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जलशक्ति अभियान की हकीकत: संदिग्ध सफलता का जश्न मनाता “गया”

Vivek Mishra

गर्मी में हमारे पास पानी हासिल करने का कोई सामान्य जरिया नहीं रहता। चापाकल खराब हो जाते हैं और पुराने कुएं अब काम के नहीं रहे। तालाब है नहीं। बरसाती नदियां सूखी हुई हैं। भीषण गर्मी में पानी का स्तर तेजी से भाग जाता है। अभी हम सब पानी के लिए बोरिंग पर ही निर्भर हैं। करीब 200 फुट तक की गहराई में हमें पानी मिलता है। बोरिंग का भी खर्चा बढ़ता जा रहा है। नीचे पथरीली जमीन होने के कारण मशीनों से बोरिंग करवानी पड़ती है। 45 से 50 रुपये प्रति फुट बोरिंग का खर्चा है। यह साल-दर-साल बढ़ रहा है। खेती क्या करें जब पीने के लिए पानी का ही संकट पैदा हो जाता है।

बिहार के गया जिला मुख्यालय से 80 किलोमीटर दूर अत्यंत पिछड़े औऱ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में शामिल डुमरिया प्रखंड के बलिया गांव में करीब 75 वर्षीय बुजुर्ग बीगन साव ने डाउऩ टू अर्थ से यह बात कही। उसी गांव के निवासी 45 वर्षीय देवनंदन प्रसाद कहते हैं कि चापाकल और बोरिंग के कारण जमीन के नीचे पानी की उपलब्धता का संकट गहरा हो रहा है। वह शिकायत करते हैं कि बिहार सरकार के जरिए घर-घर सप्लाई वाले नल लगवाने की मुहीम में करीब 50 फुट तक ही बोरिंग हुई है और पाइप बिछाने का काम भी बेहद गलत तरीके से हो रहा है। जलापूर्ति का मकसद इससे हल नहीं होगा बल्कि इसके चलते भू-जल पर दबाव बढ़ सकता है।  

समूचा गया जिला पानी के मामले में आत्मनिर्भर नहीं बन पाया है। भू-जल अब भी एकमात्र सहारा है। शहर हो या गांव गर्मी के दिनों में सभी बोरिंग मशीनों की ओर ही ताकते हैं। लिहाजा शहर से गांव की ओर सड़कों पर बोरवेल वालों की तमाम दुकाने दिखाई देंगी। बोरिंग के लिए कोई रोकथाम नहीं है। लिहाजा भू-जल का स्तर सामान्य कैसे बना रहे यह अब भी बड़ी चुनौती है। गया शहर में मशीन से बोरिंग करने वाले एक दुकानदार ने बताया कि वे 100 फुट से नीचे बोरिंग नहीं करते हैं। उनकी न्यूनतम कीमत शहर में 100 रुपये फुट है। औसतन 120 फुट बोरिंग के लिए आम लोगों को करीब लाख रुपए तक खर्च करना पड़ता है। गया के मुस्तफाबाद कॉलोनी में रहने वाले दुर्गेश कुमार कहते हैं कि जिनके पास पैसा है वे बोरिंग पर जिंदा है और जिनके पास नहीं है वे गर्मी के दिनों में बाहर से पानी खरीदने पर विवश होते हैं।     

जिले में डुमरिया प्रखंड में भंगिया गांव में रहने वाले गोविंद साव खुशनसीब हैं कि उनके खेत की जमीन पर एक कुआं बनाने के लिए मनरेगा से उनके पिता पंकज साव को 1.5 लाख रुपये की सहायता राशि मिली है। उनके खेत से ही करीब 700 मीटर दूर एक दूसरे खेत में बोरिंग से पानी निकालकर खेती की जा रही है।

