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ओपन वेल रिचार्ज सिस्टम से दूर हो सकता है जल संकट, केरल बना मिसाल

लागत और प्रभावशीलता के मामले में कृत्रिम ओपन वेल रिचार्ज सिस्टम और अन्य वाटर रिचार्ज सिस्टम की तुलना में लागत कम लगती है

Anil Ashwani Sharma

केरल के घटते भूजल स्तर के लिए ज़िम्मेदार कई कारणों में से एक है जलवायु परिवर्तन लेकिन इससे निपटने के लिए एमएस स्वामीनाथन रिसर्च फाउंडेशन में बतौर डेवलपमेंट एसोसिएट (वॉटर ) कार्यरत आनंद जाकारायस बताते हैं कि कैसे ओपन वेल रिचार्ज सिस्टम केरल को जल संकट से उबरने में मदद कर रहा है। ओपन वेल रिचार्ज सिस्टम अन्य तरीकों की तुलना में बेहतर है, क्योंकि  प्रयोगों से पता चला है कि शीर्ष तलछट परत और 15 सेमी शीर्ष मिट्टी को खुरचने से प्रारंभिक इंफिल्ट्रेशन क्षमता का 68.3 प्रतिशत तक बहाल हो सकता है। कभी-कभी एक्विफर्स में मिट्टी के लेंस होते हैं, यदि रिचार्ज पानी में टोटल डिसॉल्व्ड सॉलिड्स (टीडीएस) या अधिक सोडियम सघनता है, तो क्ले लैंस भूजल के साथ एक्वीफर की मोटी परतों के माध्यम से आगे बढ़ सकता है, जिससे कुओं से पंप किया गया पानी मैला होगा।

लागत और प्रभावशीलता के मामले में कृत्रिम ओपन वेल रिचार्ज सिस्टम और अन्य वाटर रिचार्ज सिस्टम की तुलना में लागत कम लगती है।सरफेस इंफिल्ट्रेशन पर आधारित तरीकों में निर्माण लागत अपेक्षाकृत कम होती है और उनका संचालन और रखरखाव भी आसान होता है। हालांकि, सर्फेस इंफिल्ट्रेशन प्रणाली हमेशा उपयुक्त नहीं होती है। जहां पारगम्य सतह की मिट्टी उपलब्ध नहीं हो, भूमि बहुत महंगी हो या एक्वीफर्स में शीर्ष पर खराब गुणवत्ता वाला पानी हो, वैसी जगहों पर यह संभव नहीं है।

डायरेक्ट सबसर्फेस रिचार्ज मेथड्स गहरे एक्वीफरों तक पहुंचते हैं और उनके लिए डायरेक्ट सर्फेस रिचार्ज की तुलना में जगह भी कम चाहिए होती है। हालांकि उनका निर्माण एवं रख रखाव महंगा होता है। आमतौर पर भूजल को फिर से भरने के लिए रिचार्ज कुओं जिन्हें आमतौर पर इंजेक्शन कुआं कहा जाता है, का उपयोग किया जाता है। ऐसा तब किया जाता है जब एक्वीफर गहरा होता है और आम तौर पर कम पारगम्यता की सामग्री द्वारा भूमि की सतह से अलग होता है।

ऐसे क्षेत्रों में जहां धाराओं के आधार प्रवाह का समर्थन भूजल द्वारा किया जाता है, पुनर्भरण के लिए भंडारण और भूजल के प्रवाह को जोड़ने से निम्न प्रवाह या सूखे की स्थिति के दौरान उच्च निरंतर प्रवाह हो सकता है। झरनों का प्रवाह गर्मी के दौरान भी भूजल के माध्यम से उच्च स्तर पर बनाए रखा जा सकता है जोकि कृत्रिम रिचार्ज के परिणामस्वरूप होगा। वहीं दूसरी ओर सतह के जलाशय, जिनके जल की गुणवत्ता को एक्वीफर से निकलने वाले कम गुणवत्ता वाले पानी द्वारा कम कर दिया गया है, वे सतह के जलाशय की पारिस्थितिकी को नुकसान पहुंचा सकते हैं।

रिचार्ज संरचना विधि के प्रकार और संरचना के स्थान को अंतिम रूप देते समय सांस्कृतिक कारकों को भी ध्यान में रखना चाहिए। भूमि की उपलब्धता, आस-पास के क्षेत्रों में भूमि का उपयोग, सार्वजनिक दृष्टिकोण, और कानूनी आवश्यकताएं, यह सभी कृत्रिम पुनर्भरण प्रणाली के सफल कार्यान्वयन में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं। उदाहरण के लिए, शहरी क्षेत्रों में, नियंत्रित जलापूर्ति वाले इंजेक्शन कुओं को प्राथमिकता दी जाती है।

