इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस (आईईपी) द्वारा प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 2050 तक 2.8 अरब से अधिक लोगों को गंभीर पारिस्थितिकी खतरे वाले क्षेत्रों में रहने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। हालांकि वर्तमान में, 1.8 अरब लोग गंभीर पारिस्थितिकी खतरों का सामना कर रहे हैं।
रिपोर्ट में दुनिया भर के पारिस्थितिकी संबंधी खतरों का विश्लेषण किया गया है साथ ही पारिस्थितिकी के नुकसान, जलवायु से संबंधित घटनाओं के कारण संघर्ष, लोगों में अशांति और विस्थापन से सबसे अधिक जोखिम वाले देशों और उप-राष्ट्रीय क्षेत्रों का आकलन किया गया है।
रिपोर्ट में 221 देशों और 3,594 उप-राष्ट्रीय क्षेत्रों में विभाजित स्वतंत्र क्षेत्रों को शामिल किया गया है, जहां दुनिया की 99.99 प्रतिशत आबादी रहती है। 221 देशों और स्वतंत्र क्षेत्रों में से 66 को कम से कम एक गंभीर पारिस्थितिकी खतरे का सामना करना पड़ता है।
रिपोर्ट में कहा गया है कि, गंभीर पारिस्थितिक खतरों और कम सामाजिक लचीलेपन से पीड़ित देशों की संख्या पिछले साल तीन से बढ़कर 30 हो गई है। तीन नए देश हॉटस्पॉट बनकर उभरे हैं, इनमें नाइजर, इथियोपिया और म्यांमार शामिल हैं।
गंभीर पारिस्थितिकी खतरों का सामना करने वाले और सामाजिक लचीलेपन के निम्न स्तर वाले 30 हॉटस्पॉट देशों में से 19 उप-सहारा अफ्रीका में हैं। चार सबसे अधिक जोखिम वाले देश इथियोपिया, नाइजर, सोमालिया और दक्षिण सूडान हैं।
दक्षिण एशिया अत्यधिक खाद्य असुरक्षा में रहने वाले लोगों की तीसरी सबसे बड़ी संख्या वाला क्षेत्र है। क्षेत्र की लगभग नौ प्रतिशत आबादी, यानी 17.5 करोड़ लोग भारी खाद्य असुरक्षा वाले उपराष्ट्रीय क्षेत्रों में रहते हैं। 2050 तक इन क्षेत्रों की जनसंख्या 21.2 करोड़ तक पहुंचने के आसार हैं। प्रभावित लोगों में से अधिकांश पश्चिमी भारत या अफगानिस्तान में रहते हैं।
प्रदूषण की बात करें तो, रिपोर्ट बताती है कि, 20 सबसे प्रदूषित शहरों में से नौ भारत में हैं और सात चीन में हैं। शहरीकरण को लेकर चीन मजबूती से आगे बढ़ रहा है, जो 1960 में 16.2 प्रतिशत से बढ़कर 2020 में 61 प्रतिशत तक पहुंच गया है।
कम से कम 15 महानगरों और 110 से अधिक शहर जिनकी आबादी दस लाख या उससे अधिक है। यह भी स्पष्ट है कि इन शहरों को पारिस्थितिक खतरों से निपटने में कई चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
रिपोर्ट से यह भी पता चला कि यूरोप और उत्तरी अमेरिका ही ऐसे दो क्षेत्र हैं जहां वर्तमान में कोई भी देश गंभीर पारिस्थितिकी खतरे का सामना नहीं कर रहा है।
रिपोर्ट में खतरों की चार श्रेणियों पर गौर किया गया है, जिनमें खाद्य असुरक्षा, प्राकृतिक आपदाएं, जनसांख्यिकीय दबाव और पानी से संबंधित खतरे शामिल हैं।
वर्तमान में 42 देश गंभीर खाद्य असुरक्षा का सामना कर रहे हैं और लगभग चार अरब लोग भयंकर खाद्य असुरक्षा वाले क्षेत्रों में रहते हैं, जिनमें से अधिकांश उप-सहारा अफ्रीका में हैं।
पानी से संबंधित खतरे सबसे बड़े पारिस्थितिक खतरों में से एक है जिसकी दुनिया इस समय सामना कर रही है। वैश्विक स्तर पर दो अरब लोग ऐसे क्षेत्रों में रहते हैं जहां सुरक्षित पेयजल तक पहुंच नहीं है।
जबकि उप-सहारा अफ्रीका में पानी का खतरा सबसे अधिक है, यह मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका, रूस और यूरेशिया में भी बढ़ रहा है।
रिपोर्ट के मुताबिक, खाद्य असुरक्षा में 25 प्रतिशत की वृद्धि की बात कही गई है, जो संघर्ष के खतरों को 36 प्रतिशत तक बढ़ा देती है। इसी तरह, स्वच्छ पेयजल और प्राकृतिक आपदाओं तक पहुंच से वंचित लोगों की संख्या में 25 प्रतिशत की वृद्धि से संघर्ष का खतरा क्रमशः 18 प्रतिशत और 21 प्रतिशत बढ़ जाता है।
रिपोर्ट के हवाले से इंस्टीट्यूट फॉर इकोनॉमिक्स एंड पीस (आईईपी) के संस्थापक और कार्यकारी अध्यक्ष स्टीव किलेलिया ने कहा, जैसा कि हम कॉप 28 के करीब पहुंच रहे हैं, पारिस्थितिक खतरा रिपोर्ट नेताओं को भविष्य के लिए कार्य करने, निवेश करने और लचीलापन बनाने की आवश्यकता की समय पर याद दिलाती है।
गंभीर पारिस्थितिकी के खतरों वाले देशों की संख्या जिनमें इन चुनौतियों से निपटने के लिए आवश्यक लचीलेपन की कमी है, वे बढ़ते जा रहे हैं, उन्होंने कहा कि, जलवायु परिवर्तन इन खतरों को और बढ़ाएगा।
पारिस्थितिकी खतरों से संघर्ष का खतरा बढ़ जाता है जिसके कारण लोग दूसरी जगहों पर रहने के लिए मजबूर हो जाते हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि, इन खतरों के प्रति लचीलापन बनाने के लिए अभी और भविष्य में पर्याप्त निवेश की आवश्यकता होगी।
रिपोर्ट में कई नीतिगत सिफारिशें शामिल हैं जिनका उद्देश्य स्थानीय समुदायों को जल संग्रहण, कृषि उपज और लचीलेपन में सुधार करने पर जोर देना शामिल है।