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जलशक्ति अभियान की हकीकत: क्या केंद्र ने बिना जांचे ही जिलों को दे दी शीर्ष रैंकिंग

जल शक्ति अभियान की हकीकत का जायजा लेने के बाद जलशक्ति मंत्रालय के एक वरिष्ठ अधिकारी ने क्या कहा-

Vivek Mishra

देश के 256 जलसंकटग्रस्त जिलों में 1 जुलाई 2019 से 30 सितंबर, 2019 तक समयबद्ध और लक्ष्यबद्ध 'जलशक्ति अभियान' चलाया गया। जिलों के काम के दावे के आधार पर जलशक्ति मंत्रालय ने इन जिलों को 10/10 के आधार पर रैकिंग गई। इस रैकिंग के आधार पर डाउन टू अर्थ ने इन जिलों की पड़ताल की। पड़ताल के बाद जलशक्ति मंत्रालय के एक सचिव स्तर के अधिकारी से बातचीत की। नाम न छापने की शर्त पर की गई इस बातचीत को आप यहां ज्यों का त्यों पढ़ सकते हैं- 

जल शक्ति अभियान की जरूरत क्यों पड़ी?

जल शक्ति अभियान की शुरुआत जल संरक्षण को लेकर जागरूकता फैलाने के लिए की गई थी। बारिश के मौसम में वर्षा के परिमाण में लगातार कुछ न कुछ कमी आ रही है, इसलिए हमने सोचा कि मॉनसून का सीजन आ रहा है, तो लोगों को जल संरक्षण के लिए जागरूक किया जाए। हमने इसके लिए उन जिलों को चुना, जहां जल संकट ज्यादा था।

क्या जल शक्ति अभियान सफल रहा?

हां, मैं इस अभियान को सफल मानूंगा, क्योंकि बहुत सारे लोगों ने पानी बचाने के लिए जमीनी स्तर पर जागरूकता फैलाने में कड़ी मेहनत की। जल शक्ति पोर्टल पर इससे जुड़ी जानकारियां उपलब्ध हैं।

जल शक्ति अभियान के तहत अनुमानित तौर पर कितनी संरचनाएं तैयार की गईं?

संरचनाओं की संख्या जिला प्रशासनों ने खुद उपलब्ध कराई है इसलिए उन्होंने आंकड़ा देने में उदारता दिखाई है। कुछ संरचनाएं छोटी थीं और कुछ बड़ी। ऐसा नहीं है कि सबकुछ झूठ ही है, लेकिन जल शक्ति अभियान की चार महीने की अवधि में जितना किया जा सकता था, उतना किया गया।

इन संरचनाओं की जल संरक्षण क्षमता कितनी है ?

हमें इसकी जानकारी नहीं है। इसके लिए गहन अध्ययन की जरूरत है और इस अल्पावधि में ये अध्ययन नहीं किया जा सकता है।

जागरूकता अभियान खत्म होने के बाद क्या कोई रिपोर्ट बनाई गई?

हां, प्रधानमंत्री के मुख्य वैज्ञानिक सलाहकार ने रिपोर्ट बनाई है, जिसमें अभियान के परिणामों का जिक्र है। लेकिन, महज 4 महीने की अवधि में किसी बड़े परिणाम की उम्मीद करना सही नहीं होगा। हमारा मुख्य उद्देश्य लोगों के बीच जागरूकता फैलना था और इस उद्देश्य में बड़ी सफलता मिली है।

जल शक्ति अभियान का बजट कितना था?

इसके लिए कोई निर्धारित बजट नहीं था। मंत्रालय से कोई फंड जारी नहीं हुआ था। मनरेगा और सीएएमपीए जैसे प्रोजेक्ट्स के फंड से ये अभियान चलाया गया।

कई राज्यों के अफसरों  ने कहा है कि संरचनाएं स्थापित करने के लिए उनके पास पर्याप्त फंड नहीं थे।

इनमें से कई राज्यों ने मनरेगा के फंड का इस्तेमाल किया, जो उनके पास मौजूद था, क्योंकि इन प्रोजेक्ट्स के लिए नियमित तौर पर राशि का आवंटन होता है।

जल शक्ति अभियान के लिए किस तरह की वैज्ञानिक योजना बनाई गई थी?        