ओपन वेल रिचार्ज सिस्टम से कई लाभ हैं। यह भूजल और भूजल स्तर की उपलब्धता को बढ़ाता है और पूरे केरल में सभी पारिस्थितिक तंत्रों में प्रभावी है। इसके आलावा इस तकनीक से ग्रामीण क्षेत्रों में एक्वीफर्स में पानी की मात्रा के साथ-साथ गुणवत्ता में सुधार करने में मदद मिलती है।

मोटे तौर पर देखें तो लगातार घटते भूजल स्तर का सबसे बड़ा कारण बोरवेलों की संख्या में हो रहा इज़ाफ़ा है। गर्मी के मौसम में में लवणता विशेष रूप से बढ़ जाती है क्योंकि भूजल स्तर औसत समुद्र तल से कम हो जाता है, जिससे खारे पानी के पार्श्व या ऊर्ध्वाधर आंदोलन की सुविधा होती है। इस हरकत के फलस्वरूप यह नमकीन पानी भूजल जलाशयों में प्रवेश कर सकता है। इसी तरह, केरल की नदियां अक्सर गर्मियों के महीनों के दौरान जब ताजे पानी का प्रवाह कम हो जाता है, अपने निचले हिस्सों में लवणता की घुसपैठ का सामना करती हैं। मॉनसून आमतौर पर भूजलस्तर को पर्याप्त रूप से रिचार्ज करता है, जिससे एक्वीफर्स में खारे पानी की कम सांद्रता होती है।

केरल में एक विशिष्ट तटीय एक्वीफर प्रणाली है जो कुओं सहित भूजल स्रोतों में खारे पानी की घुसपैठ का शिकार है। समुद्र के जलस्तर में वृद्धि या भूजल स्तर में गिरावट हो या ज्वार में परिवर्तन या एक्वीफरों का टूटना आदि इन सब के माध्यम से खरा पानी कुओं में जा सकता है। अकेले केरल के पूवर में करीब 50 कुएं खारे पानी के अतिक्रमण से प्रभावित हुए हैं। नमकीन पानी की वजह से ग्रामीण इलाकों में कुछ लोगों को मजबूरन पानी की पाइपलाइनों का सहारा लेना पड़ रहा है, जो उनके लिए अधिक महंगा है। ताजे पानी की झीलों का विनाश और वेटलैंड्स का रूपांतरण भूजलस्तर में आई गिरावट में योगदान देता है। वैश्विक जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्र का बढ़ता जलस्तर इस समस्या को सीधे प्रभावित करने वाले कारणों में से एक है।

केरल में, भूजल की लवणता / खारेपन की वजह एक्वीफर सामग्री से लवणों की लीचिंग है, न कि समुद्री जल की घुसपैठ। यह इस तथ्य के कारण है कि भूजल एक्वीफर ज्यादातर केरल में सीमित हैं जो प्रत्यक्ष समुद्री जल घुसपैठ को प्रतिबंधित करते हैं, और यही कारण है कि अधिक निष्कर्षण के कारण तटीय जलमार्ग में समुद्र के पानी का प्रवेश होने की कोई सूचना केरल तट से नहीं मिली है।  हालांकि, उन उथले कुओं में लवणता देखी जाती है जो बैकवाटर्स, लैगून, झीलों और ज्वार की नदियों के करीब हैं। कदलुंडी और कोट्टक्कल में स्थित तटीय कुएँ आंशिक रूप से लैगून से प्रभावित होते हैं और आंशिक रूप से समुद्र के पानी से क्योंकि उनके एक तरफ समुद्र है और दूसरी तरफ लैगून/बैकवाटर है। यह समस्या वडकरा,थिरुवांगुर बेयपोर, कोझीकोड तट, आदि स्थानों में भी पाई जाती है।

कुओं में खारे पानी की उपस्थिति भूजल की गुणवत्ता का एक संकेतक है। सोडियम क्लोराइड (एकएसीएल) या सामान्य नमक भूजल में पाया जाने वाला प्रमुख नमक है, जिसके बाद मैग्नीशियम क्लोराइड (एमजीसीएल) आता है। कुछ भूजल सतही जल स्रोतों जैसे कि नहरों, झीलों या जलधाराओं में भी प्रवेश करता है, जिससे सतही जल की हाइड्रोलॉजी में भी परिवर्तन आता है। धान की खेती के लिए खारे पानी का उपयोग नहीं किया जा सकता है जो केरल की एक प्रमुख आर्थिक गतिविधि है। भूजल में लवणता की घुसपैठ मुख्य रूप से कृषि, औद्योगिक और घरेलू उपयोग की आपूर्ति को प्रभावित करता है। भूजलस्तर में गिरावट की वजह से और गहरे बोरवेल खोदने पड़ रहे हैं जिसके फलस्वरूप पम्पों की दक्षता भी कम हो रही है। इसके आलावा ग्रामीण इलाकों में गरीब परिवार प्रतिदिन लगभग दो घंटा पानी लाने में बिताते हैं।