गोविंद साव डाउन टू अर्थ से कहते हैं कि यह कुंआ बनने के बाद ही वे खेतों में कई फसले और सब्जियां पैंदा कर सकने में सक्षम हुए। सिंचाई के लिए कुएं का इस्तेमाल होता है। साव कहते हैं कि उनकी जिंदगी में इस कुएं की बदौलत बड़ा बदलाव हो गया। वरना पहले वे 500 मीटर दूर की बोरिंग से ही पाइप अपने खेतों में लेकर आते थे। भू-जलस्तर ठीक न होने के कारण उन्हें सिंचाई में मुसीबतों का सामना करना पड़ता था। 

यह तस्वीर इतनी भी हरी-भरी नहीं है। जिला प्रशासन ने यह कुआं शासन की डायरी में भले ही जल शक्ति अभियान की उपलब्धियों के खाते में दर्ज कराया है। लेकिन डाउन टू अर्थ ने ग्राउंड पर पाया कि यह इस अभियान के पहले का निर्मित कुंआ था जिसे 2019 में जल शक्ति अभियान का ही हिस्सा बना दिया गया। दावा है इसका निर्माण जल शक्ति अभियान के पहले चरण में अवधि 1 जुलाई से 15 सितंबर, 2019 के बीच किया गया। लेकिन कुएं पर मोटे अक्षरों में तारीख 2018 लिखा हुआ था पेंट कर दिया गया और ऊपर जल शक्ति अभियान लिखकर भ्रम पैदा करने की कोशिश की गई है। इस कुएं का एरियल व्यू बनाकर जिला प्रशासन ने इसे जल शक्ति अभियान के कामों में गिनाया था।

भंगिया गांव में ही पंकज साव के घर के बाहर मौजूद चापाकल टूटा हुआ मिला जिससे जुड़े हुए दो सोख्ते दिखाए गए थे। अभियान के तहत पानी के दोबारा इस्तेमाल और भू-जल रीचार्ज करने के लिए करीब 6 फीट गड्ढ़े बनाकर सोख्ते भी प्रखंडों में लगाए जाने थे। इसलिए यह सोखता सिर्फ दिखावटी ही था। ब्लॉक के अधिकारियों ने जानकारी दिया कि पूरे प्रखंड में 402 सोख्ता का निर्माण किया गया। यह आंकड़े जल शक्ति अभियान के तहत किए गए कुल दावे पर प्रश्नचिन्ह भी लगाते हैं।

इमामगंज प्रखंड के कार्यक्रम पदाधिकारियों ने बताया कि अभियान के दौरान रानीगंज में 5 बोरवेल रीचार्ज और 12 सोखता लगाए गए थे लेकिन इससे उलट जमुना गांव निवासी सुरेंदर कुमार और अन्य ने डाउन टू अर्थ को बताया कि वाटर रीचार्ज बोरवेल और कोई सोखता उनकी जानकारी में नहीं है। सुरेंदर ने कहा कि रानीगंज में पानी का स्तर ठीक है इसलिए इसकी जरूरत भी नहीं थी।

2017 में यूनाइनेट नेशऩ के फूड एंड एग्रीचल्चर ऑर्गेनाइजेशन ने अपने अध्ययन में कहा था कि भारत में हर साल वर्षा जल के भंडारण के लिए प्रति व्यक्ति क्षमता काफी कम है। देश में प्रति वर्ष सिर्फ 8 फीसदी वर्षाजल का संचय होता है। भारत प्रमुख अनाज उत्पादक देश है जो चीन, अमेरिका और इजराइल के मुकाबले 3 से 5 गुना ज्यादा पानी का इस्तेमाल फसलों की सिंचाई में करता है। यह पानी का सही इस्तेमाल नहीं है।

जल संचयन और सरंचनाओं व योजना के आधार पर रैकिंग देने वाले जल शक्ति मंत्रालय का दावा है कि भू-जल पर अत्यधिक निर्भरता, वर्षा में हो रही कमी, आबादी में बढ़ोत्तरी के चलते पानी की अप्रत्याशित मांग को देखते हुए जल शक्ति अभियान वर्षा जल संचयन और पारंपरिक जल स्रोतों को बचाने का एक जनआंदोलन था। 2019 में प्रशानमंत्री नरेंद्र मोदी के जल संचय की प्रेरणा से मिशन मोड में इसे शुरू किया गया।

