प्रतीकात्मक तस्वीर: विकिमीडिया कॉमन्स, संजीव बोंडे 
जल

कोलकाता: झुग्गीवासियों के पुनर्वास के साथ, एनजीटी ने दिए पीने का पानी उपलब्ध कराने के आदेश

इंडिया डॉट कॉम में 22 अप्रैल, 2024 को छपी एक खबर के आधार पर अदालत ने इस मामले को स्वतः संज्ञान में लिया है

Susan Chacko, Lalit Maurya

नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) ने इस इस बात पर आश्चर्य व्यक्त किया है कि कोलकाता नगर निगम के वार्डों में घरों या कॉलोनियों में निर्माण योजनाओं को कैसे मंजूरी दे दी जाती है, जबकि वहां नल जल आपूर्ति या पानी की निकासी की कोई व्यवस्था नहीं है।

ऐसे में अदालत ने पांच दिसंबर, 2024 को बिना कोई जानकारी छिपाए कोलकाता नगर निगम को एक पूर्ण और सटीक हलफनामा प्रस्तुत करने का आदेश दिया। इस हलफनामे को चार सप्ताह के भीतर नगर निगम को अदालत के सामने प्रस्तुत करना होगा।

गौरतलब है कि इंडिया डॉट कॉम में 22 अप्रैल, 2024 को छपी एक खबर के आधार पर अदालत ने इस मामले को स्वतः संज्ञान में लिया है। इस खबर में भूजल के गिरते स्तर के कारण कोलकाता में गहराते जल संकट को उजागर किया गया है।

खबर के मुताबिक चेन्नई के बाद कोलकाता के भी कई क्षेत्रों में जल संकट गहराता जा रहा है।

इस मामले में कोलकाता नगर निगम द्वारा एक हलफनामा दाखिल किया गया था। इस हलफनामे में कहा गया है कि कोलकाता नगर निगम पूरे शहर में पाइप के जरिए जलापूर्ति बढ़ाने के लिए काम कर रहा है। हालांकि इस पहल को पूरा होने के लिए करीब पांच साल लगेंगे।

हलफनामे में इस बात का भी उल्लेख किया गया है कि राज्य जल जांच निदेशालय (एसडब्ल्यूआईडी) ने 2018 से 2022 के बीच मानसून से पहले और बाद में दोनों मौसमों के दौरान जांच की है और इस दौरान जल स्तर में नियमित रूप से वृद्धि हो रही है।

अपनी जिम्मेवारी से नहीं भाग सकते अधिकारी

अदालत के मुताबिक इस हलफनामे में बहुत उत्साहजनक तस्वीर पेश नहीं की गई है। हैरानी की बात है राज्य सरकार पांच वर्षों में पाइप के जरिए पीने का पानी उपलब्ध कराने की योजना बना रही है।

इसका मतलब है कि पांच वर्षों तक शहर की एक बड़ी आबादी को नल जल के बिना गुजारा करना होगा। हलफनामे में यह भी दलील दी गई है कि शहर में झुग्गी बस्तियों के बढ़ने से समस्या और बदतर हो गई है।

अदालत का कहना है कि जो दलीलें दी गई है वो स्वीकार्य नहीं है। अधिकारियों को जानकारी होने के बावजूद यदि शहर में झुग्गी बस्तियों को बढ़ने दिया जाता है तो यह अधिकारियों का कर्तव्य और जिम्मेवारी है कि वे ऐसी बस्तियों में रहने वाले लोगों के लिए आवास उपलब्ध कराएं और नल जल की पर्याप्त व्यवस्था करें।

अदालत का आगे कहना है कि आवासीय कॉलोनी की प्रकृति क्या होनी चाहिए, यह सरकार को तय करना है, लेकिन झुग्गीवासियों का पुनर्वास किया जाना चाहिए। साथ ही उन्हें पीने का पानी उपलब्ध कराया जाना चाहिए, क्योंकि यह एक बुनियादी जरूरत है। 

अदालत का कहना है कि हलफनामे में इस बात का भी जिक्र नहीं किया गया है कि किन वार्डों में पाइप के जरिए पानी की आपूर्ति की जा रही है और किनमें पानी उपलब्ध नहीं कराया जा रहा।