मध्य प्रदेश विधानसभा में बुधवार को पेश हुए बजट में राइट टू वाटर (पानी का अधिकार) एक्ट के लिए 1 हजार करोड़ रुपये का प्रावधान किया गया है। जिसके तहत हर नागरिक को प्रतिदिन 55 लीटर पानी पाने का अधिकार होगा। वहीं, ग्रामीण इलाकों में पेयजल व्यवस्था के लिए तकरीबन 4 हजार करोड़ की व्यवस्था की गई है जो कि पिछले बजट प्रावधान से 46 प्रतिशत आधिक है।
वैसे तो पानी का अधिकार देश के संविधान आर्टिकल 21 के तहत जीने के अधिकारी के साथ पहले से ही शामिल हैं और इस तरह का कोई कानून अच्छा माना जाएगा, लेकिन सरकार को इस एक्ट बनाते समय जल संरक्षण के पारंपरिक तरीकों को भी ध्यान में रखना चाहिए। मध्यप्रदेश में अबतक बड़े डैम बनाकर पानी रोकने की नीति पर काम हुआ है जिस वजह से नर्मदा से लगे 4 किलोमीटर दूर के गावों में भी पानी की किल्लत आ रही है। यह कहना है नर्मदा बचाओ आंदोलन से जुड़े समाजिक कार्यकर्ता मेधा पाटकर का। वे बातें उन्होंने मध्यप्रदेश सरकार के द्वारा बनाए जा रहे कानून राइट टू वाटर यानि पानी का अधिकारी कानून के मुद्दे पर पर डाउन टू अर्थ के साथ बातचीत में कही। उनका कहा है कि इस कानून को बनाने की प्रक्रिया के मध्यप्रदेश के स्थानीय सामाजिक कार्यकर्ताओं को नजरअंदाज किया गया है जिससे कानून का ड्राफ्ट उतना प्रभावी नहीं हो पाएगा जितनी जरूरत है।
पाटकर कहती हैं कि जल का अधिकार जल संरक्षण और उसके मैनेजमेंट से शुरू होना चाहिए। मध्यप्रदेश में पानी पर अबतक जो काम हुए हैं इसमें बड़े डैम और नदी जोड़ जैसी बड़ी योजनाएं शामिल हैं जिससे पर्यावरण का नुकसान हुआ है और यह योजनाएं पानी की समस्या का टिकाऊ समाधान नहीं है। उन्होंने सुझाव दिया कि पानी से जुड़ा कोई भी प्रोजेक्ट पब्लिक सेक्टर का हो न कि नीजि क्षेत्र का, ताकि पानी अधिक दोहन से बचा जा सके।
उन्होंने आगे कहा कि इस कानून को बनाने में सिर्फ लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग ही नहीं बल्कि अन्य विभाग जैसे आदिवासी कल्याण विभाग को भी शामिल किया जाना चाहिए ताकि जल संरक्षण का उद्देश्य सही मायनों में पूरा हो, न कि यह कानून जल संसाधनों को और क्षति पहुंचाए।
इस मुद्दे पर पिछले 22 वर्षों से जल संरक्षण पर काम कर रहे जबलपुर के सामाजिक कार्यकर्ता विनोद शर्मा ने बताया कि कानून एक अच्छी पहल है। उन्होंने कहा कि मुझे उम्मीद है कि इस कानून में जल संरक्षण के साथ जल बचाने और इसका दुरुपयोग रोकने पर भी बात होगी। उन्होंने पंजाब सरकार के हाल में लिए निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि गर्मियों में पंजाब में पानी के दुरुपयोग पर सरकार ने कड़ा रुख अपनाया था। इस तरह से इस कानून में भी पानी के समान वितरण की व्यवस्था होनी चाहिए।
पानी पर जीव-जन्तुओं का भी हो अधिकारी
जल संरक्षण पर दो दशक से अधिक समय से काम करने वाले सामाजिक कार्यकर्ता रहमत बताते हैं कि वे इस कानून के लिए आयोजित पहले वर्कशॉप में आमंत्रित थे और उन्होंने इस वर्कशॉप में भागीदारी भी की। उनका मानना है कि सरकार कानून बनाने में जल्दबाजी में है और विभाग ने अपने आंकड़ों के माध्यम से यह दावा किया कि 42 फीसदी से अधिक ग्रामीण हिस्सों में पाइप के माध्यम से जल पहुंचाया जा रहा है। इसी तरह विभाग ने दावा किया कि मध्यप्रदेश में 98.5 प्रतिशत पानी का सप्लाई भूमिगत जल पर निर्भर है। रहमत मानते हैं कि इस कानून को सिर्फ पीने के पानी तक सीमित न कर इसका दायरा बढ़ाया जाए। पर्यावरण का बचाव तभी होगा जब हम जीव-जन्तु और वनस्पतियों को भी इस अधिकार के दायरे में लाएंगे। खेती के लिए पानी की जरूरत तो नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है क्योंकि जीने का अधिकार सीधा भरण-पोषण से जुड़ा हुआ है। उन्होंने इस अधिकार का दायरा बढ़ाकर मधुआरो और पशु पालकों को भी इसमें शामिल करने की बात कही। रविवार को भोपाल में एक बैठक कर जल संरक्षण से जुड़े सामाजिक कार्यकर्ता इस कानून से संबंधित कुछ सुझाव भी सरकार को सौंपेंगे।
अभी पानी सप्लाई की क्या स्थिति है?