इस अभियान में देश के 36 राज्य और संघ शासित प्रदेशों में जल संकट से जूझते 256 जिलों के कुल 1592 ब्लॉक का चयन किया गया था। इनमें 312 क्रिटिकल ब्लॉक और 1186 ओवर एक्पलॉयटेड ब्लॉक शामिल थे।

गया जिला भी इनमें से एक था। जिले के भीतर क्रिटिकल भू-जल स्तर वाले प्रखंडों में शामिल डुमरिया, इमामगंज और मानपुर को अभियान के लिए चुना गया था। हालांकि जिले में इनसे भी ज्यादा जल संकट झेलने वाले संवेदी क्षेत्र मौजूद हैं। 

भू-जल की उपलब्धता को लेकर जब पीएचईडी से आंकड़े मांगे गए तो उन्होंने 2017, 2018 के और 2019 के ही कुछ महीनों के आंकड़े उपलब्ध कराए। पीएचईडी का दावा है कि वह  हर पंचायत में 15 दिनों पर चापाकल के भू-जल स्तर को जांचता है। इनके मुताबिक मानपुर, डुमरिया, और इमामगंज के अलावा नगर में जून-जुलाई के दौरान नगर में अधिकतम जलस्तर करीब 50 से 60 फुट नीचे जाता है। जबकि अधिकांश लोगों ने कहा कि अधिकतम 200 फुट तक भी पानी नीचे जाता है। बोरिंग के जरिए उन्हें इतनी गहराई में पानी उपलब्ध होता है।    

दक्षिणी बिहार में 4976 वर्ग किलोमीटर भौगोलिक क्षेत्र में फैले गया जिले की कुल आबादी 4,391,418 है। इनमें 2,886 गांवों में 3803888 आबादी रहती है। गया के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग (पीएचईडी) में इंजीनियर रहे 79 वर्षीय त्रिभुवन प्रसाद बताते हैं कि गया जिले के कई हिस्से ड्राई जोन कहलाते हैं। शहरी क्षेत्र में करीब 80 फुट तक पत्थर है उसके बाद ही बेहतर पानी की उपलब्धता है और चूंकि पानी लहरों की तरह जमीन में मौजूद है तो कहीं ऊंचाई पर तो कहीं गहराई में पानी मिलता है। कम से कम पानी के लिए 120 फुट की बोरिंग तक तो जाना ही पड़ता है। इस जिले को पानी बचाना सीखना ही होगा। हमने यहां से पानी की कमी के चलते पलायन भी देखा है।

चट्टानों से घिरे डुमरिया और इमामगंज प्रखंड में अभी फसलें अच्छी दिखाई दी। स्थानीय लोगों का कहना था कि इस पर देर तक हुई बारिश औऱ हर 15 से 20 दिन पर बारिश होने के कारण यहां भू-जल की उपलब्धता अभी बनी हुई है। वर्षा जल संचयन और रीचार्ज के लिए जल शक्ति अभियान के तहत क्या काम किया गया? यह जानने के लिए स्थानीय अधिकारियों से जब पूछा गया तो उन्होंने बताया कि डुमरिया प्रखंड के करीब 8 पंचायतों के करीब 14 गांवों में 45 ग्राउंड वाटर रीचार्ज बोरवेल का निर्माण किया गया। इन्हीं में से एक कुंडिया गांव में रीचार्ज बोरवेल के काम को देखा गया। इस बोरवेल को सही से कवर नहीं किया गया था। ब्लॉक अधिकारियों के मुताबिक इसकी बोरिंग करीब 100 फीट की गई है।

रूफ वाटर हार्वेस्टिंग का काम भी संतोषजनक नहीं रहा। पंचायत में हर एक गांव में सरकारी प्राथमिक स्कूल मौजूद हैं। कुछ गांवों में सामुदायिक भवन और ब्लॉक के सरकारी भवन भी मौजूद हैं। लेकिन रूफ वाटर हार्वेस्टिंग नहीं है। सरकारी दावे के मुताबिक डुमरिया प्रखंड में कुल 24 और इमामगंज प्रखंड में 17 रूफ वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम लगाए गए।

