जल

एनजीटी ने भूजल के गिरते स्तर पर 21 राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों से मांगा जवाब

Susan Chacko, Lalit Maurya

देश में भूजल के स्तर में आती गिरावट पर सख्त रुख अपनाते हुए नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने 21 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से उनका जवाब मांगा है। इसके साथ ही ट्रिब्यूनल ने केंद्रीय भूजल प्राधिकरण, जल शक्ति मंत्रालय और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय को भी नोटिस जारी करने का निर्देश दिया है।

बता दें कि जिन राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अपनी रिपोर्ट दाखिल करने का निर्देश दिया गया है उनमें आंध्र प्रदेश, दिल्ली, हरियाणा, जम्मू कश्मीर, तमिलनाडु, बिहार, गुजरात, त्रिपुरा, और झारखंड आदि शामिल हैं। इस मामले में अगली सुनवाई नौ फरवरी 2024 को होगी। ऐसे में सुनवाई से एक हफ्ते पहले तक सभी राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को अपना जवाब दाखिल करना होगा।

गौरतलब है कि यह मामला 26 अक्टूबर, 2023 को हिंदुस्तान टाइम्स में प्रकाशित एक खबर के आधार पर कोर्ट द्वारा स्वतः संज्ञान में लिया गया है। इस खबर के मुताबिक "संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि भारत में भूजल 2025 तक 'निम्न' स्तर पर पहुंच जाएगा।"

रिपोर्ट के मुताबिक, भारत में गंगा बेसिन के कुछ हिस्से पहले ही भूजल की कमी से जूझ रहे हैं। और वो चरम सीमा को पार कर चुके हैं। वहीं आशंका है कि पूरे उत्तर-पश्चिमी क्षेत्र में 2025 तक भूजल का स्तर गंभीर रूप से गिर सकता है। वहीं केंद्रीय भूजल प्राधिकरण ने अपनी 22 नवंबर, 2023 को सौंपी रिपोर्ट में कहा है कि देश में भूजल की स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार द्वारा सभी उपाय किए गए हैं।

हालांकि एनजीटी के मुताबिक केंद्रीय भूजल बोर्ड की 2022 के लिए जारी वार्षिक रिपोर्ट, अदालत के समक्ष दायर रिपोर्ट से कुछ अलग ही तस्वीर प्रस्तुत करती है। उदाहरण के लिए, रिपोर्ट में जानकारी दी गई है कि 2022 में मानसून से पहले के जल स्तर की 2019 में इसी अवधि के दौरान रहे जल स्तर से तुलना करने पर पाया गया है कि विश्लेषण में शामिल 69.7 फीसदी यानी 11,744 कुएं जलस्तर में वृद्धि का संकेत देते हैं, जबकि करीब 29 फीसदी कुओं के जलस्तर में गिरावट आई है।

रिपोर्ट से कई क्षेत्रों में भूजल के हो रहे अत्यधिक दोहन का खुलासा हुआ है, खासकर राजस्थान और गुजरात जैसे क्षेत्रों में, जहां शुष्क जलवायु के चलते भूजल कम रिचार्ज होता है, जिसकी वजह से दबाव बढ़ रहा है।

वहीं देश के प्रायद्वीपीय क्षेत्रों कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के कुछ हिस्सों में बड़े पैमाने पर भूजल का दोहन देखा गया है। रिपोर्ट में सिंचाई, मिट्टी के प्रकार, कृषि जलवायु क्षेत्र, जल संरक्षण और जल निकायों से पुनर्भरण को ध्यान में रखते हुए मानदंडों में सुधार के लिए कहीं ज्यादा प्रायोगिक अध्ययन करने की सिफारिश की गई है।