प्रतीकात्मक तस्वीर: आईस्टॉक 
जल

बिजनौर में गायब होते झील-तालाब, सुप्रीम कोर्ट ने दिए जांच के निर्देश

सुप्रीम कोर्ट ने बिजनौर के नगीना में गायब हो रही झीलों, तालाबों के मामले में जांच के लिए पर्यावरण मंत्रालय से समिति गठित करने को कहा है

Susan Chacko, Lalit Maurya

सुप्रीम कोर्ट ने बिजनौर के नगीना में गायब हो रही झीलों, तालाबों के मामले में जांच के लिए पर्यावरण मंत्रालय से समिति गठित करने को कहा है। कोर्ट ने निर्देश दिया है कि गायब हो रहे जल निकायों के बारे में मिर्जा आबिद बेग की शिकायतों का समाधान करने के लिए वरिष्ठ अधिकारियों की एक समिति बनाएं।

इस समिति में राजस्व विभाग, पर्यावरण विभाग और उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अधिकारी शामिल होंगे। अदालत द्वारा 16 जुलाई, 2024 को दिए आदेश के मुताबिक इस समिति का गठन तीन सप्ताह के भीतर किया जाना चाहिए। मामला उत्तरप्रदेश में बिजनौर की नगीना तहसील का है।

अदालत ने कहा है कि समिति सबसे पहले नगीना में तालाबों, झीलों और जल निकायों के बारे में आवेदक की शिकायतों पर विचार करेगी। इसके बाद "समिति इन जल निकायों के अस्तित्व को सत्यापित करने के लिए पुराने राजस्व रिकॉर्ड की जांच करेगी।"

अदालत ने गठित समिति को उन संपत्तियों का दौरा करने का भी आदेश दिया है जहां कभी तालाब, झीलें और जल निकाय हुआ करते थे। समिति इनके गायब होने के दावों की जांच करेगी और बहाली के उपाय सुझाएगी। इसके बाद, समिति के कार्य का दायरा कई जिलों तक बढ़ाया जा सकता है।

मामले में न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की बेंच ने अपने आदेश में कहा है कि, "राज्य का यह सर्वोच्च कर्तव्य है कि वह न केवल राज्य में तालाबों/झीलों/जल निकायों की रक्षा करे, बल्कि यह भी सुनिश्चित करे कि अवैध रूप से भरे गए तालाबों/झीलों/जल निकायों को बहाल किया जाए।"

कोर्ट के मुताबिक ऐसा करना राज्य का संवैधानिक कर्तव्य है। पर्यावरण मंत्रालय के सचिव द्वारा नियुक्त समिति राज्य की ओर से इस दायित्व पर ध्यान देगी। समिति को अपनी रिपोर्ट की प्रतियां उत्तर प्रदेश सरकार के माध्यम से सुप्रीम कोर्ट को सौंपनी होंगी। समिति द्वारा पहली रिपोर्ट 15 नवंबर, 2024 तक प्रस्तुत की जानी है।