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सबसे अधिक पानी की समस्या से जूझ रहे हैं एशिया और अफ्रीका के लोग: अध्ययन

वैज्ञानिकों के अनुसार 2021 में किए गए सर्वेक्षण में 3 अरब वयस्कों में से 43.6 करोड़ पानी की कमी से जूझ रहे थे

Dayanidhi

दुनिया भर में लोग लगातार गंभीर जल संकट का सामना कर रहे हैं। पानी की कमी और जल प्रदूषण से लोगों और धरती के स्वास्थ्य के कई पहलुओं के लिए खतरा हैं। जलवायु परिवर्तन, ढहते बुनियादी ढांचे, प्रदूषण और खराब शासन का मतलब है कि कई देशों में स्वास्थ्य, पोषण और आर्थिक हित पानी से संबंधित समस्याओं के कारण खतरे में पड़ सकते हैं।

एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका के देशों ने पिछले एक साल में भयंकर सूखे और विनाशकारी बाढ़ का दंश झेला है। नॉर्थवेस्टर्न यूनिवर्सिटी का पानी की कमी के बारे में बारीकी से और वैश्विक दृष्टिकोण प्रदान करने वाला यह पहला नया शोध है।

एक नए अध्ययन में, वैज्ञानिकों का अनुमान है कि 2021 में नमूने द्वारा लिए गए सर्वेक्षण में 3 अरब वयस्कों में से 43.6 करोड़ पानी की कमी से जूझ रहे थे। शोधकर्ता यह भी पता लगाने में सक्षम थे कि कौन से समूह पानी की कमी से सबसे अधिक प्रभावित हैं।

यह अध्ययन नॉर्थवेस्टर्न एंथ्रोपोलॉजिस्ट सेरा यंग के नेतृत्व में किया गया है। अध्ययन में दुनिया की लगभग आधी आबादी के राष्ट्रीय स्तर के नमूने से तैयार किए गए आंकड़ों और पानी की असुरक्षा को अधिक समग्र रूप से मापने के लिए डिजाइन किए गए पैमाने का उपयोग करता है।

यंग ने कहा ये आंकड़े पानी के क्षेत्र में एक मानवीय चेहरा सामने लाते हैं, जिससे पानी के साथ जीवन बदलने वाली समस्याओं का पता चलता है जो लंबे समय से छिपी हुई हैं।

2021 में, गैलप वर्ल्ड पोल ने व्यक्तिगत जल असुरक्षा अनुभव (आईडब्ल्यूआईएसई) स्केल, 12-प्रश्नों के सर्वेक्षण को यंग और 31 कम और मध्यम आय वाले देशों के 45,555 विद्वान वयस्कों द्वारा विकसित किया गया।

आईडब्ल्यूआईएसई स्केल ने ऐसे प्रश्न पूछे जैसे कि कितनी बार प्रतिभागियों को पर्याप्त पानी न होने के बारे में चिंता हुई, कितनी बार वे पानी की कमी के कारण पने हाथ नहीं धो पाए, या कितनी बार उन्होंने पानी की समस्या के कारण भोजन को बदलना पड़ा। देश चार क्षेत्रों में विभाजित थे - उप-सहारा अफ्रीका, उत्तरी अफ्रीका, एशिया और लैटिन अमेरिका।

अध्ययन से पता चलता है कि सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से 14.2 प्रतिशत पानी की समस्या से जूझ रहे थे। उप-सहारा अफ्रीका के देशों, जैसे कि कैमरून में 63.9 प्रतिशत और इथियोपिया में 45 प्रतिशत ने पानी की भारी कमी का अनुभव किया, जबकि एशिया में चीन (3.9 प्रतिशत), भारत (15·3 प्रतिशत) और (बांग्लादेश 9.4) प्रतिशत जैसे देशों में बहुत कम पानी की समस्या का सामना किया गया।

शोधकर्ताओं ने पाया कि कम आय वाले व्यक्ति, शहर के बाहरी इलाके में रह रहे थे और जो लोग कोविड-19 से अधिक प्रभावित थे। उनके पानी की समस्या  होने के आसार अधिक थे, लेकिन यह हमेशा सच नहीं था। उदाहरण के लिए, कुछ देशों में, अधिक आय वाले लोगों में पानी की कमी की समस्या पाई गई।

इसके अलावा, महिलाओं को आमतौर पर पुरुषों की तुलना में पानी की कमी की समस्या की दर अधिक मानी गई,  क्योंकि वे पानी के अधिक उपयोग वाले  काम करते हैं तथा पानी जमा करने के लिए ज़िम्मेदार हैं। अध्ययन में पाया गया है कि 31 में से छह देशों में पुरुषों और महिलाओं को पानी की कमी की समस्या का समान दर से अनुभव किया।

यंग ने कहा अगर हम मानव कल्याण की बात करते हैं, तो पानी की उपलब्धता या पीने के पानी के बुनियादी ढांचे को मापने के लिए पर्याप्त नहीं है, जो कि हमने दशकों से किया है। आईडब्ल्यूआईएसई स्केल की मदद से इस कमी को पूरा करने के साथ तेजी से मूल्यांकन किया जा सकता है।

आईडब्ल्यूआईएसई स्केल व्यक्तिगत स्तर पर पानी की असुरक्षा को मापने और शोधकर्ताओं को पानी की उपलब्धता और पहुंच के बारे में अधिक समग्र और सटीक आंकड़े प्रदान करने के लिए बनाया गया था। केवल पीने के पानी तक पहुंच पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, स्केल पानी के साथ व्यक्तिगत अनुभवों के बारे में गहन आंकड़े प्रदान करता है। यह जांच कर कि पानी खाना पकाने, स्नान करने और अन्य तरह के उपयोग को कैसे प्रभावित करता है।

युवा जानकारों और नीति निर्माताओं से वैश्विक जल संकट के बारे में पता लगाने के लिए पानी की असुरक्षा की जांच करते समय पानी की उपलब्धता और बुनियादी ढांचे से परे देखने का आग्रह करते हैं। पानी के साथ अनुभवों को मापने, संगठनों को ऐसे हस्तक्षेप करने की अनुमति देगी जो सबसे कमजोर समूहों पर सबसे अच्छी तरह नजर रख सकते हैं।

यंग ने कहा भोजन जैसे अन्य प्रमुख संसाधनों से संबंधित अनुभव, उपाय अब अहम हैं, खाद्य असुरक्षा के अनुभवों को संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों के हिस्से के रूप में ट्रैक किया जाता है। यह अध्ययन दर्शाता है कि यह पानी की असुरक्षा के लिए भी उपयोग किया जा सकता है। यह शोध द लैंसेट प्लैनेटरी हेल्थ में प्रकाशित किया गया है।