जल

भरपूर बरसात फिर भी नहीं है नर्मदा की सहायक नदियों में प्रवाह, क्या है वजह

होशंगाबाद जिले में स्थित नर्मदा की सहायक नदियां गर्मी में तो सूख ही जाती है, अब बरसात के मौसम में भी इन नदियों में जल का प्रवाह खत्म हो रहा है।

Manish Chandra Mishra

कुछ ही घंटों में होने वाली अफरात बारिश के कारण नदी किनारे बसे गांव, कस्बे और शहर बाढ़ और जलभराव की स्थितियों से बेहाल हो जाते हैं लेकिन मध्य प्रदेश में होशंगाबाद जिले के पिपरिया कस्बे में स्थिति बिल्कुल उलट है। यहां जोरदार वर्षा के बावजूद नदियों में प्रवाह नहीं है। 

गर्मियों के वक्त नदियों का पानी घटने के कारण उनमें प्रवाह कम होने की प्रवृत्ति देखी जाती थी लेकिन वर्षा के समय ऐसा कभी नहीं देखा गया था। वह भी खासतौर से तब जब बारिश भरपूर हुई हो। नर्मदा और उसकी सहायक नदियों की यह स्थिति पर्यारणविदों और नागरिकों को बेचैन कर रही है। 

राजीव गांधी वाटरशेड मिशन के पूर्व सलाहकार और पर्यावरणविद् केजी व्यास इस मुद्दे पर बताते हैं कि होशंगाबाद जिला पानी के मामले में काफी समृद्ध माना जाता है, लेकिन अब यहां की नदियां भी सूख रही है। वो अपने बचपन के दिनों को याद करते हुए कहते हैं कि स्कूल के समय में वे गर्मियों के दिनों में भी पानी में तैरा करते थे, लेकिन अब गर्मी में नर्मदा की सहायक नदियां सूख जाती है। 

उनका मानना है कि सबसे अधिक चिंता की बात ये है कि बारिश के दिनों में भी इन नदियों का प्रवाह कम हो रहा है। पिपरिया में इस वर्ष 22 अगस्त तक 900 मिलीमीटर बारिश हुई है इसके बावजूद शहर के बीचोबीच निकलने वाली मछवासा नदी में प्रवाह नहीं है। 

पर्याप्त बारिश लेकिन फिर भी बेहाल नदी

मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक होशंगाबाद जिले में 1 जून से आज 20 अगस्त को प्रात: 8 बजे तक  948.0 मिलीमीटर औसत वर्षा दर्ज हुई है। जबकि इसी अवधि मेंपिछले वर्ष 563.1 मिलीमीटर वर्षा रिकार्ड की गई थी। जिले की औसत सामान्य वर्षा 1311.7 मिलीमीटर है। पिछले वर्ष 1 जून से 15 अक्टूवर 2018 तक जिले में कुल 789.1मिली मीटर वर्षा दर्ज की गई थी। इतनी बारिश नदियों के प्रवाह के लिए पर्याप्त है लेकिन बावजूद इसके नदियों में पानी तालाब की तरह जमा रहता है। बारिश के दौरान कैचमेंट एरिया में जमा पानी तेजी से नदी की तरफ जाता है लेकिन कुछ समय बाद ही स्थिति पहले जैसी हो जाती है। पिपरिया में मछवासा नदी के अलावा जमाड़ा,बांसखेड़ा, बीजनबाड़ा, कुम्हावड़, मोकलवाड़ा नदी की स्थिति भी खराब है।

यह है नदी सूखने की सबसे बड़ी वजह

केजी व्यास होशंगाबाद जिले की भौगोलिक स्थिति समझाते हुए कहते हैं कि यह इलाका पचमढ़ी के नीचे स्थित है। पचमढ़ी में पूरे वर्ष अच्छी मात्रा में बारिश होती है और वहां से निकलने वाली नदिया उस जल को नर्मदा तक पहुंचाती है। इस वजह से होशंगाबाद जिला भूजल के मामले में काफी समृद्ध है। भूजल कम होने की वजहों पर बात करते हुए व्यास बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में खेती के तरीके में काफी बदलाव आया है। यहां के किसान काफी वक्त तक सोयाबीन लगाते रहे लेकिन बीते कुछ वर्षों में उन्होंने धान की खेती शुरू कर दी है। धान काफी मात्रा में पानी लेता है और किसान इसकी पूर्ति बोरवेल से करते हैं। पहले भूजल 60 से 70 फीट पर था, लेकिन अब इस इलाके में 200 फीट से भी अधिक गहरा बोर खोदना पड़ा रहा है। भूजल स्तर कम होने की वजह से नदियों का जलचक्र भी प्रभावित हुआ है। यहां जितनी बारिश हो रही है वह भूमिगत जल को रिचार्ज करने के लिए पर्याप्त नहीं है।

नदियों से रेत का खनन

पिपरिया में नदियों के संरक्षण के लिए काम कर रहे मनोज राठी बताते हैं कि पिछले कुछ वर्षों में नर्मदा की सहायक नदियों से अंधाधुंध रेत निकाला गया है। इस वजह से नदी का प्राकृतिक प्रवाह अवरुद्ध हो गया। इसके अलावा भूमिगत जलस्तर कम होना और नदी के उद्गम स्थल पर पेड़ों की कटाई से भी नदियां मर रही है। फॉरेस्ट सर्वे की रिपोर्ट के मुताबिक होशंगाबाद में पिछले कुछ वर्षों में दो सघन जंगल खत्म हो गए। 2011 में जिले में 274 सघन वन थे जो कि 2017 की रिपोर्ट में 272 ही रह गए।

भू-जल निकासी है लेकिन रीचार्ज नहीं

पिपरिया के एसडीएम मदन सिंह रघुवंशी बताते हैं कि प्रशासन का प्रयास लोगों में जागरुकता लाने का है। उन्होंने बताया कि भूजल का दोहन बढ़ता ही जा रहा है और इसे रिचार्ज करने की व्यवस्था नहीं हो रही है। प्रशासन इस तरफ भी प्रयास करेगा। पौधरोपण और स्टॉपडेम बनाकर नदी को जीवित रखने के प्रयास भी हो रहे हैं। वहीं, केजी व्यास ने बताया कि हाल ही में नदियों को पुनर्जीवित करने के लिए मध्यप्रदेश सरकार को एक मैनुअल तैयार करके दिया गया है जिसपर सरकार ने काम करना शुरू कर दिया है।