डुमरिया प्रखंड में बोधी विगहा गांव के राजकीय प्राथमिक विद्यालय के बगल मौजूद सामुदायिक भवन में रूफ वाटर हार्वेस्टिंग को देखा गया।  इसमे मानकों का पालन नहीं किया गया है। छत की पाइप का मुंह बाहर निकला हुआ था और छन्नी व भंडारण के लिए नीचे बनाए गए दो पिट तक पाइप का पानी नहीं पहुंच सकता था क्योंकि पाइप का जुड़ाव ही बीच में टूटा हुआ था। ब्लॉक के पदाधिकारियों ने कहा कि 27 फरवरी, 2020 को आंधी और बारिश के कारण ऐसा हुआ। छत से पिट तक पानी लाने वाली पाइप बेहद खराब स्तर की थी। वहीं वर्षा भंडारण जल के इस पिट के नजदीक ही शौचालय का गड्ढ़ा बना दिया गया है। ऐसे में वर्षा जल का भंडारण यदि होगा भी तो वह दूषित हो सकता है।

डुमरिया प्रखंड कार्यक्रम पदाधिकारी ने बताया कि इसकी देखरेख के लिए कोई एजेंसी नहीं है और न ही उनके पास फंड है। ऐसे में किए गए कामों की भी देख-रेख नहीं हो पा रही है। जल शक्ति अभियान के तहत तीन महीनों में पौधारोपण, वाटरशेड और चेक डैम का कितना काम किया गया?  जलशक्ति अभियान के तहत कुंडिया और भंगिया गांव में करीब 9,400 सार्वजनिक पौधारोपण का दावा किया गया लेकिन यह संख्या संदेहास्पद है।

गया जिले में 15 फीसदी क्षेत्र पर वन है। हालांकि दस्तावेजों के मुताबिक जिला तेजी से प्राकृतिक वनों को खो रहा है। सरकार टिंबर आधारित वानिकी पर ज्यादा जोर दे रही है। राज्य सरकार की जल जीवन हरियाली योजना के तहत मंझौली पंचायत के आदरचक गांव में एक ही परिवार के छह भाईयों को सागौन के पौधों दिए गए। इसे भी जलशक्ति अभियान का ही हिस्सा बताया गया। इस काम के लिए मनरेगा का फंड इस्तेमाल किया गया। आस-पास के गांवों में मनरेगा के जरिए और कोई पौधारोपण नहीं दिखायी दिया। इसमें 800 पौधे लगाने का दावा किया गया। बोर्ड पर तारीख भी नहीं लिखी गई। यह पौधे सिर्फ सागौन के ही दिखे, जो व्यावसायिक उद्देश्य के हैं। भू-जल या मिट्टी की नमी को ध्यान में रखकर यह काम नहीं किया गया। 

जलशक्ति अभियान के तहत कार्यक्रम पदाधिकारी ने डुमरिया में कुल 33400 सार्वजनिक और 7400 निजी पौधारोपण व इमामगंज प्रखंड में 1,51,600 सार्वजनिक और 11,600 निजी पौधारोपण का दावा किया गया है।

जिला वन अधिकारी अभिषेक कुमार ने डाउन टू अर्थ से कहा कि हम वन क्षेत्र के भीतर खराब भूमि को ठीक करने के लिए वाटरशेड बनाने का काम कर रहे हैं। इस मानसून से पहले 6,517 हेक्टेयर वन क्षेत्र में और अगले वर्ष तक 7,000 हेक्टेयर क्षेत्र में काम किया जाएगा। गया जिले की वानिकी में सुधार हुआ है लेकिन शुद्ध वृद्धि क्षेत्र बताना मुश्किल है क्योंकि एक तरफ वनों की कटाई भी हो रही है।