इस कानून को तैयार करने में लोक स्वास्थ्य यांत्रिकी विभाग अहम भूमिका निभा रहा है। इस विभाग से जुड़े इंजीनियर एके जैन बताते हैं कि इस समय मध्यप्रदेश में ग्रामीण, शहरी क्षेत्रों में अलग- अलग पानी देने की व्यवस्था है। मध्यप्रदेश के दो तिहाई हिस्सों में ग्रामी बसाहट है और विभाग के मुताबिक जहां हैंडपंप से पानी सप्लाई होती है वहां 70 लीटर प्रति व्यक्ति पानी मिलता है। ग्रामीण इलाकों में पाइपलाइन से सप्लाई होने वाले क्षेत्र में 55 लीटर प्रति व्यक्ति पानी की सप्लाई होती है। लगभग 40 प्रतिशत क्षेत्र में पाइपलाइन से पानी की सप्लाई की जा रही है। शहरी इलाकों में कुछ शहरों में 90 लीटर तो कुछ में 135 और भोपाल, इंदौर जैसे शहरों में 180 लीटर प्रति व्यक्ति प्रति दिन पानी की सप्लाई पहले से ही की जा रही है। इस तरह हर रोज मध्यप्रदेश में कितना पानी सप्लाई हो रहा है इसकी गणना मुश्किल है।
जल स्त्रोतों की जियो टैगिंग, पानी बचाने पर ध्यान
इस कानून में अब तक तय हुई रूररेखा पर बात करते हुए एके जैन ने बताया कि पानी को लेकर पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड से लेकर नगर निगमों के अपने नियम बनें हैं। इस कानून के जरिए सभी नियमों का पालन करवाना सुनिश्चित किया जाएगा। सरकार सख्ती से रूप टॉप वाटर हार्वेस्टिंग के नियम लागू करेगी। पानी बचाने पर अधिक ध्यान होगा और इस तरह हर नागरिक के लिए कम से कम 55 लीटर पानी प्रतिदिन मिले यह सुनिश्चित किया जाएगा। अबतक पानी के सभी प्राइवेट और सरकारी स्त्रोतों की जानकारी सरकार के पास नहीं थी, लेकिन इस कानून के बाद सभी स्त्रोतों की जियो टैगिंग और बोरिंग का रजिस्ट्रेशन किया जाएगा।
मध्यप्रदेश के पास कितना पानी
मध्यप्रदेश में हर साल औसतन 60 सेंटीमीटर बारिश उत्तरपूर्व क्षेत्र में और दक्षिण-पूर्व क्षेत्र में 100 से 120 सेंटीमीटर बारिश होती है। सरकार के अनुमान के मुताबिक 81,500 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी मध्यप्रदेश के पास हर साल रहता है जिसमें से 24,700 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी पड़ोसी राज्यों तक नदियों और बांधों से होकर विभिन्न समझौतों के तहत जाने दिया जाता है। इसी तरह प्रदेश में भूमिगत जल 34,159 मिलियन क्यूबिक मीटर होने का अनुमान है। तकरीबन 44,064 मिलियम क्यूबिक मीटर पानी विभिन्न प्रोजेक्ट और बांधों में जमा रहता है। सिंचाई के लिए 17,950 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी हर साल भूमि से बाहर निकाली जाती है तथा अन्य कार्यों के लिए 1412 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी बाहर निकाला जाता है। प्रदेश में 2011 जनगणना के मुबाबिक 726.27 लाख लोग रहते हैं। इस तरह इस नियम के लागू होने के बाद प्रदेश में हर रोज 399.44 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी की जरूरत होगी, जो कि एक साल में 145795.6 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी होता है। सरकार के आंकड़ों के मुताबिक मध्यप्रदेश के पास भूमिगत और जमीन पर मौजूद पानी मिलाकर 1,06,000 मिलियन क्यूबिक मीटर पानी ही मौजूद है।