दुनिया भर में बोतल बंद पानी का कारोबार किस कदर हावी होता जा रहा है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकते है कि हर मिनट दुनिया भर में 10 लाख से ज्यादा पानी की बोतलें बिकती हैं। मतलब की यदि साफ किए हुए मिनरल और नेचुरल पानी की बोतलों की खपत का अंदाजा लगाया जाए तो वो साल में करीब 35,000 करोड़ लीटर के बराबर है।
देखा जाए तो दुनिया में आज हर व्यक्ति औसतन इस बोतल बंद पानी पर हर वर्ष करीब 2,805 रुपए (34 डॉलर) से ज्यादा खर्च कर रहा है। 109 देशों के बारे में उपलब्ध जानकारी और आंकड़ों के विश्लेषण से पता चला है कि केवल पांच दशकों में बोतलबंद पानी का होता कारोबार एक प्रमुख आर्थिक क्षेत्र के रूप में विकसित हुआ है।
2010 से 2020 के बीच इसमें 73 फीसदी की वृद्धि हुई है। गौरतलब है कि 2020 में करीब 22.3 लाख करोड़ रुपए (27,000) करोड़ डॉलर इस बोतल बंद पानी के लिए लोगों ने खर्च किए थे। वहीं अनुमान है कि 2030 तक यह कारोबार बढ़कर 50,000 करोड़ डॉलर पर पहुंच जाएगा।
देखा जाए तो वैश्विक स्तर पर बोतलबंद पानी की खपत में होती वृद्धि इस बात की ओर भी इशारा करती है कि कहीं न कहीं सरकारें सार्वजनिक स्वच्छ जल आपूर्ति में सुधार करने में विफल रही हैं। जो 2030 तक सबके लिए सुरक्षित पेयजल के सतत विकास के लक्ष्य को भी खतरे में डाल रही है।
यह जानकारी संयुक्त राष्ट्र विश्वविद्यालय द्वारा विश्व जल दिवस (22 मार्च) से पहले जारी नई रिपोर्ट "ग्लोबल बोटल वाटर इंडस्ट्री: रिव्यु ऑफ इम्पैटस एंड ट्रेंड्स" में सामने आई है। रिपोर्ट के अनुसार 2015 में जब सतत विकास के लक्ष्यों पर सहमति बनी थी, तब विशेषज्ञों का अनुमान था कि 2015 से 2030 के बीच सबके लिखे सुरक्षित पेयजल के लक्ष्य को हासिल करने के लिए हर वर्ष करीब 11,400 करोड़ डॉलर के निवेश की जरूरत होगी।
इस आधार पर देखें तो वर्तमान में हम जितना खर्च बोतल बंद पानी के लिए कर रहे हैं उससे आधे से भी कम खर्च में हम सबके लिए सुरक्षित पेयजल के लक्ष्य को हासिल करने के और करीब पहुंच सकते हैं। देखा जाए तो यह मुद्दा 200 करोड़ लोगों की पीने के लिए साफ पानी की जरूरत से जुड़ा है।
रिपोर्ट की मानें तो जहां उत्तरी गोलार्ध के लिए यह बोतलबंद पानी स्वस्थ और स्वादिष्ट उत्पाद से जुड़ा है जहां यह आवश्यकता से ज्यादा लक्जरी का मामला है। वहीं यदि ग्लोबल साउथ की बात करें तो बढ़ते शहरीकरण के कारण भरोसेमंद सार्वजनिक जल आपूर्ति और जल वितरण संबंधी बुनियादी ढांचे की कमी या उसका पूरी तरह नदारद होना बोतल बंद पानी की बढ़ती बिक्री की सबसे बड़ी वजह है।
इसी तरह मध्यम और निम्न-आय वाले देशों में इसकी बढ़ती खपत पानी की खराब गुणवत्ता और लचर जल आपूर्ति प्रणाली का नतीजा है। यह समस्याएं अक्सर भ्रष्टाचार और नल जल के बुनियादी ढांचे में निवेश की कमी की वजह से हैं।
