फ्रांस के अटलांटिक तट के इलदोरेन द्वीप पर रहने वाला मौरिस नामक मुर्गा मर चुका है। मौत के नौ महीने बाद उसकी बांग को कानूनी मान्यता मिली है। इसे सेंसरी हेरिटेज माना गया है। कानूनी मान्यता के बाद मौरिस की बांग को लेकर ग्रामीण और शहरी लोगों के बीच दो साल तक चली राष्ट्रव्यापी बहस का अंत हो गया।
साल 2019 में द्वीप में आए दो पर्यटकों ने सुबह-सुबह मुर्गे की प्राकृतिक बांग को लेकर स्थानीय अधिकारियों से शिकायत की थी। शिकायत में ध्वनि प्रदूषण का हवाला दिया गया। उसी साल सितंबर ने अदालत ने फैसला सुनाया कि मौरिस की बांग जारी रहनी चाहिए। अदालत ने इसे ग्रामीण जीवनशैली का हिस्सा बताया।
मुर्गे की बांग की तरह ही पर्यटक ग्रामीण क्षेत्र के शोर-शराबे और दुर्गंध, जैसे झींगुरों की आवाज, प्राकृतिक स्रोतों की बदबू, तालाब में मेंढ़कों की आवाज आदि से भी परेशान हो रहे थे। छुट्टियों में ग्रामीण क्षेत्रों में आने वाले शहरी लोगों के इस विचित्र व्यवहार को अक्सर “नियो रूरल” कहा जाने लगा और यह फ्रांस में बहस का राष्ट्रीय मुद्दा बन गया।
इस मुद्दे ने ग्रामीण और शहरी जीवन में ध्रुवीकरण का काम भी किया। इस मुद्दे से एक अहम सवाल यह उठा कि क्या पर्यावरण पर किसी अलग भौगोलिक क्षेत्र की जीवनशैली थोपी जा सकती है?
अंतत: 4 फरवरी को फ्रांस के सीनेटरों ने “द लॉ प्रोटेक्टिंग द सेंसरी हेरिटेज ऑफ द फ्रेंच कंट्रीसाइड” नामक कानून पास किया। यह कानून आवाजों, दुर्गंधों और बहुत सी ग्रामीण जीवनशैलियों को उसका “आंतरिक तत्व” का दर्जा देकर कानूनी संरक्षण प्रदान करता है। इसका अर्थ यह हुआ कि शहरी पर्यटक कम से कम फ्रांस के ग्रामीण क्षेत्र में बांग देने वाले मुर्गे को परेशान करने वाला नहीं मान सकते।
फ्रेंच मीडिया ने कानून का जश्न मना रहे ग्रामीण मामलों के मंत्री के हवाले से कहा, “यह कानून फ्रांस के ग्रामीण क्षेत्रों की सेंसरी हेरिटेज को परिभाषित और उसकी रक्षा करता है।”
इस कानूनी घटनाक्रम के गहरे मायने हैं। एक पारिस्थितिक तंत्र में किसी जीव के सम्मान या श्रेष्ठता के लिए पसंद या नापसंद की कोई जगह नहीं होती। सभी का सदैव सामूहिक अस्तित्व होता है जो हमलावर, अव्यवस्थित या शोरभरा हो सकता है। इसलिए सेंसरी अनुभव से हम पर्यावरण से तुरंत संबंध स्थापित करते हैं, जो समय के साथ सामाजिक और पारिस्थितिकीय इतिहास बनते हैं और अंत में पहचान बन जाते हैं।
फ्रेंच द्वीप में आने वाले शहरी पर्यटक इस विचित्र पहचान के संपर्क में आए। इस भौगोलिक इलाके में विविधतापूर्ण वनस्पतियों की खुशबू और समुद्र का शोर भी शामिल था। हमने से अधिकांश लोग जब अलग भौगोलिक क्षेत्र में जाते हैं तो उसके नए अनुभव हमें खुश कर देते हैं। यह सब “अनुभव पर्यटन” की सनक के कारण है।
ग्रामीण परिवेश अथवा जीवित अनुभव को हेरिटेज का दर्जा मिलने पर प्रकृति के इस सिद्धांत को बल मिला है कि कोई अपनी पारिस्थितिकी के अनुसार विकसित होता है और परिवेश से उसकी पारिस्परिक क्रिया ही हमारी जीती जागती विरासत है।
सेंसरी हेरिटेज की विस्तृत व्याख्या करते हुए कोई देसी और आधुनिक जीवनशैली पर बहस कर सकता है, खासकर प्रकृति से संबंध के मामले में। हमारे काम के कुछ तरीकों, जैसे भोजन बनाने को विरासत का दर्जा हासिल है। यहां तक कि बहुत से भौगोलिक आश्चर्य को भी यह हासिल है। लेकिन उन गतिविधियों के बारे में क्या, जो इस विरासत की रचना करते हैं, उदाहरण को लिए विरासत वाली जगह पर परंपरागत जल संचयन का तंत्र।
इनमें सेंसरी हेरिटेज का दर्जा हासिल करने की क्षमता है, क्योंकि ये स्थानीय समुदायों की जीवनशैली रहे हैं। यह समुदायों की प्रकृति से संबंधों को भी परिभाषित करती है। जल संचयन के ये तंत्र सिंचाई की जरूरतें पूरी करते आए हैं।
भारत में ऐसे हजारों उदाहरण हैं। अब सवाल है कि क्या सरकार कभी ऐसा कानून बनाएगी, जो स्थानीय समुदाय को अपना तरीका चुनने की आजादी दे। या उन पर बड़ी आधुनिक सिंचाई परियोजनाएं थोपी जाती रहेंगी?