वन अधिकारी ने बताया कि पहाड़ों पर बरसात के दौरान आने वाले पानी को रोकने व मिट्टी में नमी बढ़ाने के लिए स्गैटर्ड ट्रेंच बनाए जा रहे हैं। गया में कुल 138 वन समितियां काम कर रही हैं। इन समितियों के जरिए ही वानिकी का काम किया जा रहा है। पहले ठेकेदारों के साथ काम करने में पौधे टिकते नहीं थे। लेकिन समितियां अब पौधों की देखभाल भी करती हैं, जिससे यह टिक रहे हैं। उन्होंने बताया कि हम पौधारोपण में उन्हीं पौधों पर ज्यादा ध्यान दे रहे हैं जिससे टिंबर का काम किया जा सके। पौधारोपण में यूकेलिप्टस, मालाबार नीम (मेलिया-डुबिया) का भी इस्तेमाल किया जा रहा है। हालांकि, यह सारे काम इस मानसून से पहले होने हैं।   

देश में जलसंचय के कामों के लिए गया को केंद्र की ओर से कुल 62.30 अंक हासिल हुए हैं। इनमें सघन पौधारोपण भी शामिल है। अंकों का हिसाब देखें तो अभियान के दौरान सघन पौधारोपण में जिले को कुल 14 फीसदी में महज 0.76 अंक ही हासिल हुए हैं। इससे स्पष्ट है कि जलशक्ति अभियान के दौरान सघन पौधारोपण नहीं किया गया। वहीं, अधिकारियों ने बताया कि भविष्य में जल-जीवन-हरियाली अभियान के तहत व्यापक पौधारोपण कार्यक्रम किया जाएगा। इसमें नर्सरी और पौधारोपण होना है।     

वन क्षेत्र के बाहर डुमरिया और इमामगंज क्षेत्रों में वाटरशेड पर जलशक्ति अभियान के जरिए विशेष काम नहीं किया गया। पारंपरिक जल स्रोतों को भी जीवित नहीं किया गया। खासतौर से सिंचाई के लिए पानी की परेशानी होने के बावजूद पुरानी संरचनाओं को ठीक करने पर ध्यान नहीं दिया गया। डुमरिया प्रखंड में बलिया गांव से आगे सरोहर नदी बहती है। इस नदी के किनारे पुराना कुंआ बनाया गया था इस कुएं से पानी को ट्यूबवेल के जरिए निकालकर सिंचाई में इस्तेमाल किया जाता था। हालांकि यह जीर्ण-शीर्ण अवस्था में ही मिला। ऐसे ही सिंचाई की पुरानी सरंचनाएं गांवों में बेकार हो चुकी हैं।  जलशक्ति अभियान के जरिए मानपुर प्रखंड के रसलपुर गांव में एक तालाब का निर्माण किया गया है। प्रशासन ने दावा किया कि इसमें लोगों की भागीदारी भी शामिल है।  

पटना हाईकोर्ट में जनहित याचिका के तहत शहर में तालाबों के अतिक्रमण का मामला उठाने वाले स्थानीय पर्यावरणविद बृजनंदन पाठक ने कहा कि जिले में जल संरक्षण के भागीदारी वाले ऐसे कोई काम नहीं हुए हैं जो मिसाल बने। भले ही अभियान को मिशन मोड पर काम करने के लिए कहा गया हो लेकिन जिले में पानी का संकट बना ही हुआ है। कई आहर पर अतिक्रमण है और बरसाती नदियों के पानी को स्वच्छ रखने का भी कोई उपाय नहीं किया गया है। पारंपरिक जल स्रोतों की बात की जाए तो गया जिले को तालाबों की नगरी कहते थे जहां तालाबों पर अतिक्रमण लगातार जारी है।

कुंडिया गांव में रीचार्ज बोरवेल के बगल पईन को गहरा करने का काम जारी है। हालांकि यह जलशक्ति अभियान के दौरान शुरू नहीं किया गया। इमामगंज प्रखंड के दुबहल पंचायत के कुईंबार में 8 लाख 33 हजार रुपये की लागत से 1.25 क्यूबिक फीट क्षमता वाला एक चेकडैम बनाया गया है। इसका निर्माण जल जीवन हरियाली अभियान के तहत किया गया लेकिन इसे जलशक्ति अभियान में ही निर्मित दिखाया गया है। वहां मौजूद तकनीकी कर्मचारी के मुताबिक यह करीब दिसंबर में बनकर तैयार हुआ है। इस चेक डैम से एक पईन जुड़ी हुई है जिसपर अभी काम जारी है। इस चेक डैम मे मटेरियल का पैसा भी अभी तक नहीं बांटा गया है।