सभी जिलों को कहा गया था कि वे जल संरक्षण का प्लान तैयार करें। सभी ने प्लान बनाए। इन परियोजनाओं को सैटेलाइट इमेजरी के साथ 3डी मैपिंग कर सिंचाई योजना से जोड़ा गया। जल शक्ति अभियान से जुड़े दो तकनीकी व्यक्तियों ने जिलों का दौरा कर तकनीकी इनपुट्स दिए ताकि वैज्ञानिक तरीके का प्रयोग सुनिश्चित किया जा सके। अब भूजल कुछ चिन्हित राज्यों के जलस्रोतों की मैपिंग करेगा। हमें इसके बड़े उद्देश्य को देखने की जरूरत है। कुछ जागरूकता अभियान जल शक्ति अभियान ने चलाया और अब भूजल योजना जैसी स्कीम इसे आगे बढ़ाएगी।

जल शक्ति अभियान के तहत बनने वाले ढांचों की गुणवत्ता आपने कैसे सुनिश्चित की ?

जल शक्ति अभियान का मुख्य उद्देश्य मौजूदा तालाबों व अन्य जलस्रोतों की साफ-सफाई व रखरखाव के लिए लोगों को जागरूक करना था। इसके लिए आपको कोई बड़ा ढांचा तैयार नहीं करना पड़ता है। जल शक्ति अभियान के चलते ही कई जगहों पर छोटे स्तर पर हस्तक्षेप हुआ है।

जल शक्ति अभियान दोबारा शुरू करने की कोई योजना है?

देखते हैं।

कई अधिकारियों ने शिकायत की कि मॉनसून के कारण वे काम नहीं कर पाए। मॉनसून के सीजन में काम करने के पीछे आपका क्या एजेंडा था?

भविष्य में क्या किया जाना चाहिए, इसकी मुझे कोई जानकारी नहीं है। हां, मैं मानता हूं कि हमने मॉनसून में काम किया, लेकिन कई राज्यों में इन चार महीनों के दौरान ही हस्तक्षेप किए गए।

गोवा में सतही पानी पर्याप्त मात्रा में उपलब्ध है और वहां के लोगों को भूगर्भ जल की कोई जरूरत नहीं है। जल शक्ति अभियान में इस पर विचार क्यों नहीं किया गया?

दक्षिणी गोवा के संबंध में मैं कुछ नहीं कह सकता। शायद वहां सतही पानी 12 महीने की जरूरत के हिसाब से पर्याप्त न हो और इसलिए वहां भी जल संरक्षण की जरूरत पड़ी हो। संरक्षित पानी का इस्तेमाल उस वक्त किया जा सकता है जब सतही पानी की कमी हो जाएगी।

जल शक्ति अभियान को जब आप देखते हैं, तो आपको बड़े उद्देश्य की ओर देखना होगा। हमें आम लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। इसके लिए आम लोगों की भागीदारी बहुत अहम है। लोगों को देखना चाहिए कि उनके गांवों में किस तरह के जलस्रोत हैं, जिनमें सुधार की जरूरत है। जल शक्ति अभियान के जरिए हमने इसी लक्ष्य को पूरा करने की कोशिश की। मौसम का पैटर्न बदल रहा है। ऐसे में हमें ये नहीं पता है कि बारिश के मौसम में कितनी बारिश होगी। इसलिए जितनी भी बारिश होती है, उसका पानी बचाने के लिए तैयार रहना होगा।

जल शक्ति अभियान में गतिविधियों का जिक्र हुआ है। इसकी परिभाषा क्या है?

इसमें खुद रिपोर्ट करने की बात थी। इस अभियान के अंतर्गत जिला प्रशासन जो काम करता था, उसकी जानकारी  हमें देता था और हम उन आंकड़ों को एक जगह दर्ज करते थे। किसी भी छोटे या बड़े हस्तक्षेप को ‘गतिविधि’ कहा जाता था। उदाहरण के लिए, अगर एक छोटा तालाब है, तो उसकी सफाई की गई, गाद निकाला गया और इन कामों को ‘गतिविधियां’ माना गया। मैं ये मानता हूं कि जो संख्या दी गई है, वो बहुत ज्यादा है और इसका मतलब ये है कि छोटे-से-छोटे कामों  की भी जानकारी दी गई है (हंसते हुए)। जैसा कि मैं पहले कह चुका हूं कि ये पूरी तरह जागरूकता फैलाने के लिए था, तो अगर वे ज्यादा आंकड़े दे रहे हैं, तो भी कोई बात नहीं। अगर उन्होंने हजारों गतिविधियों का जिक्र किया है और वास्तव में कुछ सौ काम ही हुए हैं, तो ये भी एक उपलब्धि है। रैकिंग को छोड़ दीजिए क्योंकि जिलों के बीच प्रतिस्पर्धा कराने के लिए ऐसा किया गया था। इतने कम समय में वैज्ञानिक रूप से सटीक कुछ भी नही किया सकता था।