जल

जल व स्वच्छता पर 1.42 लाख करोड़ रुपए खर्च करेंगी पंचायतें

वित्त आयोग ने पंचायतों को अपने खर्च का 60 फीसदी जल व स्वच्छता पर खर्च करने का सुझाव दिया

Richard Mahapatra

15वें वित्त आयोग ने सुझाव दिया है कि ग्रामीण स्थानीय निकायों को केंद्र सरकार से मिलने वाले अनुदान के 60 फीसदी हिस्से को जल संरक्षण, पेयजल मुहैया कराने और घरेलू कचरे व मलमूत्र प्रबंधन पर खर्च करना चाहिए। इसमें 2019 में स्वच्छ भारत अभियान के तहत हासिल किए गए 'खुले में शौच से मुक्त' (ओडीएफ) दर्जे को बनाए रखा जाना शामिल है। 31 मार्च 2019 को 5 लाख से ज्यादा गांवों और 616 तहसीलों को 'खुले में शौच से मुक्त' घोषित किया गया है। 

वित्त आयोग संवैधानिक संस्था है जो केंद्रीय कर के खजाने को केंद्र सरकार, राज्य सरकार और पंचायत व नगर-निगम जैसे तृतीय स्तर के स्थानीय निर्वाचित निकायों में बांटती है। 

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने वित्त वर्ष 2021-22 के लिए बजट पेश करते हुए 15वें वित्त आयोग के सुझावों को स्वीकार किया। 

वित्त आयोग ने केंद्रीय टैक्स पूल में से शहरी व ग्रामीण दोनों जगह के स्थानीय प्रशासन को 2021-26 तक के लिए 4,36,361 करोड़ रुपये का अनुदान तय किया है। इस कुल अनुदान में से ग्रामीण निकायों को 2,36,805 करोड़ रुपये मिलेंगे। 

इस अनुदान को दो प्रकार में बांटा गया है - बंधा हुआ (टाइड) और खुला हुआ (अनटाइड)। बंधा हुआ अनुदान कुल अनुदान का 60 फीसदी है। इस राशि को जल व स्वच्छता संबंधी गतिविधियों पर ही खर्च किया जाना है। बाकी का 40 फीसदी अनुदान जो बंधे हुए की श्रेणी में नहीं आएगा उसे संविधान द्वारा तय की गयीं पंचायत की 29 जिम्मेदारियों पर खर्च किया जाएगा, जिसका चुनाव करने की स्थानीय निकायों के पास आजादी होगी। 

इतना ही नहीं, बंधे हुए अनुदान को खर्च के लिए दो बराबर भागों में बांटा गया है - एक हिस्सा जल के लिए और दूसरा स्वच्छता के लिए। 

2021-26 के लिए घोषित किए गए 30 फीसदी अनुदान (71,042 करोड़ रुपये) को पेयजल, वर्षा जल संरक्षण और जल रिसाइकलिंग के लिए तय किया गया है। इसी दौरान अन्य 30 फीसदी (71,042 करोड़ रुपये) को ग्रामीण स्थानीय निकायों में बांटा जाना तय किया गया है जिससे ओडीएफ दर्जे को कायम रखा जा सके और इसमें घर से निकलने वाले कचरे का प्रबंधन और उपचार किया जा सके, साथ ही इंसानी मल  व अपशिष्ट का भी विशेष प्रबंधन शामिल हो।  

विभिन्न सरकारी विभागों के साथ की गई चर्चा के आधार पर वित्त आयोग के स्पष्टीकरण के मुताबिक, यह केंद्र सरकार की मांग थी कि 'खुले में शौच से मुक्ति' वाले दर्जे को चिरस्थायी बनाया जाए। इसके अलावा, जल जीवन मिशन के तहत सरकार ने हर घर तक नल का पानी पहुंचाने का वादा किया है। केंद्र सरकार चाहती है कि ये दोनों लक्ष्य एकीकृत रूप में फण्ड किए जा सकें। 

पिछले अनुभवों के आधार पर ये कहा जा सकता है कि पानी की निश्चित उपलब्धता के बिना गांवों के राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना और स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण योजना के दर्जे से बाहर होने के आसार हैं। सरकार के अपने आंकड़ों के मुताबिक, ओडीएफ घोषित किए गए सिर्फ 41.53 फीसदी घरों में ही पाइप द्वारा पानी की सप्लाई होती है।  

कुल अनुदान में से 60 फीसदी को इन दो तरह की गतिविधियों के लिए तय करने का सुझाव देने से पहले 15वें वित्त आयोग ने कहा- "केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना और स्वच्छ भारत मिशन-ग्रामीण योजना को जोड़ते हुए जल व स्वच्छता के लिए मिलाजुला मार्ग प्रस्तावित किया है। जिन गांवों को ओडीएफ घोषित किया गया है उन्हें राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल योजना के तहत पाइप द्वारा पानी की सप्लाई वाली योजना में प्राथमिकता दी गई है।"