गया अनुमंडल वन अधिकारी सुब्रमणि चंद्रशेखर ने बताया कि उत्तरी बिहार में हरियाली की कमी हुई और बाढ़ में वृद्धि हुई है। वेटलैंड सूख रहे हैं। वहीं दक्षिणी बिहार में वर्षा के दिन घटने और वर्षा के असमान वितरण व ओपेन फॉरेस्ट होने के कारण सतह पर मौजूद पानी सूख रहा है। गया में 2.4 डिग्री सेल्सियस (सर्दी में) से 47 डिग्री सेल्सियस (गर्मी में) तक यहां के तापमान में अंतर आता है। यहां वाटरशेड का निर्माण बेहद जरूरी है। हम धीरे-धीरे उस पर काम कर रहे हैं। 

गया के जिलाधिकारी अभिषेक सिंह ने कहा कि गया में जलसंकट है उसका कारण यहां पर हो रही अनियमित और कम वर्षा है। 1200 एमएम से घटकर अब करीब 900 एमएम वर्षा सालाना हो रही है। वर्षा जल संचय करने वाले स्रोतों पर काम किया जा रहा है। ज्यादा पानी वाली फसलों का चलन ज्यादा है और भू-जल पर निर्भरता भी काफी ज्यादा है। इस चुनौती से निपटने के लिए जल संरचनाओं पर ध्यान दिया जा रहा है। जल शक्ति अभियान के तहतमानपुर के रसलपुर गांव में वाटर रीयूज प्लांट बनाया गया है लेकिन अभी शुरु नहीं किया जा सका है। 

2021 तक गंगा वाटर भी पाइपलान के जरिए गया तक पहुंचाया जाएगा। इससे पेयजल की समस्या खत्म होगी। साथ ही भू-जल पर दबाव भी कम होगा। 

एपी कॉलोनी निवासी और वार्ड नंबर 32 के काउंसल गजेंद्र सिंह गंगा पाइपलाइन की व्यवस्था के उलट कहते हैं कि उन्होंने जल व्यवस्था संघर्ष समिति के तहत 2008 में पानी की लड़ाई के लिए आवाज उठाई थी हालांकि अब अधिकांश घरों में बोरिंग है और पाइपलाइन के जरिए जलापूर्ति भी हो रही है। गंगा से फल्गु तक पानी पहुंचाने का विचार ठीक नहीं है। मोटर आधारित इस व्यवस्था से पानी शायद ही गया तक पहुंच पाए। यह बीरबल की खिचड़ी जैसा है। एक दशक बीत चुका है गया के सबसे पॉश कॉलोनी में पूरी तरह पानी नहीं आ सका है। बुडको के जरिए अब भी कॉलोनियों में पाइप बिछाई जा रही है लेकिन उसमें भी मानकों का ख्याल नहीं रखा जा रहा।  

डुमरिया और इमामगंज में जब ब्लॉक के पदाधिकारियों से पूछा गया कि आखिर मानसून के वक्त जल संरचनाओं पर काम कैसे किया गया?  इस पर अधिकारियों ने कहा कि उन्होंने सिर्फ प्लांटेशन का काम किया। सितंबर के बाद ही अन्य काम शुरु हुए।

जबकि इस बयान के उलट डीआरडीए के राजेश कुमार ने कहा कि जलशक्ति अभियान के अधूरे काम अभी तक जारी हैं। उन्होंने कहा कि बीते वर्ष 2019 में गया के सभी 24 ब्लॉक में मानसून की देरी के चलते सूखा घोषित कर दिया गया था। इसलिए मानसून अवधि में भी काम हो पाए थे। इन दोनों विरोधाभासी बयानों से इतर जमीनी सच्चाई यह है कि जल शक्ति अभियान के तहत सितंबर तक ही नहीं बल्कि अभी तक काम सिर्फ दिखावे के लिए किए गए।

