जल

भारत में अब पानी की बर्बादी और बेजा इस्तेमाल एक दंडात्मक कसूर

Vivek Mishra

अब देश में कोई भी व्यक्ति और सरकारी संस्था यदि भूजल स्रोत से हासिल होने वाले पीने योग्य पानी (पोटेबल वाटर) की बर्बादी या बेजा इस्तेमाल करता है तो यह एक दंडात्मक दोष माना जाएगा। इससे पहले भारत में पानी की बर्बादी को लेकर दंड का कोई प्रावधान नहीं था। घरों की टंकियों के अलावा कई बार टैंकों से जगह-जगह पानी पहुंचाने वाली नागरिक संस्थाएं भी पानी की बर्बादी करती है। 

देश में प्रत्येक दिन 4,84,20,000 करोड़ घन मीटर यानी एक लीटर वाली 48.42 अरब बोतलों जितना पानी बर्बाद हो जाता है, जबकि इसी देश में करीब 16 करोड़ लोगों को साफ और ताजा पानी नहीं मिलता। वहीं, 60 करोड़ लोग जलसंकट से जूझ रहे हैं।

सीजीडब्ल्यूए ने पानी की बर्बादी और बेजा इस्तेमाल पर रोक लगाने के लिए 08 अक्तूबर, 2020 को पर्यावरण (संरक्षण) कानून, 1986 की धारा पांच की शक्तियों का इस्तेमाल करते हुए प्राधिकरणों और देश के सभी लोगों को संबोधित करते हुए दो बिंदु वाले अपने आदेश में कहा है :

1.  इस आदेश के जारी होने की तारीख से संबंधित नागरिक निकाय जो कि राज्यों और संघ शासित प्रदेशों में पानी आपूर्ति नेटवर्क को संभालती हैं और जिन्हें जल बोर्ड, जल निगम, वाटर वर्क्स डिपार्टमेंट, नगर निगम, नगर पालिका, विकास प्राधिकरण, पंचायत या किसी भी अन्य नाम से पुकारा जाता है, वो यह सुनिश्चित करेंगी कि भूजल से हासिल होने वाले पोटेबल वाटर यानी पीने योग्य पानी की बर्बादी और उसका बेजा इस्तेमाल नहीं होगा। इस आदेश का पालन करने के लिए सभी एक तंत्र विकसित करेंगी और आदेश का उल्लंघन करने वालों के खिलाफ दंडात्मक उपाय किए जाएंगे।

2. देश में कोई भी व्यक्ति भू-जल स्रोत से हासिल पोटेबल वाटर का बेजा इस्तेमाल या बर्बादी नहीं कर सकता है। 

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल ने राजेंद्र त्यागी और गैर सरकारी संस्था फ्रैंड्स की ओर से बीते वर्ष 24 जुलाई, 2019 को पानी की बर्बादी पर रोक लाने की मांग वाली याचिका पर पहली बार सुनवाई की थी। डाउन टू अर्थ ने 29 जुलाई, 2019 को इस खबर को प्रकाशित किया था। बहरहाल इसी मामले में करीब एक बरस से ज्यादा समय के बाद 15 अक्तूबर, 2020 के एनजीटी के आदेश का अनुपालन करते हुए केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय के अधीन केंद्रीय भूजल प्राधिकरण (सीजीडब्ल्यूए) ने आदेश जारी किया है।

एनजीटी में याचिकाकर्ताओं की ओर से कानूनी पक्ष रखने वाले अधिवक्ता आकाश वशिष्ट ने डाउन टू अर्थ से कहा कि देश में भू-जल संरक्षण के लिए सीजीडब्ल्यूए का यह आदेश एक ऐतिहासिक कदम है। हमने यह मुद्दा एनजीटी में बीते वर्ष उठाया था, इसके बाद अब यह मामला सही दिशा में बढ़ चुका है। अभी तक आवासीय और व्यावसायिक आवासों से ही नहीं बल्कि कई पानी आपूर्ति करने वाले सरकारी  टैंकों से भू-जल दोहन के जरिए निकाला गया पीने योग्य पानी (पोटेबल वाटर) बर्बाद होता रहता है। किसी तरह का प्रावधान न होने से पानी बर्बाद करने वाली संस्थाएं व व्यक्ति को इस बात के लिए दंडित भी नहीं किया जा सकता था।   

साफ पानी की बर्बादी और बेजा इस्तेमाल पर दंडात्मक आदेश के जारी करने और केंद्रीय मंत्रालयों व राज्यों से समयबद्ध कार्य योजना मिलने के आश्वासन के बाद एनजीटी ने 31 अगस्त, 2020 को मामले का निस्तारण कर दिया था। वहीं, इससे पहले 15 अक्तूबर, 2019 को एनजीटी में राजेंद्र त्यागी और फ्रैंड्स संस्था का यह मामला जब एनजीटी ने सुना तो पाया था कि केंद्रीय जल शक्ति मंत्रालय और दिल्ली जल बोर्ड के जवाबों में पानी की बर्बादी और बेजा इस्तेमाल को रोकने के लिए कोई प्रभावी नीति का जिक्र नहीं किया गया है। एनजीटी ने कहा था प्राधिकरणों के जवाबी हलफनामे बेहद सामान्य और बेकार हैं। राज्यों और संघ शासित प्रदेशों को पत्र लिखने के बजाए एक समयबद्ध कार्ययोजना और निगरानी के साथ दंडात्मक प्रावधानों वाली प्रभावी कार्रवाई योजना बनाई जानी चाहिए। 

एनजीटी ने कहा था कि "पर्यावरण कानून का पालन आदेशों का उल्लंघन करने वाले लोगों से बटोरी गई टोकन मनी की रिकवरी भर से नहीं हो जाता है। ...पॉल्यूटर पेज प्रिंसिपल का कोई विकल्प नहीं है।"