया जाएगा।