गया नक्सल प्रभावित होने के साथ ही आकांक्षी जिलों की सूची में भी है। यहां नीति आयोग की फेलो निधि पुनेठा ने कहा कि जलशक्ति अभियान का काम ठीक तरीके से नहीं हो सका क्योंकि समय बहुत कम था और टार्गेट पूरा करना था। जुलाई से सितंबर तक मानसून की अवधि होने के कारण काम नहीं हो पाया। हां, कुछ काम जमीन पर जरूर किए गए।  

मनरेगा के तहत गया जिले में 2019-20 में वाटर कंजर्वेशन और वाटर हार्वेस्टिंग का मानपुर प्रखंड में सिर्फ एक काम पूरा किया गया। वहीं, डुमरिया प्रखंड में 18 और इमामगंज प्रखंड में 26 काम पूरे किए गए। ऐसे में यह सवाल है कि जलशक्ति अभियान के तहत किए गए सैकड़ों काम कहां गए?   

डुमरिया और इमामगंज प्रखंड के कार्यक्रम पदाधिकारी डाउन टू अर्थ से कहते हैं कि बिना फंड के कैसे काम होता?  इस अभियान के लिए हमें अलग से कोई फंड नहीं दिया गया था। डुमरिया प्रखंड में इन कामों के लिए 374.76 लाख रुपये खर्च किए गए। लेबर्स को पैसा दे दिया गया लेकिन 80.75 लाख रुपये मटेरियल का पैसा अभी तक बाकी है। मटेरियल का पैसा बिना चुकाए काम कैसे और कितना किया होगा? यह भी समझने लायक है।

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जलशक्ति अभियान के तहत गया जिले को जल संचय के पांच अलग-अलग और दो विशेष कामों के तहत कुल 62.30 अंक के साथ देश में छठवी रैकिंग दी गई। इन पांच कामों में वाटर कंजर्वेशन एंड रेन वाटर हार्वेस्टिंग के तहत 14 फीसदी में 9.83 फीसदी अंक दिए गए। जबकि ग्राउंड पर काम न तो संतोषजनक रहा और न ही दावे के मुताबिक पाया गया। वहीं, पुराने जल संरचनाओं के पुनरुद्धार के मामले में 14 फीसदी में महज 4.85 फीसदी अंक दिए गए। रीयूज एंड रीचार्ज स्ट्रक्चर में 14 फीसदी में सर्वाधिक 11.69 अंक दिए गए।  मानपुर में वाटर रीयूज प्लांट अभी चला नहीं और बनाए गए रीचार्ज स्ट्रक्चर की संख्या दावे से बहुत कम है। प्रशासन ने दावा किया कि उन्होंने डिस्ट्रिक्ट वाटर कंजर्वेशन प्लान बनाया है हालांकि अभी तक उपलब्ध नहीं कराया। इस श्रेणी में जिले को 10 फीसदी में 10 अंक मिले। वहीं जिन पांच साइट को जलशक्ति अभियान के तहत अपलोड करके 10 फीसदी में 10 अंक हासिल किया गया उनमें या तो संरचनाएं पुरानी थीं या फिर काम रैकिंग के बाद शुरु किया गया। किसान विज्ञान मेले में भी 10 फीसदी में 10 अंक मिले, लेकिन जितने मेलों के आयोजन का दावा किया गया है उतने किसान लाभान्वित नहीं हुए हैं। 

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रैकिंग के लिए जलशक्ति अभियान के तहत गया जिला ने किया यह काम का दावा

रूपटॉप रेनवाटर हार्वेस्टिंग स्ट्रक्चर 205 

चेक डैम 116 

फार्म पांड्स 118 

पारंपरिक जल संरचनाए / टैंक रिस्टोर्ड 912  

अदर्स वाटर बॉडीज  78

रीचार्ज बोरवेल स्ट्रक्चर 673

सोक पिट्स 10,172

गुल्ली प्लग 218

परकोलेशन टैंक्स 419

प्लांटेशन 16,74,000