जल

अकेले ही तालाब को किया कचरा मुक्त, अब गांव वाले देते हैं साथ

बिना सरकारी मदद के बाड़मेर के भंवर लाल ने अपने गांव के तालाब की सफाई शुरू की और अब पूरा गांव उनके साथ खड़ा है

Anil Ashwani Sharma

बाड़मेर का नाम जेहन में आते ही पानी की किल्लत का अहसास होता है लेकिन यहां के ग्रामीणों ने बिना सरकार की मदद से पानी के लिए ऐसे-ऐसे काम कर दिए हैं कि इनके सामने सरकारी योजनाएं भी फैल हैं। ऐसे ही यहां के जावड़िया गांव के भंवरलाल की कहानी है। वह कहते हैं कि ये तालाब आप जो देख रहे हैं इसमें तीन-तीन बेरियां भी हैं। पहले यहां केवल तालाब ही हुआ करता था, लेकिन तेज रेगिस्तानी हवाएं चलने के कारण इसमें गांव का कचरा व रेत आ जाती थीं। मैंने शुरू में अपने स्तर पर ही इस कचरे को कम करने की कोशिश की। इसके लिए तालाब के मुंडेरों पर एक छोटी मेड़ तैयार करनी शुरू की। इससे हवा से आने वाला कचरा बंद हुआ। इसके अलावा यहां तालाब के मेड़ों पर लगे वृक्षों के पत्ते झड़ कर पानी में सड़ने लगते थे। मैंने इन पत्तों को हटाना शुरू कर दिया। लेकिन कुछ समय बाद मुझ बुढ़े को देख कर गांव के कई जवानों ने भी मेरी मदद करनी शुरू की। इस प्रकार से हम अपने गांव के इस तालाब को न केवल स्वच्छ बना कर रखा हुआ है, बल्कि इस तालाब आसपास कुछ ऐसे ढालन वाले क्षेत्र हैं, उन स्थानों पर भी मैं कच्ची मेड़ खडी करने की कोशिश करता हूं। ताकि बारिश का पानी इनमें रुक सके और वह पानी हमारे मवेशियों के लिए काम आ सके।  

भवंर लाल बताते हैं कि गांव वालों ने तालाब की उपेक्षा तब से करनी शुरू कर दी जब से गांव में पाइप लाइन का पानी आने लगा। हालांकि उस समय भी मैं गांव की चौपाल में चिल्लाकर यह कहता था हमें अपनी परंपरागत जल स्त्रोतों को हर हाल में बना कर रखना चाहिए। क्यों कि यह पाइप लाइन का पानी कभी बंद हो सकता है। क्योंकि यह पानी भी किसी बड़े जल स्त्रोत से खींच कर हमारे और आपके पास  पहुंच रहा है। लेकिन मेरी कोई नहीं सुनता था। हर कोई कहता है कि बाबा अब तुम सठिया गए है और घर जाकर अपने पोते-पोतियों को खिलाओ। लेकिन मैंने हार नहीं मानी अकेले ही मैँने तालाब की सफाई आदि में जुटा रहता था। लेकिन अब कई और लोग सहायता करने आ जाता है। अब तो कई बार ऐसा होता है कि जब मैं कुछ भी नहीं करता हूं तो भी आप देख सकते हैं तालाब पूरी तरह से स्वच्छ है और इसके चारो ओर भी स्वच्छता बनी हुई है।

वह बताते हैं कि इस तालाब में तीन बेरी हैं। अभी इसमें पानी है इसलिए बेरियां डूबी हुई हैं। लेकिन जब कुछ समय बाद तालाब का पानी सूख जाएगा तब इन बेरियां से ही गांव वाले पानी लेकर जाते हैं। पाइप लाइन का पानी इतना मीठा नहीं होता है, जितना इन बेरियों का होता है। वह कहते हैं अब हमारे गांव के लोग यह अच्छी तरह से समझ गए हैं कि पाइप लाइन का पानी आ गया है तो अच्छी बात है लेकिन इसका मतलब कतई नहीं कि हम अपने पुरखों की धरोहरों को भी भुला दे। आखिरकार मुसीबत में वही काम आने वाली हैं।