जल

दुनिया भर में हर तीन में से एक बच्चा पानी की भारी कमी से जूझ रहा है: यूनिसेफ

रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में वर्तमान में 55.9 करोड़ बच्चे भयंकर गर्मी या लू के खतरे में हैं, जो साल 2050 तक 2.02 अरब बच्चों तक बढ़ जाएगा

Dayanidhi

जहां आज हम भारत में बाल दिवस का उत्सव मना रहे हैं, वहीं दुनिया भर में बच्चे अनेकों समस्याओं का सामना रहे हैं। यूनिसेफ की एक नई रिपोर्ट 'दि क्लाइमेट चेंज्ड चाइल्ड' के अनुसार, तीन में से एक बच्चा या दुनिया भर में 73.9 करोड़ लोग पानी की भारी कमी वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जलवायु परिवर्तन के कारण स्थिति के और भी भयावह होने का खतरा है।

इसके अलावा, पानी की घटती उपलब्धता और अपर्याप्त पेयजल तथा स्वच्छता सेवाओं का दोहरा बोझ चुनौती को बढ़ा रहा है, जिसने बच्चों को और भी अधिक खतरे में डाल दिया है।

कॉप 28 जलवायु परिवर्तन शिखर सम्मेलन से पहले जारी द क्लाइमेट चेंज्ड चाइल्ड नामक रिपोर्ट, पानी की असुरक्षा के कारण बच्चों को होने वाले खतरों पर प्रकाश डालती है, जो जलवायु परिवर्तन के प्रभावों को महसूस करने के तरीकों में से एक है। यह दुनिया भर में  जल सुरक्षा के तीन स्तरों - पानी की कमी, पानी की कमी से होने वाले खतरे और पानी की कमी के कारण होने वाले तनाव के प्रभावों का विश्लेषण करती है।

रिपोर्ट, यूनिसेफ चिल्डर्न क्लाइमेट रिस्क (2021) को आगे बढ़ाते हुए, उन असंख्य अन्य तरीकों को भी रेखांकित करती है जिनसे बच्चों को जलवायु संकट के प्रभावों का खामियाजा भुगतना पड़ता है। जिसमें बीमारी, वायु प्रदूषण, सूखा और बाढ़ जैसी चरम मौसम की घटनाएं शामिल हैं

गर्भधारण के क्षण से लेकर वयस्क होने तक, बच्चों के मस्तिष्क, फेफड़े, प्रतिरक्षा प्रणाली और अन्य महत्वपूर्ण कार्यों का स्वास्थ्य और विकास उस वातावरण से प्रभावित होता है जिसमें वे बड़े होते हैं। उदाहरण के लिए, बच्चों के वयस्कों के मुकाबले वायु प्रदूषण से पीड़ित होने के आसार बहुत अधिक होते हैं। आम तौर पर, वे वयस्कों की तुलना में तेजी से सांस लेते हैं और उनके मस्तिष्क, फेफड़े और अन्य अंग अभी भी विकसित हो रहे होते हैं।

रिपोर्ट के हवाले से यूनिसेफ के कार्यकारी निदेशक कैथरीन रसेल ने कहा कि, जलवायु परिवर्तन के परिणाम बच्चों के लिए विनाशकारी हैं। उनके शरीर और दिमाग पर प्रदूषित हवा, खराब पोषण और अत्यधिक गर्मी का बहुत भारी असर होता है।

न केवल उनकी दुनिया बदल रही है बल्कि जल स्रोत सूख रहे हैं और चरम मौसम की घटनाएं अधिक प्रबल और लगातार हो रही हैं। जिसके कारण बच्चों का स्वास्थ्य भी बदल रहा है क्योंकि जलवायु परिवर्तन उनके मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। बच्चे बदलाव की मांग कर रहे हैं, लेकिन उनकी जरूरतों को अक्सर हाशिए पर धकेल दिया जाता है।

रिपोर्ट के निष्कर्षों के मुताबिक, बच्चों का सबसे बड़ा हिस्सा मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका और दक्षिण एशिया क्षेत्रों में उजागर होता है, जिसका अर्थ है कि वे सीमित जल संसाधनों और उच्च स्तर की मौसमी और अंतर-वार्षिक परिवर्तनशीलता, भूजल स्तर में गिरावट या सूखा पड़ने के खतरों वाले इलाकों में रहते हैं।

43.6 करोड़ बच्चे पानी की कमी या बहुत कम पेयजल की आपूर्ति के दोहरे बोझ का सामना कर रहे हैं। जिसे अत्यधिक पानी की कमी के कारण होने वाले  खतरे के रूप में जाना जाता है। बच्चों को दोहरे बोझ का सामना करना पड़ रहा है, जिससे उनका जीवन, स्वास्थ्य और कल्याण खतरे में पड़ गया है। यह रोकथाम योग्य बीमारियों से पांच वर्ष से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु के प्रमुख कारणों में से एक है।

रिपोर्ट से पता चलता है कि, सबसे अधिक प्रभावित लोग उप-सहारा अफ्रीका, मध्य और दक्षिणी एशिया और पूर्वी और दक्षिण-पूर्वी एशिया में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में रहते हैं। 2022 में, 43.6 करोड़ बच्चे अत्यधिक पानी के कमी से होने वाले खतरों का सामना करने वाले क्षेत्रों में रह रहे थे। सबसे अधिक प्रभावित देशों में नाइजर, जॉर्डन, बुर्किना फासो, यमन, चाड और नामीबिया शामिल हैं, जहां 10 में से आठ बच्चे इसकी चपेट में हैं।