ऐसे में इसका फायदा पानी की बोतलें बेचने वाली कंपनियां उठा रही है, जो अपने विज्ञापनों में दर्शाती हैं कि उनके पानी की गुणवत्ता स्वास्थ्य के नजरिए से कहीं ज्यादा बेहतर है। हालांकि ऐसा हो यह हमेशा जरूरी नहीं है।
जरूरी नहीं की सुरक्षित ही है बोतलबंद पानी
रिपोर्ट के मुताबिक बोतलबंद पानी में मौजूद खनिजों की संरचना अलग-अलग ब्रांडों के बीच अलग-अलग हो सकती है। यहां तक की यह हर देश में अलग होती है। इतना ही नहीं किसी एक ब्रांड के भी बोतल बंद पानी में मौजूद खनिज संरचना अलग-अलग हो सकती है। इसी तरह एक ही बैच की अलग-अलग बोतलों में भी भिन्नता हो सकती है।
दुनिया भर में ऐसे अनेकों उदाहरण मिले हैं जहां बोतल बंद पानी की गुणवत्ता खराब पाई गई है। इसी तरह भारत सहित दुनिया के 40 से भी ज्यादा देशों में 100 से भी ज्यादा ब्रांड की बोतलों में पानी दूषित पाया गया है। ऐसे में रिपोर्ट से जुड़े विशेषज्ञों का कहना है कि यह भ्रामक है कि बोतलबंद पानी हमेशा सुरक्षित होता है।
देखा जाए तो यह बोतल बंद पानी कंपनियां बड़े पैमाने पर स्थानीय संसाधनों का भी दोहन कर रही हैं जो क्षेत्र की पारिस्थितिकी को भी प्रभावित कर रहा है। ऐसा ही एक उदाहरण भारत में उत्तरप्रदेश के मेहंदीगंज का है जहां कोका-कोला के बॉटलिंग प्लांट की वजह से 1989 से 2009 के बीच भूजल के स्तर में 7.9 मीटर की कमी दर्ज की गई थी।
इसी तरह राजस्थान के काला डेरा में 10 साल बाद बॉटलिंग की वजह से भूजल के स्तर में 25.3 मीटर तक की कमी दर्ज की गई थी। ऐसा ही एक उदाहरण केरल का है जहां प्लाचीमाडा में कोका कोला बेवरेज प्राइवेट लिमिटेड (एचसीसीबी) के बॉटलिंग संयंत्र की वजह से भूजल के स्तर में 45 से 100 मीटर की कमी दर्ज की गई थी। इतना ही नहीं वहां चूना पत्थर के घुलने के कारण भूजल खारा और दूधिया-सफेद हो गया है। वहां मिट्टी और भूजल भारी धातुओं जैसे सीसा, कैडमियम और क्रोम से दूषित हो गए थे। इसकी वजह से फसलों और स्वास्थ्य के लिए संकट पैदा हो गया था।
बोतल बंद पानी से जुड़ी एक और बड़ी समस्या है और वो प्लास्टिक प्रदूषण की है। उद्योग ने 2021 में करीब 60,000 करोड़ प्लास्टिक की बोतलों और कंटेनरों का उत्पादन किया था। इससे करीब 2.5 करोड़ टन पीईटी कचरा पैदा होता था। देखा जाए तो इनमें से अधिकांश कचरे को रीसायकल नहीं किया गया और ऐसे ही लैंडफिल में डाल दिया गया।
यह 40-टन वजनी 625,000 ट्रकों के वजन के बराबर है। जिन्हें यदि एक लाइन में खड़ा कर दिया जाए तो यह न्यूयॉर्क से बैंकॉक तक की दूरी तय कर लेंगें। रिपोर्ट के मुताबिक बोतलबंद पानी उद्योग ने 2019 में वैश्विक स्तर पर उत्पादित 35 फीसदी पीईटी बोतलों का उपयोग किया था। इनमें से 85 फीसदी को या तो लैंडफिल या पर्यावरण में ऐसे ही फेंक दिया गया।