रिपोर्ट के मुताबिक, दुनिया भर में वर्तमान में 55.9 करोड़ बच्चे भयंकर गर्मी या लू के संपर्क में हैं, जो साल 2050 तक 2.02 अरब बच्चों तक बढ़ जाएगा।

वहीं रिपोर्ट में कहा गया है कि, पिछले छह वर्षों में, मौसम संबंधी आपदाओं से जुड़े 4.3 करोड़ बच्चों को विस्थापन का सामना करना पड़ा, जो प्रति दिन लगभग 20,000 बच्चों के विस्थापन होने के बराबर है।

दुनिया भर में 2000 के बाद से, सूखा पड़ने की संख्या और अवधि में 29 प्रतिशत की वृद्धि हुई है। भारत में एक व्यवस्थित समीक्षा में पाया गया कि सूखा बच्चों के पोषण और स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव डालता है क्योंकि इसके कारण आहार से समझौता करना पड़ता है। महिलाओं और लड़कियों को शिक्षा, पोषण, स्वास्थ्य, स्वच्छता और सुरक्षा में सूखे का सबसे बड़ा बोझ झेलना पड़ता है।

2022 में सूखे का सामना करने वाले शीर्ष पांच देश भारत, नाइजर, सूडान, बुर्किना फासो और जॉर्डन थे। ऐसे 46 देश थे जहां एक चौथाई से अधिक बच्चे सूखे के भारी खतरों में थे, जिनमें 24 देश ऐसे थे जहां आधे से अधिक बच्चे सूखे के संपर्क में थे और 10 देश ऐसे थे जहां तीन-चौथाई से अधिक बच्चे सूखे के संपर्क में थे।

इन परिस्थितियों में, बच्चों को जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने के लिए सुरक्षित पेयजल और स्वच्छता सेवाओं में निवेश की अहम जरूरत है। रिपोर्ट में चेतावनी दी गई है कि, जलवायु परिवर्तन के कारण पानी से संबंधित तनाव भी बढ़ रहा है, उपलब्ध नवीकरणीय आपूर्ति के लिए पानी की मांग का अनुपात लगातार बढ़ रहा है।

साल 2050 तक, 3.5 करोड़ से अधिक बच्चों के भारी या बहुत भारी स्तर पर पानी की कमी के कारण होने वाले तनाव के संपर्क में आने का अनुमान है, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका और दक्षिण एशिया वर्तमान में सबसे बड़े बदलाव के दौर से गुजर रहे हैं।

इन खतरों के बावजूद, जलवायु परिवर्तन के बारे में चर्चाओं में बच्चों को या तो नजरअंदाज कर दिया गया है या बड़े पैमाने पर उनकी उपेक्षा की गई है। उदाहरण के लिए, प्रमुख बहुपक्षीय जलवायु निधियों से केवल 2.4 प्रतिशत जलवायु वित्त उन परियोजनाओं का समर्थन करता है जिनमें बच्चों के कल्याण से संबंधित गतिविधियां शामिल होती हैं।

रिपोर्ट में कहा गया है कि, कॉप28 में, यूनिसेफ दुनिया भर के नेताओं और अंतर्राष्ट्रीय समुदाय से रहने योग्य धरती को सुरक्षित करने के लिए बच्चों के साथ और उनके लिए महत्वपूर्ण कदम उठाने का आह्वान कर रहा है, जिसमें शामिल हैं:

कॉप28 मुख्य निर्णय के अंतर्गत बच्चों को ऊपर उठाना और बच्चों और जलवायु परिवर्तन पर एक विशेषज्ञ संवाद आयोजित करना।

 ग्लोबल स्टॉकटेक (जीएसटी) में बच्चों और अंतर-पीढ़ी इक्विटी को शामिल करना।

अनुकूलन के वैश्विक लक्ष्य (जीजीए) पर अंतिम निर्णय में बच्चों और जलवायु के अनुकूल आवश्यक सेवाओं को शामिल करना।

 यह सुनिश्चित करना कि हानि और क्षति निधि और फंडिंग व्यवस्था बच्चों के प्रति संवेदनशील हो और फंड के प्रशासन और निर्णय लेने की प्रक्रिया में बाल अधिकार शामिल हों।

रिपोर्ट के मुताबिक, कॉप28 के अलावा, यूनिसेफ विभिन्न पक्षों से बच्चों के जीवन, स्वास्थ्य और कल्याण की रक्षा के लिए कार्रवाई करने का आह्वान कर रहा है - जिसमें आवश्यक सामाजिक सेवाओं को अपनाना, प्रत्येक बच्चे को पर्यावरण के लिए एक चैंपियन बनने के लिए सशक्त बनाना और अंतरराष्ट्रीय स्थिरता और जलवायु परिवर्तन समझौतों को पूरा करना शामिल है। जिसमें तेजी से उत्सर्जन कम करना भी शामिल है।

रिपोर्ट के हवाले से कैथरीन रसेल ने कहा कि, बच्चों और युवाओं ने लगातार जलवायु संकट पर अपनी आवाज सुने जाने की तत्काल मांग की है, लेकिन जलवायु नीति और निर्णय लेने में उनकी लगभग कोई औपचारिक भूमिका नहीं है। मौजूदा जलवायु अनुकूलन, शमन या वित्त योजनाओं और कार्यों में उन पर शायद ही कभी विचार किया जाता है। उन्होंने आगे कहा, प्रत्येक बच्चे को तत्काल वैश्विक जलवायु कार्रवाई के केंद्र में रखना हमारी सामूहिक जिम्मेदारी है।